जब पगला गया था मिसाइल मैन कलाम का रॉकेट, उन्होंने ही दिखाई थी Chandrayaan 2 की राह
पूर्व राष्ट्रपति कलाम ने बताया था कि कैसे उनके अभियान के दौरान रॉकेट पागल हो गया था और ऑर्बिटर में पहुंचने की जगह वह कहीं और पहुंच गया था। जानें- उनके अभियान का दिलचस्प किस्सा।
By Amit SinghEdited By: Updated: Sat, 07 Sep 2019 10:31 PM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। भारत के मिसाइल मैन कहे जाने वाले पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम हमारे बीच भले न हों, लेकिन उनकी कही हर बात आज भी भारत को राह दिखा रही है। भारत ने जिस दुर्लभ Chandrayaan 2 मिशन का प्रयास किया, उसकी राह भी भारत रत्न डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने ही दिखाई थी। इसके साथ ही उन्होंने अपने एक असफल अंतरिक्ष मिशन का जिक्र करते हुए बताया था कि कैसे उनका रॉकेट पागल होकर ऑर्बिटर में जाने की जगह कहीं और पहुंच गया था। उन्होंने ये बात इसीलिए कही थी, क्योंकि अपनी तमाम असफलताओं से वह भलीभांति जानते थे कि अंतरिक्ष अभियानों में सफलता किसी दुर्लभ सपने के पूरा होने जैसी होती है।
पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम की कही वो बात आज की परिस्थिति में इसरो के वैज्ञानिकों का हौसला बढ़ाने को काफी है। देश के महान वैज्ञानिक अब्दुल कलाम ने 1979 में लांच किए गए एक अंतरिक्ष मिशन का जिक्र किया था। तब वह इसरो चेयरमैन होने के साथ ही इस प्रोजेक्ट के प्रमुख भी थे। इस अंतरिक्ष मिशन में भारत ने अपने पहले सैटेलाइट लांच व्हीकल (SLV-3) का प्रयोग किया था। भारत के लिए ये मिशन बहुत महत्वपूर्ण था। तब भी, आज की तरह देश और दुनिया की नजरें भारत के इस मिशन पर टिकी हुई थीं।
डा. कलाम ने साझा किए थे अनुभव
भारत रत्न डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने अगस्त 1979 के इस अभियान को याद करते हुए 2013 के एक कार्यक्रम में कहा था, 'वो साल था 1979 का। मैं प्रोजेक्ट डायरेक्टर था। मेरा मिशन सैटेलाइट को ऑर्बिट में स्थापित करना था। वैज्ञानिकों ने करीब 10 साल तक इस प्रोजेक्ट पर काम किया था। मैं श्रीहरिकोटा के लॉचिंग पैड पर पहुंच चुका था। काउंटडाउन शुरू हुआ। लॉचिंग की उल्टी गिनती शुरू हो गई। लॉचिंग के ठीक 40 मिनट पहले ऐसा हुआ, जिसकी कोई उम्मीद नहीं थी। कंप्यूटर ने लॉचिंग को होल्ड पर रख दिया। इसका साफ मतलब था कि रॉकेट को लॉच मत करो। तब मिशन डायरेक्टर होने के नाते मुझे निर्णय लेना था।' कंप्यूटर को नजरअंदाज कर मानी टीम की सलाह
डा. कलाम ने आगे बताया कि एक तरफ कंप्यूटर प्रोजेक्ट को रोकने का निर्देश दे रहे थे, दूसरी तरफ वैज्ञानिकों की टीम सफलता को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त थी। वैज्ञानिकों ने उस वक्त उनसे कहा था कि आप रॉकेट लॉच करिए। वैज्ञानिक अपनी कैल्कुलेशन को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त थे। डा. अब्दुल कलाम ने तब कंप्यूटरों की बात न मानकर अपनी टीम पर भरोसा जताया और उनकी सलाह पर आगे बढ़ने का फैसला लिया। कंप्यूटर की बात न मानकर रॉकेट को लॉच किया गया। लॉचिंग के बाद उसने अपना पहला चरण पूरा किया तो इसरो कंट्रोल रूम में वैज्ञानिकों के चेहरे आत्मविश्वसास से खिल उठे।
