Chandrayaan Moon Mission: चंद्रविजयी भारत: जानें चंद्रयान मिशन-1 से लेकर अब तक की पूरी कहानी
Know about ISRO Chandrayaan Mission अंतरिक्ष की दुनिया में भारत ने इतिहास रच दिया है। इससे पहले भी ISRO चंद्रयान-1 और चंद्रयान-2 को लॉन्च कर चुका है। इस खबर में हम आपको ISRO के तीनों मिशन के बारे में विस्तार से बताएंगे। चंद्रमा पर पानी की खोज चंद्रयान-1 मिशन का एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक लक्ष्य था। आइए इस खबर के माध्यम पिछले चंद्रयान मिशनों पर एक नजर डालते हैं।
- पहला मिशन, चंद्रयान-1 था जिसे साल 2008 में लॉन्च किया गया था और यह सफलतापूर्वक चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर गया था। 2019 में लॉन्च किया गया चंद्रयान -2 भी सफलतापूर्वक चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर गया, लेकिन उसे तब झटका लगा जब उसका लैंडर अपने इच्छित प्रक्षेपवक्र (intended trajectory) से भटक गया और एक सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी (software glitch) होने के कारण चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
- चंद्रयान-3 में एक स्वदेशी लैंडर मॉड्यूल (indigenous lander module), एक प्रोपल्शन मॉड्यूल और एक रोवर शामिल है। इसके उद्देश्यों में अंतरग्रहीय मिशनों के लिए आवश्यक नई प्रौद्योगिकियों का विकास और प्रदर्शन शामिल है।
चंद्रयान-1
- 22 अक्टूबर 2008 को भारत ने PSLV रॉकेट (PSLV rocket) का उपयोग करके चंद्रयान -1 अंतरिक्ष यान को पृथ्वी की कक्षा (Earth orbit) में लॉन्च किया था। कक्षा-उत्थान युद्धाभ्यास (orbit-raising maneuvers) करने के बाद, चंद्रयान-1 ने उसी साल 8 नवंबर को सफलतापूर्वक चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया था।
- अगले चार दिनों में, इसने चंद्रमा की सतह से लगभग 100 किलोमीटर (62 मील) ऊपर एक गोलाकार कक्षा (circular orbit) हासिल करने के लिए विशिष्ट अंतराल पर अपने इंजनों का उपयोग किया था। जिसके बाद ये आसानी से अंतरिक्ष यान को अपने 11 उपकरणों का उपयोग करके चंद्रमा का बारीकी से अध्ययन कर पाया था।
- द प्लैनेटरी सोसाइटी की एक रिपोर्ट के अनुसार, ऑर्बिटर के साथ संचार 29 अगस्त 2009 को टूट गया था, लेकिन मिशन ने चंद्रमा पर पानी की खोज सहित अपने मुख्य उद्देश्यों को पूरा कर लिया था।
- चंद्रयान-1 लॉन्च करने का विचार इसरो के पूर्व अध्यक्ष डॉ. के. कस्तूरीरंगन का था। उन्होंने भारत की महाशक्ति बनने की महत्वाकांक्षा में ISRO की भागीदारी की कल्पना की और चंद्रमा ऑर्बिटर (Moon orbiter) की अवधारणा को सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली थी।
- ISRO के पास पहले से ही भूस्थैतिक कक्षाओं (geostationary orbits) के लिए डिजाइन किए गए उपग्रह थे, जो पर्याप्त ईंधन ले जा सकते थे। कुछ संशोधनों के साथ, एक भूस्थैतिक उपग्रह (geostationary orbits) को चंद्र मिशन के लिए अनुकूलित किया जा सकता है। चंद्रयान-1 ISRO की क्षमताओं की स्वाभाविक प्रगति (natural progression) बन गया था।
- चंद्रमा पर पानी की खोज (Discovering water on the Moon) चंद्रयान-1 मिशन का एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक लक्ष्य था। NASA ने पानी की खोज में सहायता के लिए दो उपकरण, मिनिएचर सिंथेटिक एपर्चर रडार (Mini-SAR) और मून मिनरलोजिकल मैपर (M3) का योगदान दिया था।
