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भारत रचेगा इतिहास, चंदा मामा की सतह पर Chandrayaan-3 उतरने के लिए तैयार; जानिए क्या होती है सॉफ्ट लैंडिंग?

भारत पर इस समय दुनिया के हर बड़े देश की निगाहें टिकी हुई हैं क्योंकि भारत इतिहास रचने वाला है। आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 14 जुलाई को मिशन चंद्रयान की सफलतम लॉन्चिंग की गई थी। वहीं चंद्रयान-3 की चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग 23 अगस्त 2023 की शाम पांच बजकर 45 मिनट पर हो सकती है।

By Anurag GuptaEdited By: Anurag GuptaUpdated: Sun, 20 Aug 2023 05:52 PM (IST)
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चंदा मामा के और करीब पहुंचा Chandrayaan-3 (जागरण ग्राफिक्स)
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। भारत पर इस समय दुनिया के हर बड़े देश की निगाहें टिकी हुई हैं, क्योंकि भारत इतिहास रचने वाला है। आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से रवाना हुआ चंद्रयान-3 चंदा मामा की सतह पर लैंडिंग के लिए तैयार है, लेकिन क्या आपको पता है कि सॉफ्ट लैंडिंग क्या होती है? इस प्रक्रिया को कैसे पूरा किया जाता है?

इस तरह के सवाल काफी लोगों के ज़हन में बार-बार उठ रहे हैं। ऐसे में हम आपको आज सॉफ्ट लैंडिंग के बारे में हर छोटी से छोटी जानकारी साझा करेंगे। यूं तो पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण बल, गति और भार की वजह से लैंडिंग के लिए तरह-तरह के उपाय हैं, लेकिन असल सवाल तो यही है कि चंद्रमा पर कैसे सॉफ्ट लैंडिंग होगी? हालांकि, इसके लिए चिंतित होने की जरूरत नहीं है। विस्तार से आपको सॉफ्ट लैंडिंग के हर एक पहलू के बारे में समझाएंगे।

क्या होती है सॉफ्ट लैंडिंग?

सरल शब्दों में कहा जाए तो सॉफ्ट लैंडिंग वह प्रक्रिया होती है जब किसी अंतरिक्षयान को किसी ग्रह पर इस प्रकार से उतारा जाए कि उस यान को किसी प्रकार की कोई क्षति न हो। चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग के लिए पूरा देश दुआ कर रहा है और विज्ञानियों की सांसें थमी हुई हैं, क्योंकि अभी तक किसी प्रकार की कोई तकनीकी खामी देखने को नहीं मिली है और सॉफ्ट लैंडिंग के साथ ही हिंदुस्तान एक नया इतिहास रचेगा।

हालांकि, आपको यह बता दें कि अंतरिक्षयान की लैंडिंग नॉर्मल विमान की लैंडिंग और पैराशूट की मदद से विमान से कूदे व्यक्ति की लैंडिंग से बेहद अलग होती है, क्योंकि यह लैंडिंग धरती के गुरुत्वाकर्षण बल के आधार पर होती है, लेकिन चंदा मामा की स्थिति अलग है और वहां पर धरती की तुलना में गुरुत्वाकर्षण बल भी बेहद कम है। हम बात भी तो अंतरिक्षयान की कर रहे हैं। इसलिए ज़हन में यह ख्याल बिल्कुल भी न लाएं कि पैराशूट की मदद से चंद्रयान को उतारा जाएगा।

महत्वपूर्ण है सॉफ्ट लैंडिंग

बता दें कि लैंडर चंद्रमा की सतह से लगभग 100 किमी की ऊंचाई से चंद्रमा पर उतरेगा। सॉफ्ट लैंडिंग काफी महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, क्योंकि इसमें रफ और फाइन ब्रेकिंग सहित कई जटिल श्रृंखला शामिल होती है। सॉफ्ट लैंडिंग के लिए चंद्रयान के नीचे लगे पांचों इंजन को ऑन किया जाएगा, यह वही इंजन हैं, जो विक्रम लैंडर को आगे बढ़ा रहे थे।

हालांकि, इंजन विपरीत दिशा में दबाव बनाएगा और लैंडिंग से कुछ समय पहले लैंडर की गति को जीरो कर देगा। जिसकी मदद से विक्रम लैंडर आराम से चंदा मामा की सतह पर उतरेगा, लेकिन इससे पहले विक्रम लैंडर में लगे सेंसर सही जगह की तलाश करेंगे, जहां पर लैंडिंग हो सके।

सॉफ्ट लैंडिंग के बाद छह पहियों वाला रोवर बाहर निकलेगा और फिर चंद्रमा के सतह की भौतिक विशेषताओं, सतह के करीब का वातावरण और सतह के नीचे क्या है, इसका अध्ययन करेगा।

कब होगी चंद्रयान-3 की लैंडिंग?

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) को रविवार को एक और सफलता हासिल हुई, जिसकी वजह से चंद्रयान-3 चंद्रमा के और भी ज्यादा करीब पहुंच गया है। चंद्रयान-3 की इस सफलता से विज्ञानी उत्साहित नजर आ रहे हैं, क्योंकि लैंडर मॉड्यूल को चंद्रमा के और करीब ले जाने वाली दूसरी डिबूस्टिंग (धीमा करने की प्रक्रिया) प्रक्रिया पूर्णत: सफल हो गई। इसरो ने सोशल मीडिया मंच 'एक्स' (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा,

दूसरे और अंतिम डिबूस्टिंग अभियान में लैंडर मॉड्यूल सफलतापूर्वक कक्षा में और नीचे आ गया है। मॉड्यूल अब आंतरिक जांच प्रक्रिया से गुजरेगा। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर 'सॉफ्ट लैंडिंग' 23 अगस्त, 2023 की शाम पांच बजकर 45 मिनट पर होने की उम्मीद है।

कब हुई थी लॉन्चिंग?

इससे पहले चंद्रयान-3 का लैंडर मॉड्यूल और प्रणोदन मॉड्यूल गुरुवार को सफलतापूर्वक अलग हो गए थे। बता दें कि आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 14 जुलाई को मिशन चंद्रयान की सफलतम लॉन्चिंग की गई थी।

चंद्रयान-3 मिशन के लैंडर का नाम विक्रम साराभाई (1919-1971) के नाम पर रखा गया है, जिन्हें व्यापक रूप से भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक माना जाता है।

14 जुलाई को लॉन्चिंग के बाद चंद्रयान-3 पांच अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में दाखिल हुआ था। प्रणोदन और लैंडर मॉड्यूल को अलग करने की कवायद से पहले इसे छह, नौ, 14, 16 और 20 अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में नीचे लाने की कवायद की गई, ताकि यह चंद्रमा की सतह के बेहद नजदीक पहुंच सके।