Chandrayaan 2 जैसा है ISRO प्रमुख का जीवन, गरीब किसान से ऐसे बने रॉकेट मैन Kailasavadivoo Sivan
ISRO Chief Dr Kailasavadivoo Sivan प्रतिभा चट्टान तोड़ कर निकलती है। इस कहावत को चरितार्थ किया है के. सिवन ने। पीएम मोदी खुद उनकी तारीफ कर चुके हैं।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Sun, 08 Sep 2019 07:21 AM (IST)
नई दिल्ली, जेएनएन। ISRO अध्यक्ष के. सिवन का जीवन भी Chandrayaan-2 की तरह ही अद्भुत, अविश्वमरणीय और अचंभित करने वाला है। चंद्रयान 2 की ही तरह उन्होंने भी कई चुनौतियों को पार किया और फर्श से अर्श तक का सफर तय किया है। लैंडर विक्रम भले ही चंद्रमा की सतह को चूमने से चूक गया हो, लेकिन जिस तरह से ऑर्बिटर चंद्रमा के चारों ओर चक्कर लगाकर अपनी उपयोगिता साबित कर रहा है, उसी तरह के. सिवन ने भी अपने जीवन में कई चुनौतियों से पार पाते हुए उपलब्धियां हासिल की हैं। जानें- एक गरीब किसान के घर में पैदा हुए के सिवन ने कैसे अद्भुत कामयाबियों भरा ये सफर तय किया?
#WATCH PM Narendra Modi hugged and consoled ISRO Chief K Sivan after he(Sivan) broke down. #Chandrayaan2 pic.twitter.com/bytNChtqNK
— ANI (@ANI) September 7, 2019
ये पल बेहद ही भावुक था। इसरो चीफ जब पीएम मोदी के गले लगकर रो रहे थे। तब उन्होंने के.सिवन की पीठ थपथपाई और हौसला बढ़ाया। इसरो मुख्लायल में संबोधित करते हुए पीएम ने कहा कि हम निश्चित रूप से सफल होंगे। हमारी सफलता के रास्ते में भले ही एक रुकावट आई लेकिन हम अपनी मंजिल से डिगे नहीं है।
दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु के तटील जिले कन्याकुमारी के सराकल्लविलाई गांव में खेतिहर किसान कैलाशवडीवू के घर 14 अप्रैल, 1957 को एक बालक ने जन्म लिया। मां चेल्लम और परिवार के अन्य लोगों ने बड़े ही प्यार से नाम रखा सिवन। उनकी प्रारंभिक शिक्षा सरकारी स्कूल में तमिल माध्यम से हुई। पढ़ाई के साथसाथ वह अपने अन्य भाई-बहनों के साथ खेतों में पिता के साथ काम करते थे। सिवन पढ़ाई में अच्छे थे, अत: पिता और परिवार के अन्य लोगों ने उन्हें प्रोत्साहित किया।
आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी ISRO Chief Dr Kailasavadivoo Sivan की
आर्थिक विपन्नता और तमाम दुश्वारियों के बावजूद सिवन ने नागेरकोयल के एसटी हिंदू कॉलेज से बीएससी (गणित) की पढ़ाई पूरी की। वह भी 100 प्रतिशत अंकों के साथ। वह स्नातक करने वाले अपने परिवार के पहले सदस्य रहे। इसके बाद पिता ने अपना मन बदल लिया। आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि सभी बच्चों की उच्च शिक्षा का खर्च उठा पाते। अत: सिवन के अन्य भाई-बहन उच्च शिक्षा हासिल नहीं कर सके। इसके बाद सिवन ने 1980 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआइटी) से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की। इसके बाद इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज (आइआइएससी) से इंजीनियरिंग में स्नातकोत्तर किया। 2006 में उन्होंने आइआइटी बांबे से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में पीएचडी की डिग्री हासिल की।
