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Chandrayaan-3: भारत के माथे पर 'चांद' का टीका, ऐसा रहा 41 दिनों का सफर; दुनिया बोली- 'INDIA में है दम'

ISRO Chandrayaan-3 Full Details इसरो के अनुसार चंद्रमा की सतह और आसपास के वातावरण का अध्ययन करने के लिए लैंडर और रोवर (प्रज्ञान) के पास एक चंद्र दिवस (पृथ्वी के लगभग 14 दिन के बराबर) का समय होगा। हालांकि विज्ञानियों ने दोनों के एक और चंद्र दिवस तक सक्रिय रहने की संभावनाओं से इन्कार नहीं किया है। लैंडर माड्यूल में कुल पांच पेलोड लगे हैं।

By Jagran NewsEdited By: Narender SanwariyaUpdated: Thu, 24 Aug 2023 07:51 AM (IST)
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Chandrayaan-3: भारत के माथे पर 'चांद' का टीका, ऐसा रहा 41 दिनों का सफर; दुनिया बोली- 'INDIA में है दम'
Chandrayaan-3 Full Details:बेंगलुरु, एजेंसी। इसरो के महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-3 के लैंडर माड्यूल (एलएम) ने बुधवार शाम चंद्रमा की सतह को चूम कर अंतरिक्ष विज्ञान में सफलता की एक नई परिभाषा लिखी। विज्ञानियों के अनुसार इस अभियान के अंतिम चरण में सारी प्रक्रियाएं पूर्व निर्धारित योजनाओं के अनुरूप ठीक वैसे ही पूरी हुईं जैसा तय किया गया था। लैंडिंग के कुछ समय बाद इसरो के मिशन आपरेशन कांप्लेक्स के साथ लैंडर विक्रम का संचार संपर्क स्थापित हो गया। इसरो ने उतरने के दौरान विक्रम के कैमरे से ली गई तस्वीरें जारी कर कहा कि लैंडर ने उतरने के लिए अपेक्षाकृत सपाट सतह का चयन किया है।

रोवर प्रज्ञान भी लैंडर से बाहर निकला

आइएएनएस के अनुसार, देर रात रोवर प्रज्ञान भी चंद्रयान-3 लैंडर (Chandrayaan-3) से बाहर निकल रैंप पर आ चुका था। अंतरिक्ष में निजी कंपनियों के नियामक इनस्पेस के चेयरमैन पवन के गोयनका ने फोटो के साथ यह सूचना इंटरनेट मीडिया मंच एक्स पर साझा की। इस सफलता को केवल इसरो के विज्ञानी, भारत का हर आम और खास व्यक्ति ही टीवी स्क्रीन पर टकटकी बांधे नहीं देख रहा था, बल्कि विश्व के कई देशों में भी इसे पल-पल देखा गया।

रोसकोसमोस ने भारत को बधाई दी

ब्रिक्स सम्मेलन में प्रतिभाग कर रहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी जोहानिसबर्ग से वर्चुअली इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बने और सफल लैंडिंग के बाद तिरंगा लहराकर हर्ष व्यक्त किया। अब तक अमेरिका, तत्कालीन सोवियत संघ (रूस) और चीन ने चंद्रमा की सतह पर लैंडर उतारे हैं। रूस ने दक्षिणी ध्रुव पर उतरने के लिए लूना-25 यान भेजा था जो बीते रविवार इंजन बंद होने से क्रैश हो गया। अब चंद्रयान-3 की सफलता पर रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रोसकोसमोस ने भारत को बधाई दी है।

ऐसे हुई साफ्ट लैंडिंग

लैंडिंग प्रक्रिया के अंतिम 20 मिनट को इसरो ने भय वाला समय बताया था। इसमें भी अंतिम 17.04 मिनट बेहद तनाव भरे रहे। बेंगलुरु के पास ब्यालालू स्थित अपने इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क से इसरो ने लैंडिंग (Soft Landing) के तय समय से करीब दो घंटे पहले जरूरी कमांड भेजीं। इसके बाद चांद की सतह से करीब 30 किमी की ऊंचाई पर लैंडर पावर ब्रेकिंग चरण में पहुंचा। शाम 5.44 बजे इसके उतरने की पावर डिसेंट प्रक्रिया 25 किमी की ऊंचाई से आरंभ हुई। इसरो अधिकारियों के अनुसार चांद की सतह से 6.8 किलोमीटर की दूरी पर पहुंचने पर लैंडर के केवल दो इंजन का प्रयोग हुआ और बाकी दो इंजन बंद कर दिए गए। जिसका उद्देश्य सतह के और करीब आने के दौरान लैंडर को 'रिवर्स थ्रस्ट' (सामान्य दिशा की विपरीत दिशा में धक्का देना, ताकि लैंडिंग के बाद गति कम की जा सके) देना था।