भारत रत्न डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने अगस्त 1979 के इस अभियान को याद करते हुए 2013 के एक कार्यक्रम में कहा था, 'वो साल था 1979 का। मैं प्रोजेक्ट डायरेक्टर था। मेरा मिशन सैटेलाइट को ऑर्बिट में स्थापित करना था। वैज्ञानिकों ने करीब 10 साल तक इस प्रोजेक्ट पर काम किया था। मैं श्रीहरिकोटा के लॉचिंग पैड पर पहुंच चुका था। काउंटडाउन शुरू हुआ। लॉचिंग की उल्टी गिनती शुरू हो गई। लॉचिंग के ठीक 40 मिनट पहले ऐसा हुआ, जिसकी कोई उम्मीद नहीं थी। कंप्यूटर ने लॉचिंग को होल्ड पर रख दिया। इसका साफ मतलब था कि रॉकेट को लॉच मत करो। तब मिशन डायरेक्टर होने के नाते मुझे निर्णय लेना था।' कंप्यूटर को नजरअंदाज कर मानी टीम की सलाह
डा. कलाम ने आगे बताया कि एक तरफ कंप्यूटर प्रोजेक्ट को रोकने का निर्देश दे रहे थे, दूसरी तरफ वैज्ञानिकों की टीम सफलता को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त थी। वैज्ञानिकों ने उस वक्त उनसे कहा था कि आप रॉकेट लॉच करिए। वैज्ञानिक अपनी कैल्कुलेशन को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त थे। डा. अब्दुल कलाम ने तब कंप्यूटरों की बात न मानकर अपनी टीम पर भरोसा जताया और उनकी सलाह पर आगे बढ़ने का फैसला लिया। कंप्यूटर की बात न मानकर रॉकेट को लॉच किया गया। लॉचिंग के बाद उसने अपना पहला चरण पूरा किया तो इसरो कंट्रोल रूम में वैज्ञानिकों के चेहरे आत्मविश्वसास से खिल उठे।
'पहला स्टेज अच्छा गया, दूसरे स्टेज में वह पागल हो गया'
पहला चरण पूरा होने तक सब कुछ सही लग रहा था। तभी ऐसी घटना हुई, जिसकी कल्पना भी नहीं की गई थी। डा. अब्दुल कलाम के शब्दों में 'पहला स्टेज अच्छा गया और दूसरे स्टेज में वह (रॉकेट) पागल हो गया। वह स्पिन हुआ मतलब अपने मार्ग से भटक गया। इसके बाद रॉकेट ने सैटेलाइट को ऑर्बिट में रखने की जगह बंगाल की खाड़ी में फेंक दिया।' चंद्रयान-2 की तरह उस वक्त भी इसरो के लिए ये बड़ा झटका था, लेकिन डा. कलाम ने न तो खुद हिम्मत हारी और न ही अपनी टीम की हिम्मत कम होने दी। एक साल के अंदर ही 18 जुलाई 1980 को इसरो ने दोबारा एसएलवी-3 रॉकेट को सफलापूर्वक लॉच करते हुए रोहिणी सैटेलाइट (RS-1) को चंद्रमा की कक्षा में स्थापित किया। इसके साथ ही भारत अंतरिक्ष मिशन पूरा करने वाला छठवां देश बन गया था। इसके बाद मई 1981 और अप्रैल 1983 में भी इस रॉकेट की सफल लॉचिंग की गई थी। 10 साल पहले कलाम ने दिखाई थी चंद्रयान 2 की राह
खुद एयरोस्पेस वैज्ञानिक रहे और भारत के मिसाइल मैन के नाम से मशहूर अब्दुल कलाम ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के 'चंद्रयान-1' की सफलता के बाद वैज्ञानिकों को कई सुझाव दिए थे। करीब 10 साल पहले 2008 में मुंबई में 'चंद्रयान : प्रॉमिसेस एंड कंसर्न' पर नेशनल साइंस सेमिनार में उन्होंने कहा था कि इसरो को अब ऑर्बिटर मिशन की जगह 'चंद्रयान-2' के तहत अपना लैंडर चांद की सतह पर उतारना चाहिए, ताकि चंद्रमा पर पानी के अणुओं की मौजूदगी के बारे और अधिक जानकारी हासिल की जा सके। इसरो के 2008 में लांच हुए ऑर्बिटर मिशन 'चंद्रयान-1' ने ही पहली बार चंद्रमा पर पानी की उपस्थिति का पता लगाया था। चंद्रमा पर पानी की खोज भारत की एमआइपी (मून इंपैक्ट प्रोब) डिवाइस ने की थी और नासा ने भी इसकी पुष्टि की थी। इसके बाद चंद्रयान-2 मिशन पर काम शुरू हुआ। 2050 तक एक किलो के अंतरिक्ष यान का सुझाव