आर्थिक विपन्नता और तमाम दुश्वारियों के बावजूद सिवन ने नागेरकोयल के एसटी हिंदू कॉलेज से बीएससी (गणित) की पढ़ाई पूरी की। वह भी 100 प्रतिशत अंकों के साथ। वह स्नातक करने वाले अपने परिवार के पहले सदस्य रहे। इसके बाद पिता ने अपना मन बदल लिया। आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि सभी बच्चों की उच्च शिक्षा का खर्च उठा पाते। अत: सिवन के अन्य भाई-बहन उच्च शिक्षा हासिल नहीं कर सके। इसके बाद सिवन ने 1980 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआइटी) से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की। इसके बाद इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज (आइआइएससी) से इंजीनियरिंग में स्नातकोत्तर किया। 2006 में उन्होंने आइआइटी बांबे से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में पीएचडी की डिग्री हासिल की।
ISRO Chief Dr Kailasavadivoo Sivan का इसरो से रिश्ता
एमआइटी से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद सिवन 1982 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन से जुड़ गए। उन्होंने पोलर सेटेलाइट लांच व्हीकल (पीएसएलवी) परियोजना में अपना योगदान देना शुरू किया। इसके बाद संगठन ने विभिन्न अभियानों में काम करने का मौका दिया। अप्रैल 2011 में वह जीएसएलवी के परियोजना के निदेशक बने। सिवन के योगदान को देखते हुए जुलाई 2014 में उन्हें इसरो के लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम सेंटर का निदेशक नियुक्त किया गया। एक जून, 2015 को उन्हें विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (वीएसएससी) के निदेशक बना दिया गया। 15 जनवरी, 2018 को सिवन ने इसरो के मुखिया का पद्भार संभाला। इसलिए रॉकेटमैन हैं ISRO Chief Dr Kailasavadivoo Sivan
सिवन 1982 में इसरो में शामिल हुए थे। यहां उन्होंने लगभग हर रॉकेट कार्यक्रम में काम किया। इसरो के अध्यक्ष का पद्भार संभालने से पहले वह विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (वीएसएससी) के निदेशक थे, जो रॉकेट बनाता है। उन्हें साइक्रोजेनिक इंजन, पीएसएलवी, जीएसएलवी और रियूसेबल लांच व्हीकल कार्यक्रमों में योगदान देने के कारण इसरो का रॉकेटमैन कहा जाता है। उन्होंने 15 फरवरी, 2017 को भारत द्वारा एक साथ 104 उपग्रहों को प्रक्षेपित करने में अहम भूमिका निभाई थी। यह इसरो का विश्व रिकॉर्ड भी है। 15 जुलाई, 2019 को जब चंद्रयान-2 अपने मिशन के लिए उड़ान भरने ही वाला था कि कुछ घंटों पहले तकनीकी कारणों से इसे रोकना पड़ा। इसके बाद सिवन ने एक उच्चस्तरीय टीम बनाई, ताकि दिक्कत का पता लगाया जा सके और इसे 24 घंटे के अंदर ठीक कर दिया। सात दिनों बाद चंद्रयान-2 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया। मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 घंटे में तकनीकी खामी को दूर करने के लिए इसरो के वैज्ञानिकों की प्रशंसा की थी।ISRO Chief Dr Kailasavadivoo Sivan का बचपन अभावों से भरा रहा
बीते दिनों को याद करते हुए सिवन बताते हैं कि बचपन बहुत अभावों से भरा रहा। पिता की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह खेतों में काम करने के लिए मजदूरों का प्रबंध कर सकें। अत: परिवार के सभी लोगों खेती-किसानी में हाथ बंटाते थे। मेरा बचपन बिना जूतों और सैंडल के गुजरा है। जब मैं कॉलेज में था तो मैं खेतों में अपने पिता की मदद किया करता था। यही कारण था कि पिता ने दाखिला घर के पास वाले कॉलेज में कराया था। मैं कॉलेज तक धोती ही पहना करता था। जब मैं एमआइटी में गया तब पहली बार मैंने पैंट पहनी थी।संगीत सुनना और बागवानी करना है पसंद