एक चंद्र दिवस तक होगा अध्ययन

इसरो के अनुसार चंद्रमा की सतह और आसपास के वातावरण का अध्ययन करने के लिए लैंडर और रोवर (प्रज्ञान) के पास एक चंद्र दिवस (पृथ्वी के लगभग 14 दिन के बराबर) का समय होगा। हालांकि विज्ञानियों ने दोनों के एक और चंद्र दिवस तक सक्रिय रहने की संभावनाओं से इन्कार नहीं किया है। लैंडर माड्यूल में कुल पांच पेलोड लगे हैं। इसमें नासा का भी पेलोड है। लैंडर में लगे पेलोड से चांद की सतह का अध्ययन किया जाएगा। इसमें भेजे गए तीन पेलोड रंभा-एलपी, चेस्ट और इल्सा हैं। इनमें से एक चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की मिट्टी और चट्टान का अध्ययन करेगा। दूसरा पेलोड रासायनिक पदार्थों और खनिजों का अध्ययन करेगा और देखेगा कि इनका स्वरूप कब-कितना बदला है ताकि उनका इतिहास जाना जा सके। तीसरा पेलोड ये देखेगा कि चंद्रमा पर जीवन की क्या संभावना है और पृथ्वी से इसकी कोई समानता है भी कि नहीं। रोवर कुछ दूरी तक चलकर चांद की सतह का अध्ययन करेगा। चार पहियों वाले लैंडर और छह पहियों वाले रोवर का कुल वजन 1,752 किलोग्राम है। लैंडिंग को सुरक्षित बनाने के लिए लैंडर में कई सेंसर लगाए गए। इनमें एक्सीलरोमीटर, अल्टीमीटर, डाप्लर वेलोसीमीटर, इनक्लिनोमीटर, टचडाउन सेंसर और कैमरे शामिल हैं।

इसलिए अहम है दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र

चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र पर्यावरण और उनसे होने वाली कठिनाइयों के कारण बहुत अलग भूभाग हैं और इसलिए अभी अज्ञात बने हुए हैं। विज्ञानियों का मानना है कि इस क्षेत्र के हमेशा अंधेरे में रहने वाले स्थानों पर पानी की प्रचुर मात्रा हो सकती है। इसी कारण चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरना बहुत अहम माना जाता है। यहां जमी बर्फ से भविष्य के अभियानों के लिए आक्सीजन, ईंधन और पेयजल मिलने की संभावना भी है।

पूरे देश ने देखा ऐतिहासिक क्षण

लोग अपने विज्ञानियों की प्रतिभा पर गौरवान्वित हो रहे हैं। इसरो की वेबसाइट, यूट्यूब चैनल और फेसबुक पेज के साथ दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल पर इस ऐतिहासिक घटना का प्रसारण हुआ। जिसे देश के कोने-कोने में स्कूलों, कालेजों में भी दिखाया गया। कई स्थानों पर पूजा-हवन हुए, चंद्रयान-3 मिशन की सफलता की प्रार्थना की गई। यूट्यूब पर लैंडिंग को करीब 70 लाख लोगों ने देखा। चंद्रमा तक पहुंचने के लिए इसरो का यह तीसरा मिशन था। कई चरणों में ऐसे पूरा हुआ मिशन:14 जुलाई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से एलवीएम3-एम4 राकेट चंद्रयान-3 को लेकर रवाना हुआ था। इसके बाद इसरो ने पृथ्वी से दूर कई बार चंद्रयान-3 की कक्षाएं बदली थीं। पृथ्वी की अलग-अलग कक्षाओं में परिक्रमा करते हुए एक अगस्त को ¨स्लगशाट के बाद पृथ्वी की कक्षा छोड़कर यान चंद्रमा की कक्षा की ओर बढ़ा था। पांच अगस्त को इसने चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया। छह अगस्त को इसने पहली बार कक्षा बदली। इसके बाद नौ, 14 और 16 अगस्त को कक्षाओं में बदलाव कर यह चंद्रमा के और निकट पहुंचा। 17 अगस्त को चंद्रयान-3 के प्रोपल्शन माड्यूल और लैंडर माड्यूल अलग-अलग हो गए और लैंडर माड्यूल चंद्रमा की सतह की ओर बढ़ा। 18 अगस्त को पहली डीबू¨स्टग (धीमा करने की प्रक्रिया) पूरी हुई। 19-20 अगस्त की मध्यरात्रि दूसरी डीबू¨स्टग के बाद रोवर को अपने भीतर सहेजे लैंडर चांद की सबसे करीबी कक्षा में पहुंचा था। इस मिशन में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और यूरोपियन अंतरिक्ष एजेंसी का भी सहयोग मिला।

