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Exclusive Interview Chandrayaan-3: चार साल की मेहनत के बाद तैयार हुआ चंद्रयान-3, SAC के निदेशक ने सुनाई कहानी

Know Fact About Chandrayaan-3 चंद्रयान-3 मिशन चंद्रयान-2 से काफा एडवांस है। चंद्रयान में रह गई त्रुटियों का पता लगाने के बाद चंद्रयान-3 में लगभग 21 बदलाव किए गए हैं जिनमें एल्गोरिदम प्रोसेसिंग सेंसर और हार्डवेयर में बदलाव शामिल हैं। चंद्रयान 3 का ज्यादातर काम अहमदाबाद स्थित स्पेस एप्लिकेशन्स सेंटर (SAC) में किया गया है। जानें चंद्रयान-3 से जुड़े सभी सवालों के जवाब।

By Devshanker ChovdharyEdited By: Devshanker ChovdharyUpdated: Mon, 10 Jul 2023 01:38 PM (IST)
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चार साल की मेहनत के बाद तैयार हुआ चंद्रयान-3।
किशन प्रजापति, अहमदाबाद। Chandrayaan-3: चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) की लॉन्चिंग बस कुछ ही दिन दूर है। चंद्रयान-3 इसरो का ड्रीम प्रोजेक्ट है, जिसे 14 जुलाई को लॉन्च किया जाएगा। साल 2019 में चंद्रयान 2 की क्रैश लैंडिंग के बाद ISRO की टीम ने चंद्रयान-3 के लिए काम शुरू किया था।

चंद्रयान-3 मिशन, चंद्रयान-2 से काफा एडवांस है। चंद्रयान में रह गई त्रुटियों का पता लगाने के बाद चंद्रयान-3 में लगभग 21 बदलाव किए गए हैं, जिनमें एल्गोरिदम प्रोसेसिंग, सेंसर और हार्डवेयर में बदलाव शामिल हैं। चंद्रयान 3 का ज्यादातर काम अहमदाबाद स्थित स्पेस एप्लिकेशन्स सेन्टर (यानी SAC- Space Applications Centre) में किया गया है।

चंद्रयान-3 के बारे में SAC अहमदाबाद के निदेशक निलेश एम. देसाई ने गुजराती जागरण से खास बातचीत की। उन्होंने बातचीत के दौरान चंद्रयान-3 से जुड़े कई अहम जानकारी दी।

सवाल: चंद्रयान-2 में इतिहास बनाने में असफल रहे तो अब चंद्रयान 3 में क्या बदलाव किए गए हैं और इसकी विशेषताएं क्या हैं?

जवाबः साल 2019 में चंद्रयान-2 की क्रैश लैंडिंग के तुरंत बाद ISRO ने चंद्रयान-3 पर काम करना शुरू कर दिया था। सबसे पहले चंद्रयान-2 में रह गई खामी की चिह्नित की गई। इसके बाद चंद्रयान-3 के लिए इसरो ने सैटेलाइट के प्रोसेसिंग एल्गोरिदम में सुधार किया, जिससे चंद्रयान-3 के प्रदर्शन सुधारेगा।

इस बार LDV (लेजर डॉपलर वेलोसीमीटर) नामक सेंसर यान की गति को तीन दिशाओं में मापेगा। जिस से सचोट एक्युरिसी मिलेगी। तो लेजर अल्टीमीटर, रडार अल्टीमीटर और कैमरा रिजॉल्यूशन में भी सुधार किया गया है। इसके साथ ही हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर, प्रोसेसिंग एल्गोरिदम और सेंसर भी बदले गए हैं। इसके अलावा परीक्षण में होने वाली त्रुटियों को भी दूर किया गया है।

निदेशक निलेश एम. देसाई ने बताया कि चंद्रयान-2 में पांच प्रोपल्सन इंजन थे और प्रत्येक की पावर जनरेट करने की क्षमता 900pps थी। इस बार चंद्रयान-3 में चार इंजन हैं और प्रत्येक की पावर जनरेट करने की क्षमता 500pps है। टैंक की क्षमता 390 किलोग्राम से बढ़ाकर 470 किलोग्राम कर दी गई है। टैंक में लिक्विड हाइड्रोजन ईंधन और लिक्विड ऑक्सीजन होगी।