सिवन को खाली समय में तमिल क्लासिकल संगीत सुनना और बागवानी करना पसंद है। उनकी पसंदीदा फिल्म राजेश खन्ना अभिनीत आराधना (1969) है। उन्होंने एक बार पत्रकारों से कहा था कि जब मैं वीएसएससी का निदेशक था तब मैंने तिरुवनंतपुरम स्थित अपने घर के बगीचे में कई तरह के गुलाब उगाए थे।यह भी पढ़ें-
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एमआइटी से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद सिवन 1982 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन से जुड़ गए। उन्होंने पोलर सेटेलाइट लांच व्हीकल (पीएसएलवी) परियोजना में अपना योगदान देना शुरू किया। इसके बाद संगठन ने विभिन्न अभियानों में काम करने का मौका दिया। अप्रैल 2011 में वह जीएसएलवी के परियोजना के निदेशक बने। सिवन के योगदान को देखते हुए जुलाई 2014 में उन्हें इसरो के लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम सेंटर का निदेशक नियुक्त किया गया। एक जून, 2015 को उन्हें विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (वीएसएससी) के निदेशक बना दिया गया। 15 जनवरी, 2018 को सिवन ने इसरो के मुखिया का पद्भार संभाला। इसलिए रॉकेटमैन हैं ISRO Chief Dr Kailasavadivoo Sivan
सिवन 1982 में इसरो में शामिल हुए थे। यहां उन्होंने लगभग हर रॉकेट कार्यक्रम में काम किया। इसरो के अध्यक्ष का पद्भार संभालने से पहले वह विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (वीएसएससी) के निदेशक थे, जो रॉकेट बनाता है। उन्हें साइक्रोजेनिक इंजन, पीएसएलवी, जीएसएलवी और रियूसेबल लांच व्हीकल कार्यक्रमों में योगदान देने के कारण इसरो का रॉकेटमैन कहा जाता है। उन्होंने 15 फरवरी, 2017 को भारत द्वारा एक साथ 104 उपग्रहों को प्रक्षेपित करने में अहम भूमिका निभाई थी। यह इसरो का विश्व रिकॉर्ड भी है। 15 जुलाई, 2019 को जब चंद्रयान-2 अपने मिशन के लिए उड़ान भरने ही वाला था कि कुछ घंटों पहले तकनीकी कारणों से इसे रोकना पड़ा। इसके बाद सिवन ने एक उच्चस्तरीय टीम बनाई, ताकि दिक्कत का पता लगाया जा सके और इसे 24 घंटे के अंदर ठीक कर दिया। सात दिनों बाद चंद्रयान-2 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया। मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 घंटे में तकनीकी खामी को दूर करने के लिए इसरो के वैज्ञानिकों की प्रशंसा की थी।ISRO Chief Dr Kailasavadivoo Sivan का बचपन अभावों से भरा रहा
बीते दिनों को याद करते हुए सिवन बताते हैं कि बचपन बहुत अभावों से भरा रहा। पिता की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह खेतों में काम करने के लिए मजदूरों का प्रबंध कर सकें। अत: परिवार के सभी लोगों खेती-किसानी में हाथ बंटाते थे। मेरा बचपन बिना जूतों और सैंडल के गुजरा है। जब मैं कॉलेज में था तो मैं खेतों में अपने पिता की मदद किया करता था। यही कारण था कि पिता ने दाखिला घर के पास वाले कॉलेज में कराया था। मैं कॉलेज तक धोती ही पहना करता था। जब मैं एमआइटी में गया तब पहली बार मैंने पैंट पहनी थी।संगीत सुनना और बागवानी करना है पसंद
सिवन को खाली समय में तमिल क्लासिकल संगीत सुनना और बागवानी करना पसंद है। उनकी पसंदीदा फिल्म राजेश खन्ना अभिनीत आराधना (1969) है। उन्होंने एक बार पत्रकारों से कहा था कि जब मैं वीएसएससी का निदेशक था तब मैंने तिरुवनंतपुरम स्थित अपने घर के बगीचे में कई तरह के गुलाब उगाए थे।यह भी पढ़ें-
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