जब क्रैश हो गया था चंद्रयान-2 का लैंडर

सात सितंबर 2019 को चंद्रयान-2 मिशन अंतिम चरण में कामयाबी हासिल करते-करते रह गया था। लैंडर से जब संपर्क टूटा था तो वह अल्टीट्यूड होल्ड चरण और फाइन ब्रे¨कग चरण के बीच था। अंतिम टर्मिनल डिसेंट चरण में प्रवेश करने से पहले ही वह दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।

ये हैं साफ्ट लैंडिंग के अहम चरण

पहले से निर्धारित प्रक्रिया के तहत ही चंद्रयान-3 की लैंडिंग हुई। इस दौरान लैंडर के इंजन को सही समय और उचित ऊंचाई पर चालू किया गया। उपयुक्त मात्रा में ईंधन का उपयोग सुनिश्चित हुआ। नीचे उतरने के दौरान लैंडर में लगे कैमरे बताते रहे कि सतह कैसी है, यहां उतरा जा सकता है कि नहीं।

1. रफ ब्रेकिंग चरण: इस चरण के दौरान चंद्रमा की 25 किमी 3 134 किमी कक्षा में मौजूद चंद्रयान-3 का वेग करीब 1,680 मीटर प्रति सेकंड रहा। लैंडर ने 25 किलोमीटर की ऊंचाई से चंद्रमा की सतह पर उतरना शुरू किया। इस चरण में 690 सेकंड लगे। विक्रम लैंडर में लगे चार इंजनों को स्टार्ट कर वेग को धीरे-धीरे कम किया गया और लैंडर 7.4 किमी तक आया।

2. अल्टीट्यूड होल्ड चरण: लगभग 10 सेकंड तक ''अल्टीट्यूड होल्ड चरण'' की प्रक्रिया पूरी की गई। इस समय लैंडर 3.48 किमी की दूरी तय करते हुए क्षैतिज से ऊध्र्वाधर स्थिति की ओर झुका। ऊंचाई घटाकर 6.8 किमी और वेग 336 मीटर/सेकंड (क्षैतिज) और 59 मीटर/सेकंड (ऊध्र्वाधर) किया गया।

3. फाइन ब्रेकिंग चरण: 6.8 किमी की ऊंचाई पर केवल दो इंजनों का उपयोग किया गया। अन्य दो इंजन बंद कर दिए गए। फाइन ब्रे¨कग चरण 175 सेकंड तक चला। इसमें लैंडर पूरी तरह से ऊध्र्वाधर स्थिति में हो गया। ऊंचाई 6.8 किमी से 800/1,300 मीटर की गई। गति लगभग शून्य मीटर/सेकंड हुई, 12 सेकंड तक लैंडर हवा में रहा। इसके बाद 150 मीटर पर लैंडर 22 सेकंड तक हवा में रहा और अपने सेंसर व कैमरे का उपयोग करके सतह को जांचा कि नीचे कोई बाधा तो नहीं है।

4. टर्मिनल डिसेंट चरण: जब लैंडर निर्धारित लैंडिंग स्थल से करीब 60 मीटर पर था तो लैंडिंग को रिटार्गेट किया गया जिसमें 52 सेकंड लगे। अगले 38 सेकंड में यह 10 मीटर की ऊंचाई पर पहुंचा तो इसके सभी इंजन बंद कर दिए गए जिससे यह सीधे अपने पहियों पर सतह पर स्थिर हो सका। यह अंतिम चरण था। पूरी प्रक्रिया के दौरान विक्रम लैंडर पर लगे विशेष सेंसर और आनबोर्ड कम्प्यूटर लगातार इसकी दिशा को नियंत्रित करते रहे।

इसलिए 23 अगस्त की तिथि चुनी गई

न्यूयार्क टाइम्स के अनुसार चंद्रयान-3 मिशन में चांद के दक्षिणी ध्रुव पर साफ्ट लैंडिंग के लिए 23 अगस्त की तिथि चुनने की खास वजह रही। इस दिन लैंडिंग स्थल पर सूर्योदय होना तय था इस कारण यही तिथि चुनी गई। जब भारत का मिशन दो सप्ताह बाद पूरा होगा तो वहां सूर्यास्त हो चुका होगा। ऐसा इसलिए किया गया है ताकि लैंडर और रोवर अपनी गतिविधियों के संचालन के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग कर सकें। इन दोनों में कई उपकरण और पेलोड लगे हैं जिनके लिए सौर ऊर्जा का प्रयोग हो सकेगा।

