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Chandrayaan-3 Mission: लैंडर-रोवर सहित 6 तरह के होते हैं मून मिशन, भारत का चंद्रयान-3 किस कैटेगरी का मिशन है?

चंद्रयान-3 मिशन दुनिया और चांद पर इतिहास लिखने के काफी नजदीक पहुंच चुका है। चंद्रयान-3 ने 14 जुलाई 2023 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से उड़ान भरी थी। 40 दिनों की लंबी यात्रा के बाद अब चंद्रयान 23 अगस्त को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा। भारत के साथ पूरी दुनिया की नजरें 23 अगस्त पर टिकी हैं जब भारत का मिशन चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा।

By Abhinav AtreyEdited By: Abhinav AtreyUpdated: Mon, 21 Aug 2023 04:11 PM (IST)
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भारत का चंद्रयान-3 एक लैंडर और रोवर मिशन है (फोटो, जागरण)
जागरण स्पेशल, ऑनलाइन डेस्क। चंद्रयान-3 मिशन दुनिया और चांद पर इतिहास लिखने के काफी नजदीक पहुंच चुका है। चंद्रयान-3 ने 14 जुलाई 2023 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से उड़ान भरी थी। 40 दिनों की लंबी यात्रा के बाद अब चंद्रयान 23 अगस्त को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा। भारत के साथ में पूरी दुनिया की नजरें 23 अगस्त पर टिकी हैं, जब चंद्रयान-3 मिशन चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा और कामयाबी की नई इबारत लिखेगा।

इससे पहले 11 अगस्त को रूस द्वारा लॉन्च किए गए लूना मिशन चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने की कोशिश में रविवार को दुर्घटनाग्रस्त हो गया है। चंद्रमा पर खोज करने के लिए अमेरिका और रूस जैसे देशों में होड़ रही है। इसके साथ ही दुनिया के कई देश चांद पर अपना अंतरिक्ष यान भेजने की कोशिश कर रहे हैं। आइए जानते हैं कि आखिर मून मिशन कितने प्रकार के होते हैं?

फ्लाईबाय मिशन (Flyby):

फ्लाईबाय वो मिशन होते हैं जिनमें अंतरिक्ष यान चंद्रमा के पास से गुजारा जाता है, लेकिन उसके चारों ओर की कक्षा में नहीं पहुंच पाता। इन्हें या तो दूर से चंद्रमा का अध्ययन करने के लिए डिज़ाइन किया जाता है या फिर किसी अन्य ग्रह, पिंड या अंतरिक्ष में खेज के लिए भेजा जाता है। फ्लाईबाय मिशन में अंतरिक्ष यान आकाशीय पिंड के पास से गुजरते हैं। अमेरिका ने शुरुआती दौर में पायनियर 3 और 4 और तत्कालीन संयुक्त रूस ने लूना 3 जैसे फ्लाईबाई मिशन अंतरिक्ष में भेजे थे।

ऑर्बिटर मिशन (Orbiter):

ऑर्बिटर मिशन किसी ग्रह या पिंड का अध्ययन करने का सबसे आम तरीका है। ऑर्बिटर मिशन वो अंतरिक्ष यान होते हैं जिन्हें चंद्रमा के ऑर्बिट में जाने और चांद की सतह और वायुमंडल का लंबे समय तक अध्ययन करने के लिए डिजाइन किया जाता है। भारत का चंद्रयान-1 एक ऑर्बिटर था। अब तक केवल चंद्रमा, मंगल और शुक्र पर ही किसी अंतरिक्ष यान की लैंडिंग संभव हो पाई है। वहीं, किसी भी अन्य ग्रह या पिंडों का अध्ययन ऑर्बिटर या फ्लाईबाई मिशनों के जरिए ही किया गया है।

इम्पैक्ट मिशन (Impact):

इम्पैक्ट मिशन ऑर्बिटर मिशन का विस्तार हैं। इसमें मुख्य अंतरिक्ष यान चांद के चारों ओर चक्कर लगाता रहता है, उस पर लगे एक या उससे ज्यादा उपकरण चंद्रमा की सतह पर अनियंत्रित लैंडिंग करते हैं। इसके अलावा वे प्रभाव के बाद नष्ट हो जाते हैं, लेकिन फिर भी अपने रास्ते में चंद्रमा के बारे में कुछ जरूरी जानकारी भेजते हैं।

लैंडर मिशन (Lander):

लैंडर मिशन में चंद्रमा पर अंतरिक्ष यान की सॉफ्ट लैंडिंग करवाई जाती है। यह मिशन ऑर्बिटर मिशन से काफी मुश्किल होता है। बता दें लैंडर मिशन के पहले 11 बार प्रयास किए जा चुके हैं, लेकिन सभी लैंडर असफल रहे हैं। हालांकि, चांद पर पहली लैंडिंग 31 जनवरी, 1966 को तत्कालीन संयुक्त रूस (USSR) के लूना 9 अंतरिक्ष यान ने की थी। इस मिशन ने चांद की सतह से पहली बार तस्वीर जारी की थी।

रोवर्स मिशन (Rover Mission):

रोवर्स मिशन लैंडर मिशन का विस्तार हैं। लैंडर अंतरिक्ष यान भारी होते हैं और उन्हें अपने स्टैंड पर खड़ा होना पड़ाता है, लैंडिंग के बाद यह स्थिर रहते हैं। यान पर मौजूद उपकरण किसी भी ग्रह या पिंड का नजदीक से खोज कर सकरते हैं और डेटा एकत्र कर सकते हैं। रोवर्स मिशन चंद्रमा की सतह के संपर्क में नहीं आ सकते या इधर-उधर नहीं जा सकते हैं। इस परेशनी को दूर करने के लिए रोवर्स को डिज़ाइन किया गया है।

मानव मिशन (Human Mission):

मानव मिशन में चंद्रमा की सतह पर अंतरिक्ष के उतारे जाने से लेकर यात्रियों को उतारना तक शामिल है। मानव मिशन सबसे मुश्किल होता है, इतिहास में अब तक सिर्फ अमेरिका की नासा एजेंसी ही चांद पर इंसान को उतार पाई है। अभी तक 1969 से 1972 के बीच दो-दो अंतरिक्ष यात्रियों की छह टीमें चंद्रमा पर उतरी हैं। इसके बाद चांद पर उतरने की कोई कोशिश नहीं की गई है। नासा का आर्टेमिस III 2025 में एक बार फिर 50 सालों के बाद एक बार फिर चांद की सतह पर जाने की तैयारी कर रहा है।

चंद्रयान-3 भारत की स्पेस एजेंसी इसरो का एक लैंडर और रोवर मिशन है।