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बदल रहा मलेरिया का पैटर्न लक्ष्य पाना हो रहा मुश्किल

भारत की योजना है कि 2030 तक देश से मलेरिया का पूरी तरह से सफाया कर दिया जाए, लेकिन इसके पैटर्न में जो परिवर्तन आया है, उसने इस लक्ष्य की पूर्ति को कठिन बना दिया है

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Thu, 03 May 2018 10:23 AM (IST)
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बदल रहा मलेरिया का पैटर्न लक्ष्य पाना हो रहा मुश्किल

नई दिल्ली [विजय कपूर]। मलेरिया होना न कोई नई बात है और न खबर, लेकिन इस समय जो देशभर में मलेरिया का खतरा मंडरा रहा है वह अप्रत्याशित है। भारत में मलेरिया के पैटर्न में परिवर्तन आ गया है। इसकी पुष्टि एक नए अध्ययन में हुई है जिसके नतीजे सम्मानित विज्ञान पत्रिका ‘प्लस वन’ में प्रकाशित हुए हैं। इस शोध के अनुसार देश में आमतौर से पी (प्लाज्मोडियम) विवैक्स के मामले रिपोर्ट होते थे जो कि मलेरिया का हल्का रूप है और जिसका आसानी से इलाज हो जाता है, लेकिन अब बड़ी संख्या में पी (प्लाज्मोडियम) फल्सिपरम के मामले रिपोर्ट हो रहे हैं जो इस रोग का भयंकर तथा घातक रूप है।

स्थिति की गंभीरता को समझने से पहले कुछ बुनियादी बातें समझ लीजिए। इंसानों में मलेरिया मादा एनोफिलीज मच्छर के जरिये फैलता है और यह प्लाज्मोडियम परजीवी की चार अलग प्रजातियों या प्रकारों से होता है-पी विवैक्स, पी फल्सिपरम, पी मलेरिए और पी ओवले। इनमें से पी फल्सिपरम मलेरिया का घातक रूप है, इसके संक्रमण से अक्सर मौत हो जाती है, जबकि पी विवैक्स से हल्का सा ही संक्रमण होता है, जिसे आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है।

भारत में मलेरिया के पैटर्न व वितरण में जो परिवर्तन आ रहा है उसे समझने के लिए आइसीएमआर-नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन ट्राइबल हेल्थ (एनआइआरटीएच), जबलपुर, मध्य प्रदेश के वैज्ञानिकों और उनके सहयोगियों ने देशभर से अलग-अलग मलेरिया संक्रमणों को मैप किया। 11 अलग भौगोलिक क्षेत्रों से 2300 से अधिक रोगियों के ब्लड सैंपल एकत्र किए गए, जिनमें मलेरिया- जैसे लक्षण थे। अधिक चिंताजनक बात यह निकली कि शोधकर्ताओं ने पाया कि मिश्रित संक्रमण का अनुपात बहुत ज्यादा निकला यानी रोगी दो या अधिक मलेरिया परजीवी प्रजातियों से संक्रमित थे।

शोधकर्ताओं ने पिछले 13 वर्ष के प्रकाशित डाटा से अपने डाटा की तुलना की ताकि मलेरिया परजीवी के वर्गगत संक्रमण की समीक्षा की जा सके, जो पीसीआर डायग्नोस्टिक टेस्ट नामक तकनीक से की गई डीएनए समीक्षा पर आधारित थी। भारत की योजना है कि 2030 तक देश से मलेरिया का पूरी तरह से सफाया कर दिया जाए, लेकिन मलेरिया के पैटर्न में जो परिवर्तन आया है, उसने इस लक्ष्य की पूर्ति को कठिन बना दिया है। ऐसा आइसीएमआर-एनआइआरटीएच के निदेशक प्रोफेसर अपरूप दास का कहना है। उन्होंने ही इस शोध का नेतृत्व किया था। जो मलेरिया संक्रमित सैंपल लिए गए थे, उनमें से 13 प्रतिशत मिश्रित संक्रमण के निकले यानी उनमें दोनों पी विवैक्स और पी फल्सिपरम परजीवी मौजूद थे। यह रोगी मुख्यत: भारत के मध्य तथा दक्षिण पश्चिम तट में से थे।