चंद्रयान-3 का ऐसा रहा सफर

14 जुलाई : एलवीएम-3 एम-4 व्हीकल के माध्यम से चंद्रयान-3 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से सफलतापूर्वक छोड़ा गया। चंद्रयान-3 ने नियत कक्षा में अपनी यात्रा शुरू की।

15 जुलाई : इसरो ने कक्षा बढ़ाने की पहली प्रक्रिया सफलतापूर्वक पूरी की। यान 41762 किलोमीटर 3 173 किलोमीटर की कक्षा में पहुंचा।

17 जुलाई : कक्षा बढ़ाने की दूसरी प्रक्रिया को अंजाम दिया गया। चंद्रयान-3 ने 41603 किलोमीटर 3 226 किलोमीटर कक्षा में प्रवेश किया।

22 जुलाई : अन्य कक्षा में प्रवेश की प्रक्रिया पूरी हुई।25 जुलाई : इसरो ने एक बार फिर कक्षा बढ़ाई। चंद्रयान-3 71351 किलोमीटर 3 233 किलोमीटर की कक्षा में पहुंचा।

एक अगस्त : इसरो ने 'ट्रांसलूनर इंजेक्शन' (एक तरह का तेज धक्का) को सफलतापूर्वक पूरा किया और अंतरिक्ष यान को ट्रांसलूनर कक्षा में स्थापित किया। इसके साथ यान 288 किलोमीटर 3 369328 किलोमीटर की कक्षा में पहुंच गया।

पांच अगस्त : चंद्रयान-3 की लूनर आर्बिट इनजर्शन (चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने की प्रक्रिया) सफलतापूर्वक पूरी हुई। यान 164 किलोमीटर 3 18074 किलोमीटर की कक्षा में पहुंचा।

छह अगस्त : यान चंद्रमा के निकट 170 किलोमीटर 3 4313 किलोमीटर की कक्षा में पहुंचा। अंतरिक्ष एजेंसी ने चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश के दौरान चंद्रयान-3 द्वारा लिया गया चंद्रमा का वीडियो जारी किया।

नौ अगस्त : चंद्रमा के निकट पहुंचने की एक और प्रक्रिया पूरी होने के बाद चंद्रयान-3 की कक्षा घटकर 174 किलोमीटर 3 1437 किलोमीटर रह गई।

14 अगस्त : चंद्रमा के निकट पहुंचने की एक और प्रक्रिया पूरी। यान 151 किलोमीटर 3 179 किलोमीटर की कक्षा में पहुंचा।

16 अगस्त : 'फायरिंग' की प्रक्रिया पूरी होने के बाद यान को 153 किलोमीटर 3 163 किलोमीटर की कक्षा में पहुंचाया गया। यान में एक राकेट होता है, जिससे उपयुक्त समय आने पर यान को चंद्रमा के और करीब पहुंचाने के लिए विशेष 'फायरिंग' की जाती है।

17 अगस्त : लैंडर माडयूल को प्रोपल्सन माड्यूल से अलग किया गया।

19 अगस्त : इसरो ने लैंडर माड्यूल की कक्षा को घटाने के लिए डी-बूसटिंग की प्रक्रिया की। लैंडर माड्यूल अब चंद्रमा के निकट 113 किलोमीटर 3 157 किलोमीटर की कक्षा में पहुंचा।

20 अगस्त : लैंडर माड्यूल की एक और डी-बू¨स्टग यानी कक्षा घटाने की प्रक्रिया पूरी की गई। लैंडर माड्यूल 25 किलोमीटर 3 134 किलोमीटर की कक्षा में पहुंचा।

21 अगस्त : चंद्रयान-2 आर्बिटर ने औपचारिक रूप से चंद्रयान-3 लैंडर माड्यूल का 'वेलकम बडी' (स्वागत दोस्त) कहकर स्वागत किया। दोनों के बीच दो तरफा संचार कायम हुआ।

22 अगस्त : इसरो ने चंद्रयान-3 के लैंडर पोजिशन डिटेक्शन कैमरा (एलपीडीसी) से करीब 70 किलोमीटर की ऊंचाई से ली गई चंद्रमा की तस्वीरें जारी कीं। 23 अगस्त : शाम छह बजकर चार मिनट पर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 के लैंडर माड्यूल की सुरक्षित एवं सॉफ्ट लैंडिंग हुई।