उन्होंने बताया कि चंद्रयान-3 का लैब और इंटीग्रेटेड फील्ड में परीक्षण किया जा चुका है। फील्ड परीक्षण में चंद्रमा पर लैंडिंग की स्थिति को तैयार किए गए हैं और चंद्रयान-3 को अहमदाबाद, बेंगलुरु और श्रीहरिकोटा में परीक्षण किया गया है। इसके अलावा अलग-अलग वातावरण में चांद जैसी जगह बनाकर लैंडर को उतारा गया है। अगर यह लैंडर 3m/s की गति से चंद्रमा की सतह से टकराता है, तो भी यह खड़ा रहेगा।

इसके अलावा बेंगलुरु से 200 किमी दूर चित्रदुर्ग में हेलिकॉप्टर फ्लाइट की मदद से 2 किमी की ऊंचाई पर 150 मीटर नीचे चंद्रयान-3 का लैंड टेस्ट भी किया गया है। इसके अलावा, चंद्रमा पर स्थिति का आभास तैयार करके सेंसर रिज़ॉल्यूशन और लाइटिंग कन्डिशन का भी परीक्षण किया गया है।

(SAC अहमदाबाद के निदेशक नीलेश एम देसाई)

सवाल: इस अभियान में अहमदाबाद के वैज्ञानिकों का क्या योगदान है?

जवाबः स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (SAC) अहमदाबाद के वैज्ञानिकों की चंद्रयान मिशन में चार साल की कड़ी मेहनत शामिल है। इसके साथ ही इसमें लगभग 350 ISRO और 70 SAC के इंजीनियरों और कुल मिलाकर 1000 से अधिक ISRO के लोगों का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष योगदान है।

उन्होंने बताया कि लैंडर पर 4 LI कैमरे और रोवर पर RI कैमरे अहमदाबाद में बनाए गए हैं। RI कैमरा लैंडर को देखता रहेगा और विभिन्न एंगल से तस्वीरें क्लिक करेगा। इसके अलावा रोवर के पहिये में इसरो का लोगो है, जिसकी छाप चंद्रमा की सतह पर पड़ेगी और फोटो खींचकर भी भेजेगा।

इसके अलावा, लैंडर में शामिल KaRa रडार अल्टीमीटर, हैज़र्ड डिटेक्शन एंड अवॉइडेंस (HDA) सिस्टम और LHDAC कैमरा भी SAC, अहमदाबाद में बनाऐ गये हैं। ये सभी सेंसर तब काम करना शुरू कर देंगे, जब लैंडर लैंडिंग स्थल से 8 किमी दूर होगा और इसका उपयोग तब तक किया जा सकता है जब तक कि लैंडर चंद्रमा की सतह तक नहीं पहुंच जाता।

सवाल: जहां सॉफ्ट लैंडिंग होगी उस जगह को क्यों और कैसे चुना गया है?

जवाबः चंद्रमा पर अब तक अधिकांश देश विषुववृत (Equator) पर उतर चुके हैं, क्योंकि वहां चंद्रमा की सतह समतल है। इसरो ने चंद्रमा पर दक्षिणी ध्रुव पर सुरक्षित लैंडिंग एरिया ढूंढ लिया है। लैंडर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर 70 डिग्री लेटीट्युड पर उतरेगा जहां आज तक कोई नहीं उतरा है, इससे पहले चीन ने 45 डिग्री लेटीट्युड पर अपना लैंडर उतारा था।

अगर चुनी की गई पहली साइट लैंडर को योग्य नहीं लगी, तो वह उससे 60 मीटर दूर किसी अन्य साइट पर उतरेगा। अगर हमारा लैंडर इन दोनों जगहों पर नहीं उतरता है तो वह ऑटोनॉमस लैंडिंग करेगा। 12 डिग्री तक की ऊंचाई पर उतरने पर भी लैंडर सीधा खड़ा रहेगा।

सवाल: सुरक्षित लैंडिंग के लिए क्या तैयारी की गई है?