- Mini-SAR ने ध्रुवीय क्रेटर से प्रतिबिंब में पानी के बर्फ के अनुरूप पैटर्न का पता लगाया, जबकि M3 ने विश्लेषण किया कि पानी की उपस्थिति की पुष्टि करने के लिए चंद्र सतह कैसे प्रतिबिंबित और अवरक्त प्रकाश को अवशोषित करती है। M3 ने चंद्रमा पर पानी और हाइड्रॉक्सिल के वितरण पर भी बहुमूल्य डेटा दिया। रिपोर्ट बताती है कि ये निष्कर्ष भविष्य के चंद्र अभियानों और चंद्रमा की उत्पत्ति को समझने के लिए महत्वपूर्ण थे।
चंद्रयान-2
चंद्रयान-2 एक भारतीय मिशन था जिसका उद्देश्य चंद्रमा पर एक ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर भेजना था। अंतरिक्ष यान को 22 जुलाई 2019 में एक संयुक्त इकाई के रूप में लॉन्च किया गया था। जबकि ऑर्बिटर सफलतापूर्वक चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर गया था, रोवर के साथ लैंडर चंद्रमा के दक्षिणी गोलार्ध में सफल लैंडिंग (southern hemisphere of the Moon) नहीं कर पाया था।- यह मिशन ISRO के पहले चंद्रयान-1 ऑर्बिटर के बाद का ही मिशन था, जिसे अक्टूबर 2008 में लॉन्च किया गया था और 10 महीने तक संचालित किया गया था।
- चंद्रयान-2 में भविष्य के ग्रहीय मिशनों के लिए उन्नत उपकरण और नई प्रौद्योगिकियाँ शामिल हैं।
- द प्लैनेटरी सोसाइटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि ऑर्बिटर को 7 साल तक काम करने के लिए डिजाइन किया गया था, जबकि लैंडर और रोवर को सफलतापूर्वक उतरने पर एक चंद्र दिवस तक काम करने की उम्मीद थी।
- चंद्रयान-2 मिशन के उद्देश्यों में चंद्रयान-1 मिशन के दौरान एकत्र किए गए आंकड़ों के आधार पर चंद्रमा के बारे में और अधिक जानकारी एकत्र करना शामिल है। ऑर्बिटर का लक्ष्य चंद्रमा की स्थलाकृति का मानचित्रण करना (map the Moon’s topography), सतह के खनिज विज्ञान और मौलिक प्रचुरता का अध्ययन करना, चंद्र बाह्यमंडल की जांच करना और हाइड्रॉक्सिल और जल बर्फ के संकेतों की खोज करना है।
- भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के संस्थापक विक्रम साराभाई के सम्मान में लैंडर का नाम विक्रम रखा गया था। इसका इच्छित लैंडिंग स्थल चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास, लगभग 70 डिग्री दक्षिण अक्षांश पर था।
चंद्रयान-3
- चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान ISRO द्वारा नियोजित तीसरा चंद्र अन्वेषण मिशन (lunar exploration mission) है। यह चंद्रयान-2 मिशन की निरंतरता (continuation of the Chandrayaan-2 ) के रूप में कार्य करता है और इसका उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग और घूमने की पूरी क्षमता का प्रदर्शन करना है।
- चंद्रयान -3 में एक लैंडर और रोवर कॉन्फिगरेशन शामिल है और इसे श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) SHAR से LVM3 (लॉन्च व्हीकल मार्क 3) द्वारा लॉन्च कर दिया गया है।
- एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रोपल्शन मॉड्यूल लैंडर और रोवर कॉन्फिगरेशन को लगभग 100 किमी की चंद्र कक्षा में पहुंचाएगा।
क्या है प्रोपल्शन मॉड्यूल?