गौरतलब है कि मिश्रित संक्रमण को शोधकर्ता कठिन चुनौती मानते हैं, क्योंकि उनका संबंध गंभीर मलेरिया से है और ऐसे मामलों का उचित उपचार प्रोटोकॉल अभी स्पष्टता से परिभाषित नहीं है। लेकिन चिंता का एक और विषय है। पहले जो एक मलेरिया प्रजाति खास क्षेत्र तक सीमित थी, अब वह अन्य क्षेत्रों में भी दिखाई दे रही है। इस संदर्भ में प्रोफेसर दास बताते हैं कि मलेरिया की पी मलेरिए प्रजाति का खतरा बढ़ गया है। उनके अनुसार पहले यह प्रजाति (पी मलेरिए) केवल ओडिशा तक सीमित थी, लेकिन हमारा शोध बताता है कि अब यह पूरे भारत में फैल रही है और इस प्रजाति से होने वाले रोग के लिए न कोई डायग्नोसिस का तरीका है और न ही उपचार का कोई परिभाषित दिशा-निर्देश।

मिश्रित मलेरिया के बड़ी संख्या में मामले रिपोर्ट हुए हैं, हालांकि ये स्पष्ट रूप से तकनीकी या रीति-विज्ञान की चुनौतियों के कारण नहीं हैं। बहरहाल इस शोध से जो जानकारी मिली है उसके आधार पर सरकार को यह करना चाहिए कि मलेरिया समाप्त करने तथा उपचार के जो दिशा-निर्देश हैं, उनका मूल्यांकन करे ताकि जो नई चुनौतियां सामने आई हैं उनका सामना किया जा सके। इसके लिए जरूरी होगा कि मिश्रित मलेरिया और पी मलेरिए के डायग्नोसिस और उपचार के तरीकों को शोध द्वारा तलाश किया जाए और फिर जल्द ही परिभाषित दिशा-निर्देश जारी किए जाएं। मलेरिया गंभीर बीमारी का रूप धारण करता जा रहा है, इसलिए इस संदर्भ में न सिर्फ जल्द कदम उठाने की आवश्यकता है, बल्कि उचित बजट भी आवंटित किया जाना चाहिए।

ऐसा करना इसलिए भी जरूरी है ताकि मलेरिया के अधिक प्रतिरोधी स्ट्रेन को विकसित होने से रोका जा सके या उसमें देरी की जा सके। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मलेरिया रिसर्च, दिल्ली के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अभिनव सिन्हा का यह सुझाव है। उनका उक्त अध्ययन से कोई संबंध नहीं है। चुनौती बड़ी तथा कठिन है और फिर 2030 तक भारत को मलेरिया मुक्त करने का भी लक्ष्य है, इसलिए स्थिति को बेहतर तरीके से समझने के लिए बड़े अध्ययनों की योजना बनाई गई है। प्रोफेसर दास ने मीडिया को बताया है कि एक विशाल अध्ययन की योजना बनी है जिसके तहत मलेरिया प्रभावित सभी क्षेत्रों को लिया जाएगा और पीसीआर डायग्नोस्टिक टेस्ट किया जाएगा। इससे मलेरिया की असल महामारी की जानकारी मिलेगी और फिर यह तय किया जा सकेगा कि मलेरिया को नियंत्रित करने के लिए कौन-कौन से अलग तरीके अपनाए जाएं।

इससे अलग एक घटनाक्रम में बीते 18 अप्रैल को लंदन में उच्चस्तरीय मलेरिया सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें सरकारों, प्राइवेट सेक्टर, समाजसेवियों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मलेरिया पर विराम लगाने के लिए 4.1 बिलियन डॉलर सामूहिक तौर पर एकत्र करने का वायदा लिया गया। सम्मेलन ने राष्ट्रकुल देशों के नेताओं से आग्रह किया कि वे अगले पांच वर्षों में मलेरिया को आधा करने का वायदा करें। इससे मलेरिया के 350 मिलियन मामलों को रोका जा सकेगा और 6,50,000 जीवनों को बचाया जा सकेगा, विशेषकर बच्चों और गर्भवती महिलाओं को जिनको अधिक खतरा होता है।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर

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