जवाबः चंद्रयान-3 चंद्रमा की कक्षा में आने के बाद, लैंडिंग से आठ घंटे पहले, हम ऑर्बिटर (OHRC) कैमरे के माध्यम से 100 किमी की ऊंचाई से चंद्रमा की तस्वीर क्लिक करेंगे। जिसमें लैंडिंग साइट दिखाई देगी। इसके दो घंटे बाद चंद्रयान-3 ओरबीट में होगा। 23 अगस्त को कोई दिक्कत नहीं होगी, तो लैंडिंग करा दी जाएगी। अगर लैंडिंग की परिस्थितियां अनुकूल नहीं रहीं, तो लैंडिंग 23 अगस्त की बजाय 27 अगस्त को होगी।

चंद्रयान-3 चंद्रमा की सतह पर उतरने से पहले 150 मीटर की ऊंचाई पर होवरिंग करेगा, जिसमें वह निर्धारित जगह देखेगा और सही जगह पर होने पर उतरेगा। साथ ही, अगर वह साइट लैंडिंग के लिए अयोग्य है, तो वह किसी अन्य पूर्व-निर्धारित साइट पर उतरेगा और इसके लिए 21 सेकंड अधिक समय लगेगा।

सवाल: इस अभियान में मेड इन इंडिया अवधारणा को कैसे लागू किया गया है?

जवाबः चंद्रयान 3 पर सैक (SAC) द्वारा निर्मित Ka-बैंड रडार अल्टीमीटर और हजार्ड डिटेक्शन एंड अवॉइडेंस सिस्टम का फेब्रिकेश भारत में प्राइवेट इन्डस्ट्री में की गई है। जबकि वेलोसिटोमीटर और LASA (लेजर अल्टीमीटर) बेंगलुरु में बनाए हैं। इसके अलावा, सभी मिकेनिकल फेब्रिकेशन भारत में जबकि अधिकांश इलेक्ट्रिक पार्ट्स (IC) विदेशों से इम्पोर्ट किए गए हैं।

सवालः इस अभियान में भारत की बड़ी और नामी कंपनियों का क्या योगदान और सपोर्ट है?

जवाबः लॉन्च व्हीकल के निर्माण में HAL, L&T और गोदरेज जैसी निजी एजेंसियों का सहयोग मिला है। रॉकेट स्पेयर पार्ट्स और सेटेलाइट के लिए बेंगलुरु की कंपनियों और पेलोड के लिए अहमदाबाद की कंपनियों का वेन्डर समर्थन मीला हुआ है।

सवाल: चंद्रमा पर In-Situ परीक्षण क्या है और यह कैसे उपयोगी होगा?

जवाबः चंद्रमा की सतह पर रोवर द्वारा किए गए प्रयोग को In-Situ प्रयोग कहा जाता है। लैंडर के चंद्रमा पर उतरने के लगभग चार घंटे बाद, रोवर निकल जाएगा और चंद्रमा की सतह पर प्रयोग करेगा, जहां रोवर जायेगा वहां परीक्षण करेगा। जिसमें चंद्रमा के वातावरण का अभ्यास, सॉइल कंपोजिशन, मिट्टी के रसायन और मिनरल्स के बारे में जानकारी जुटाएगा। जिसके बाद रोवर इस डेटा को लैंडर को भेजेगा। इसके बाद, लैंडर से डेटा भारत में इसरो, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिकी और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसियों के डीप स्पेस नेटवर्क के माध्यम से प्राप्त किया जाएगा और लैंडर से आने वाला सारा डेटा भारत के बेंगलुरु के ब्यलालुं में इकट्ठा किया जाएगा।

सवालः NGC क्या है और चंद्रमा पर उतरने के बाद लैंडर का मोनिटरिंग कैसे होगा?

जवाबः NGC का मतलब नेविगेशन गाइडन्स और कन्ट्रोल है। इसमें सभी सेंसर और एल्गोरिदम काम करते हैं। NGC सभी मूविंग सिस्टम में बहुत महत्वपूर्ण है। वैसे तो रॉकेट की अपनी NGC होती है। चंद्रमा पर उतरने के बाद लैंडर के चार सेंसर (पेलोड) चालू हो जाएंगे और इसका डेटा और लैंडर की स्थिति का मोनिटरिंग खुद किया जाएगा और यह सारी जानकारी भारत के ब्यलालुं स्थित डीप स्पेस नेटवर्क के माध्यम से उपलब्ध होगी।