चंद्रयान-2 ही नहीं, डा. कलाम ने किसी भी अंतरिक्ष मिशन को कम से कम लागत में करने का भी सुझाव दिया था, जिसका अनुसरण इसरो ने चंद्रयान-2 मिशन में बखूबी किया। पूर्व राष्ट्रपति ने नासा और इसरो के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को 2050 तक एक किलोग्राम वजन वाले अंतरिक्ष यान बनाने का सुझाव दिया था, जिससे मिशन की लागत को लगभग 10 गुना तक कम किया जा सके। उन्होंने भविष्य में इसरो और नासा को साथ मिलकर अगले मिशनों पर काम करने का भी सुझाव दिया था।
पहला चरण पूरा होने तक सब कुछ सही लग रहा था। तभी ऐसी घटना हुई, जिसकी कल्पना भी नहीं की गई थी। डा. अब्दुल कलाम के शब्दों में 'पहला स्टेज अच्छा गया और दूसरे स्टेज में वह (रॉकेट) पागल हो गया। वह स्पिन हुआ मतलब अपने मार्ग से भटक गया। इसके बाद रॉकेट ने सैटेलाइट को ऑर्बिट में रखने की जगह बंगाल की खाड़ी में फेंक दिया।' चंद्रयान-2 की तरह उस वक्त भी इसरो के लिए ये बड़ा झटका था, लेकिन डा. कलाम ने न तो खुद हिम्मत हारी और न ही अपनी टीम की हिम्मत कम होने दी। एक साल के अंदर ही 18 जुलाई 1980 को इसरो ने दोबारा एसएलवी-3 रॉकेट को सफलापूर्वक लॉच करते हुए रोहिणी सैटेलाइट (RS-1) को चंद्रमा की कक्षा में स्थापित किया। इसके साथ ही भारत अंतरिक्ष मिशन पूरा करने वाला छठवां देश बन गया था। इसके बाद मई 1981 और अप्रैल 1983 में भी इस रॉकेट की सफल लॉचिंग की गई थी। 10 साल पहले कलाम ने दिखाई थी चंद्रयान 2 की राह
खुद एयरोस्पेस वैज्ञानिक रहे और भारत के मिसाइल मैन के नाम से मशहूर अब्दुल कलाम ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के 'चंद्रयान-1' की सफलता के बाद वैज्ञानिकों को कई सुझाव दिए थे। करीब 10 साल पहले 2008 में मुंबई में 'चंद्रयान : प्रॉमिसेस एंड कंसर्न' पर नेशनल साइंस सेमिनार में उन्होंने कहा था कि इसरो को अब ऑर्बिटर मिशन की जगह 'चंद्रयान-2' के तहत अपना लैंडर चांद की सतह पर उतारना चाहिए, ताकि चंद्रमा पर पानी के अणुओं की मौजूदगी के बारे और अधिक जानकारी हासिल की जा सके। इसरो के 2008 में लांच हुए ऑर्बिटर मिशन 'चंद्रयान-1' ने ही पहली बार चंद्रमा पर पानी की उपस्थिति का पता लगाया था। चंद्रमा पर पानी की खोज भारत की एमआइपी (मून इंपैक्ट प्रोब) डिवाइस ने की थी और नासा ने भी इसकी पुष्टि की थी। इसके बाद चंद्रयान-2 मिशन पर काम शुरू हुआ। 2050 तक एक किलो के अंतरिक्ष यान का सुझाव
चंद्रयान-2 ही नहीं, डा. कलाम ने किसी भी अंतरिक्ष मिशन को कम से कम लागत में करने का भी सुझाव दिया था, जिसका अनुसरण इसरो ने चंद्रयान-2 मिशन में बखूबी किया। पूर्व राष्ट्रपति ने नासा और इसरो के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को 2050 तक एक किलोग्राम वजन वाले अंतरिक्ष यान बनाने का सुझाव दिया था, जिससे मिशन की लागत को लगभग 10 गुना तक कम किया जा सके। उन्होंने भविष्य में इसरो और नासा को साथ मिलकर अगले मिशनों पर काम करने का भी सुझाव दिया था।