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यूरोपीय संघ के साथ FTA में फंसा सीबीटी का पेंच, उद्योग जगत ने केंद्र सरकार से कूटनीतिक तौर पर सुलझाने को कहा

भारत को चिंता इस बात की है कि वह वर्ष 2022 में तकरीबन 8.2 अरब डालर का निर्यात उक्त उत्पादों का यूरोप को किया गया है और सीबीटी से इस पर बहुत ही उल्टा असर पड़ सकता है।

By Jagran NewsEdited By: Anurag GuptaUpdated: Sun, 07 May 2023 10:19 PM (IST)
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ईयू के साथ एफटीए में फंसा सीबीटी का पेंच

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। भारत और यूरोपीय संघ के बीच कारोबारी समझौते को लेकर बातचीत धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ रही है। पिछले दो महीनों के बीच ना सिर्फ सीधे तौर पर यूरोपीय संघ (ईयू) के साथ इस बारे में बात हुई है, बल्कि फ्रांस, इटली और स्पेन के साथ अलग-अलग द्विपक्षीय वार्ताओं में भी ईयू के साथ होने वाले मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) का मुद्दा प्रमुखता से उठा है।

इन सभी बातों में भारत की तरफ से यूरोपीय संघ के देशों की तरफ से कार्बन बार्डर टैक्स (सीबीटी) लगाने का मुद्दा प्रमुखता से उठाया गया है। यह टैक्स यूरोपीय देशों की तरफ से ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों से जुड़े सामानों के आयात पर लगाया जाएगा। इससे यूरोपीय देशों को होने वाले 8-10 अरब डालर के भारतीय निर्यात पर असर पड़ने की संभावना है।

शुरुआती वार्ता में भारत ने स्पष्ट किया है कि सीबीटी का असर उसके निर्यात पर होगा तो वह भी यूरोप से आयात होने वाले उत्पादों को लेकर कड़ा रवैया अपना सकता है।

''कूटनीतिक तौर पर सुलझाने की करें कोशिश''

यूरोपीय संघ के इस प्रविधान को लेकर भारतीय उद्योग जगत की तरफ से केंद्र सरकार को लगातार जानकारी दी गई है और आग्रह किया गया है कि इसे कूटनीतिक तौर पर सुलझाने की कोशिश की जाए।

माना जा रहा है कि इस नए टैक्स प्रविधान से यूरोपीय देशों को भारत से होने वाले लोहा, स्टील और एल्युमिनियम उत्पादों का निर्यात काफी प्रभावित होगा। जो प्रविधान अभी लागू किए गए हैं उसके मुताबिक, एक अक्टूबर, 2023 से ही इन उद्योगों से जुड़े आयात की निगरानी शुरू कर दी जाएगी और एक जनवरी, 2026 से इन पर टैक्स की वसूली भी शुरू होगी।

भारत को चिंता इस बात की है कि वह वर्ष, 2022 में तकरीबन 8.2 अरब डालर का निर्यात उक्त उत्पादों का यूरोप को किया गया है और सीबीटी से इस पर बहुत ही उल्टा असर पड़ सकता है। एक अक्टूबर, 2023 के बाद यूरोप को लोहा, इस्पात या एल्युमिनियम निर्यात करने वाली सभी कंपनियों को यह बताना होगा कि उन्होंने प्रत्यक्ष या परोक्ष पर कितना कार्बन उत्सर्जन किया है।

विदेश और वाणिज्य मंत्री विभिन्न स्तरों पर उठा चुके हैं मुद्दा जब से भारतीय उद्योग जगत की तरफ से इस बारे में प्रजेंटेशन विदेश मंत्रालय, वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय व वित्त मंत्रालय के समक्ष पेश किया गया है, उसके बाद से कई स्तरों पर यह मुद्दा मंत्री स्तर पर यूरोपीय देशों के साथ उठाया जा चुका है। भारत इस बारे में यूरोपीय संघ को भी बता चुका है और अलग-अलग देशों को भी द्विपक्षीय तौर पर बताया है।

जयशंकर ने सबसे पहले उठाया मुद्दा

सूत्रों के मुताबिक, सबसे पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर ने डेनमार्क और चेक गणराज्य के विदेश मंत्रियों के साथ बैठक में इस मुद्दे को उठाया। उसके बाद वाणिज्य व उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने इटली के उप प्रधानमंत्री व विदेश मंत्री एंटोनी तेजेनी के साथ इसे उठाया है। हाल ही में भारत-स्पेन आर्थिक आयोग की बैठक में भी यह मुद्दा उठाया गया।

स्टील, लोहा और एल्युमिनियम का निर्यात हो सकता है प्रभावित ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआइ) की रिपोर्ट कहती है कि भारत से होने वाले कुल लौह अयस्क निर्यात का 19.9 प्रतिशत, स्टील उत्पादों के निर्यात का 20 प्रतिशत, लोहा व इस्पात का 31 प्रतिशत और एल्युमिनियम उत्पादों का 21.7 प्रतिशत ईयू देशों को होता है। ऐसे में भारत ने अभी से तैयारी शुरू नहीं की तो सीबीटी का उस पर काफी उल्टा असर हो सकता है।