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सीबीआइ ने तेज की एबीजी शिपयार्ड बैंक घोटाले की जांच, कंपनी के पूर्व चेयरमैन; सीएमडी समेत आठ के खिलाफ एलओसी जारी

सीबीआइ ने देश के सबसे बड़े एबीजी शिपयार्ड बैंक घोटाले की जांच तेज कर दी है। करीब 23 हजार करोड़ रुपये के इस बैंक घोटाले में सीबीआइ ने कंपनी के पूर्व चेयरमैन व सीएमडी ऋषि कमलेश अग्रवाल और आठ अन्य के खिलाफ लुक आउट सर्कुलर जारी किया है।

By Amit SinghEdited By: Updated: Tue, 15 Feb 2022 11:44 PM (IST)
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सीबीआइ ने तेज की एबीजी शिपयार्ड बैंक घोटाले की जांच (फाइल फोटो)
नई दिल्ली, प्रेट्र: मामला दर्ज करने में देरी के आरोपों का सामना कर रहे केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) ने देश के सबसे बड़े एबीजी शिपयार्ड बैंक घोटाले की जांच तेज कर दी है। करीब 23 हजार करोड़ रुपये के इस बैंक घोटाले में सीबीआइ ने कंपनी के पूर्व चेयरमैन व सीएमडी ऋषि कमलेश अग्रवाल और आठ अन्य के खिलाफ लुक आउट सर्कुलर (एलओसी) जारी किया है। लुक आउट सर्कुलर किसी आरोपी के देश से भागने से रोकने के लिए जारी किया जाता है।

तत्कालीन चेयरमैन समेत कई के खिलाफ केस दर्ज

सीबीआइ ने 28 बैंकों के कंसोर्टियम के साथ 22,842 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के आरोप में एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड और उसके तत्कालीन चेयरमैन अग्रवाल व अन्य के खिलाफ केस दर्ज किया है। एजेंसी ने कंपनी के तत्कालीन कार्यकारी निदेशक संथानम मुथास्वामी, निदेशक अश्रि्वनी कुमार, सुशील कुमार अग्रवाल और रवि विमल नेवेतिया को भी आरोपित बनाया है। बैंकों के कंसोर्टियम की तरफ से नवंबर 2019 में इस धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज कराई थी। एजेंसी का कहना है कि सभी आरोपी देश में ही हैं। सीबीआइ के मुताबिक एसबीआइ की तरफ से दर्ज कराई गई शिकायत में फोरेंसिक आडिट के आधार पर धोखाधड़ी की अवधि को 2012-17 बताई गई है। परंतु, मामले की जांच में पता चला कि कंपनी की तरफ से बैंकों से मिले कर्ज के साथ असल गड़बड़ी 2005 से 2012 के बीच की गई थी। इसी अवधि में बैंकों से कंपनी को ज्यादातर कर्ज भी मिला था।

12 फरवरी को 13 जगह की थी छापेमारी

इस मामले की जांच के सिलसिले में सीबीआइ ने 12 फरवरी को देश के 13 जगहों पर आरोपितों के ठिकानों पर छापे मारे थे। इसमें कई आपत्तिजनक दस्तावेज बरामद किए गए थे जिनकी पड़ताल चल रही है।

जांच में देरी की वजह भी बताई

जांच में देरी के सवाल पर एजेंसी ने कहा है कि लगभग 100 बड़े बैंक धोखाधड़ी के मामलों में कुछ राज्यों द्वारा सामान्य सहमति वापस लेने के चलते केस दर्ज नहीं किया जा सकता है। इस मामले में भी यह देरी की एक बड़ी वजह रही है। इसके अलावा मामला कई बैंकों और एबीजी शिपयार्ड की 100 से ज्यादा सहयोगी कंपनियों से जुड़ा था। राज्यों द्वारा सीबीआइ को जांच के लिए सामान्य सहमति दी जाती है। इसे वापस लेने पर सीबीआइ को जांच शुरू करने से पहले संबंधित राज्य से अनुमति लेनी होती है, जिसमें कभी-कभी देर होती है। हालांकि, इस मामले में एजेंसी ने किसी राज्य का नाम नहीं लिया है।

2013 में पहली बार एनपीए हुआ था बैंक का खाता

एबीजी शिपयार्ड ने आइसीआइसीआइ बैंक के नेतृत्व वाले 28 बैंकों के कंसोर्टियम से 22,842 करोड़ रुपए का लोन लिया था। धीरे-धीरे उसने लोक चुकाना बंद कर दिया, जिसके बाद बैंकों की तरफ से उसके लोन खाते को 30 नवंबर, 2013 को एनपीए कर दिया गया था। उसके बाद भी बैंकों की तरफ से कंपनी को उबारने की कोशिश की गई। उसके खाते को सीडीआर प्रणाली के तहत 27 मार्च, 2014 को पुनर्गठित भी किया गया। इसके बावजूद हालात नहीं बदले तो बैंकों ने उसके खाते को दोबारा 2016 में एनपीए घोषित कर दिया, जो 30 नवंबर, 2013 से ही प्रभावी माना गया।

सबसे ज्यादा आइसीआइसीआइ का पैसा फंसा

कंपनी पर बकाए कर्ज में सबसे ज्यादा आइसीआइसीआइ बैंक का 7,089 करोड़ फंसा है। इसके अलावा आइडीबीआइ बैंक का 3,634 करोड़, एसबीआइ का 2,925 करोड़, बैंक आफ बड़ौदा का 1,614 करोड़ और पीएनबी का 1,200 करोड़ कर्ज है।