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किसान के हितैषी इस पूर्व प्रधानमंत्री के बारे में पढ़ें सबकुछ

चौधरी चरण सिंह का जन्म तेइस दिसंबर, उन्नीस सौ दो को बाबूगढ़ छावनी के निकट नूरपुर गांव, तहसील हापुड़, जनपद-गाजियाबाद, कमिश्नरी मेरठ के एक साधारण जाट परिवार में हुआ था। चौधरी चरण सिंह के जीवन पर उनके पिता चौधरी मीर सिंह के नैतिक मूल्यों का गहरा प्रभाव पड़ा था। चौधरी चरण सिंह के जन्म के लगभग छह वर्ष बाद उनके पिता ने नूरपुर गांव को छोड़कर सपरिवार जानी गुर्द गांव आकर बस गए थे।

By Edited By: Updated: Wed, 29 May 2013 08:24 AM (IST)

नई दिल्ली। चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर, उन्नीस सौ दो को बाबूगढ़ छावनी के निकट नूरपुर गांव, तहसील हापुड़, जनपद-गाजियाबाद, कमिश्नरी मेरठ के एक साधारण जाट परिवार में हुआ था। चौधरी चरण सिंह के जीवन पर उनके पिता चौधरी मीर सिंह के नैतिक मूल्यों का गहरा प्रभाव पड़ा था। चौधरी चरण सिंह के जन्म के लगभग छह वर्ष बाद उनके पिता ने नूरपुर गांव को छोड़कर सपरिवार जानी गुर्द गांव आकर बस गए थे।

चौधरी चरण सिंह आगरा विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा ग्रहण की और गाजियाबाद में वकालत प्रारंभ की। वकालत जैसे पेशे में भी उन्होंने कभी भी गलत व्यक्ति का समर्थन नहीं किया और हमेशा ही न्याय का ही समर्थन किया।

कांग्रेस के लौहर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पारित हुआ था, जिससे प्रभावित होकर युवा चौधरी चरण सिंह राजनीति में सक्रिय हो गए। उन्होंने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया। 1930 में जब महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन का आह्वान किया तो युवा चौधरी ने हिंडन नदी पर नमक बनाकर उनका साथ दिया।

गांधीजी का साथ देने के कारण उन्हें 6 महीनों के लिए जेल भी जाना पड़ा। जेल से लौटने के बाद युवा चौधरी ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में चल रही आजादी की लड़ाई में अपने को समर्पित कर दिया। इसके बाद तो चरण सिंह को कई बार जेल भी जाना पड़ा, लेकिन वे महात्मा गांधी के नेतृत्व में चल रहे आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाते रहे।

अगस्त क्रांति के समय चरण सिंह भूमिगत हो गए और जी जान से 'गुप्त' क्रांतिकारी संगठन को खड़ा करने में लग गए। उन्होंने गाजियाबाद, हापुड़, मेरठ, मवाना, सरथाना और बुलंदशहर के गांवों में इस संगठन को खड़ा किया। इस संगठन के बदौलत उन्होंने ब्रितानी हुकूमत को कई बार चुनौती भी दी। ब्रितानी हुकूमत ने उन्हें देखते ही गोली मारने का आदेश भी पारित कर दिया था।

ब्रितानी पुलिस युवा चौधरी को टोह लेने में लगी रहती और वे वहां से सभाएं कर निकल जाते थे। युवा चौधरी जब एक बार पुलिस के गिरफ्त में आ गए तो उन्हें डेढ़ वर्ष की सजा हुई। जेल में उन्होंने 'शिष्टाचार' नामक एक किताब भी लिखी, जो भारतीय संस्कृति और समाज के शिष्टाचार के नियमों का एक बहुमूल्य दस्तावेज है।

आजादी के बाद वे समाज के किसानों की आवाज को जोर शोर से उठाने लगे। चौधरी चरण सिंह द्वारा तैयार किया गया जमींदारी उन्मूलन विधेयक राज्य के कल्याणकारी सिद्धांत पर आधारित था। एक जुलाई 1952 को यूपी में चौधरी चरण सिंह के बदौलत जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ और गरीबों को अधिकार मिला। उन्होंने लेखापाल के पद का सृजन भी किया। किसानों के हित में उन्होंने 1954 में उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून को पारित कराया।

चौधरी चरण सिंह गरीबों के आवाज उठाने के चलते एख साधारण कांग्रेसी कार्यकर्ता से जनाधार वाले नेता बन चुके थे, जिसके कारण उन्हें मुख्यमंत्री भी बनाया गया। पहली बार उन्हें 3 अप्रैल 1967 को यूपी का मुख्यमंत्री बनाया गया। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने किसानों और कुटीर उद्योग के विकास के लिए अनेक योजनाएं पारित की, जिससे लोगों को काफी लाभ हुआ। एक साल के बाद 17 अप्रैल 1968 को उन्होंने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। मध्यावधि चुनाव में उन्होंने अच्छी सफलता मिली और दुबारा 17 फरवरी 1970 के वे मुख्यमंत्री बने। दूसरे कार्यकाल में उन्होंने कृषि उत्पादन बढ़ाने की नीति पर जोर दिया और उर्वरकों पर से बिक्री कर उठा लिया। अपने कार्यकाल में उन्होंने सीलिंग से प्राप्त जमीनों को भूमिहीनों, गरीबों और हरिजनों में बांट दिया। गुंडा विरोधी अभियान चलाकर यूपी में उन्होंने कानून का राज चलाया।

जब वे केंद्र सरकार में गृहमंत्री बने तो उन्होंने मंडल और अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की। 1979 में वित्त मंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक [नाबार्ड] की स्थापना की। चौधरी चरण सिंह ने अपने कार्यकाल के दौरान उर्वरकों और डीजलों के दामों में कमी की और कृषि यंत्रों पर उत्पाद शुल्क घटाया। काम के बदले उन्होंने अनाज योजना को लागू किया। विलासिता की सामग्री पर चौधरी चरण सिंह ने भारी कर लगाए।

चौधरी चरण सिंह ने अपने योग्यता और प्रशासनिक क्षमता के बदौलत देश का प्रधानमंत्री के पद को भी सुशोभित किया हालांकि उनका प्रधानमंत्री का कार्यकाल अल्प समय के लिए ही रहा। अगर वे प्रधानमंत्री का एक सत्र भी पूरा करते तो इसमें संदेह नहीं कि आज किसानों की स्थिति कुछ और बयां करती। 29 मई 1987 को जनमानस का यह नेता इस दुनिया को छोड़कर चला गया। चौधरी चरण सिंह तो इस दुनिया को छोड़कर चले गए लेकिन लोगों के जेहन में उनका राजनीतिक प्रभाव पहले ही की तरह बरकरार है। उनके पुत्र चौधरी अजित सिंह और पौत्र जयंत सिंह आज भी अपनी चुनावी नैया उन्हीं के नाम पर पार कर पाते हैं।

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