आज 2 बजकर 35 मिनट पर चंद्रयान-3 लॉन्च किया जाएगा। प्रोपल्शन मॉड्यूल चंद्रयान-3 लॉन्च के बाद धीरे-धीरे धरती की कक्षा को छोड़कर चांद की ओर अपने कदम बढ़ाएगा। प्रोपल्शन मॉड्यूल लैंडर और रोवर को चंद्रमा की कक्षा यानी ऑर्बिट में 100 किलोमीटर ऊपर छोड़ देगा। प्रोपल्शन मॉड्यूल चंद्रमा के ऑर्बिट में लैंडर और रोवर से कम्युनिकेशन बनाए रखने के लिए चक्कर लगाता रहेगा।चंद्रयान-3 के बारे में SAC अहमदाबाद के निदेशक निलेश एम. देसाई ने गुजराती जागरण से खास बातचीत की। उन्होंने बातचीत के दौरान चंद्रयान-3 से जुड़े कई अहम जानकारी दी। इस दौरान गुजराती जागरण ने देसाई से चंद्रयान-3 को लेकर कई अहम सवाल पूछे।
चंद्रयान-2 में इतिहास बनाने में असफल रहे तो अब चंद्रयान 3 में क्या बदलाव किए गए हैं और इसकी विशेषताएं क्या हैं?उत्तर- साल 2019 में चंद्रयान-2 की क्रैश लैंडिंग के तुरंत बाद ISRO ने चंद्रयान-3 पर काम करना शुरू कर दिया था। सबसे पहले चंद्रयान-2 में रह गई खामी को पहचाना गया। इसके बाद चंद्रयान-3 के लिए ISRO ने सैटेलाइट के प्रोसेसिंग एल्गोरिदम में सुधार किया, जिससे चंद्रयान-3 का प्रदर्शन और बेहतर हो सके।
इस बार LDV (लेजर डॉपलर वेलोसीमीटर) नामक सेंसर यान की गति को तीन दिशाओं में मापेगा, जिससे सटीक एक्युरिसी मिलेगी। इसके साथ ही लेजर अल्टीमीटर, रडार अल्टीमीटर और कैमरा रिजॉल्यूशन में भी सुधार किया गया। हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर, प्रोसेसिंग एल्गोरिदम और सेंसर भी बदले गए हैं। इसके अलावा परीक्षण में होने वाली त्रुटियों को भी दूर किया गया है।
निदेशक निलेश एम. देसाई ने बताया कि चंद्रयान-2 में पांच प्रोपल्सन इंजन थे और प्रत्येक की पावर जनरेट करने की क्षमता 900pps थी। इस बार चंद्रयान-3 में चार इंजन हैं और प्रत्येक की पावर जनरेट करने की क्षमता 500pps है। टैंक की क्षमता 390 किलोग्राम से बढ़ाकर 470 किलोग्राम कर दी गई है। टैंक में लिक्विड हाइड्रोजन ईंधन और लिक्विड ऑक्सीजन होगी।
उन्होंने बताया कि चंद्रयान-3 का लैब और इंटीग्रेटेड फील्ड में परीक्षण किया जा चुका है। फील्ड परीक्षण में चंद्रमा पर लैंडिंग की स्थिति के लिए तैयार है और चंद्रयान-3 का अहमदाबाद, बेंगलुरु और श्रीहरिकोटा में परीक्षण किया गया है। इसके अलावा अलग-अलग वातावरण में चांद जैसी जगह बनाकर लैंडर को उतारा गया है। अगर यह लैंडर 3m/s की गति से चंद्रमा की सतह से टकराता है, तो भी यह खड़ा रहेगा।
इसके अलावा बेंगलुरु से 200 किमी दूर चित्रदुर्ग में हेलिकॉप्टर फ्लाइट की मदद से 2 किमी की ऊंचाई पर 150 मीटर नीचे चंद्रयान-3 का लैंड टेस्ट भी किया गया है। इसके अलावा, चंद्रमा पर स्थिति का आभास तैयार करके सेंसर रिज़ॉल्यूशन और लाइटिंग कन्डिशन का भी परीक्षण किया गया है।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
अभियान को GSLV मार्क 3 प्रक्षेपण यान द्वारा लॉन्च किया गया था। इस अभियान में भारत में निर्मित एक चंद्र ऑर्बिटर, एक रोवर और एक लैंडर शामिल था। इन्हें ISRO ने बनाया था। भारत ने चंद्रयान-2 को 22 जुलाई 2019 को श्रीहरिकोटा रेंज से भारतीय समयानुसार दोपहर 02:43 बजे सफलता पूर्वक लॉन्च किया था।
चंद्रयान-3 को लॉन्च करने की घोषणा 29 मई 2023 को ISRO के चीफ एस सोमनाथ ने की थी। उन्होंने बताया था कि चंद्रयान-3 को जुलाई में लॉन्च किया जाएगा। चंद्रयान को आज 14 जुलाई 2023 को लॉन्च किया जाएगा। इसे लॉन्च करने का समय दोपहर के 2:35 बजे का है।
चंद्रयान 3 ISRO का मिशन है। जिसका प्राथमिक उद्देश्य अगस्त 2023 की समय सीमा में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास ऊंचे इलाकों में एक लैंडर और रोवर को स्थापित करना और एंड-टू-एंड लैंडिंग और रोविंग क्षमताओं का प्रदर्शन करना है।
14 जुलाई को दोपहर 2.35 बजे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से लॉन्च होने वाला चंद्रयान-3 भारत का तीसरा चंद्र मिशन है। यह 2019 चंद्रयान-2 मिशन का अनुवर्ती है, जो आंशिक रूप से विफल हो गया था क्योंकि इसके लैंडर और रोवर चंद्रमा पर सॉफ्ट-लैंडिंग नहीं कर सके थे।