बिलासपुर के किसानों के लिए खतरनाक गाजर घास अब बन गई वरदान
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में कृषि विभाग ने गाजर घास को कंपोस्ट खाद में तब्दील करने का तरीका खोज निकाला है।
By Manish PandeyEdited By: Updated: Sat, 01 Jun 2019 02:54 PM (IST)
बिलासपुर, जेएनएन। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में कृषि विभाग ने गाजर घास को कंपोस्ट खाद में तब्दील करने का तरीका खोज निकाला है। इसकी वजह से फसल बर्बाद करने वाली गाजर घास अब पैदावर बढ़ा रही है। जिले में इससे एक हजार से ज्यादा किसान लाभांवित हो रहे हैं। गाजर घास से न केवल फसलों को नुकसान होता बल्कि इसके संपर्क मंे आने वाले इंसान को कई तरह की बीमारी घेर लेती है। इसी वजह से किसान इसे अपना दुश्मन मानते हैं, लेकिन अब उनकी यह सोच बदलने लगी।
आसान है खाद बनाने की तरीका गाजर घास को कंपोस्ट खाद बनाने का नया तरीका बेहद आसान है। इसके लिए एक आयताकार गड्ढा बनाया जाता है। इसमंे सूखी व हरी गाजर घास और गोबर को डाला जाता है। साथ ही अन्य अवशिष्ट प्रदार्थ का भी उपयोग किया जा सकता है। इसके बाद दो इंच तक मिट्टी डाली जाती है। यह प्रक्रिया गड्डा भरने तक चलती है। छह महीने में गड्ढे में कंपोस्ट खाद तैयार हो जाती है। कृषि विभाग के अपर संचालक अनिल कौशिक के अनुसार घास से बनी 20 क्विंटल खाद एक हेक्टेयर खेत के लिए पर्याप्त होती है। खास बात यह है कि यह खाद रासायनिक खाद से बेहतर साबित हुई है। इनका उपयोग करने वाले किसानों के खेत में धान की पैदावार पहले ही अपेक्षा 20 प्रतिशत तक बढ़ गई है।
सफेट टोपी व चटक चांदनी भी है नाम गाजर घास का वैज्ञानिक नाम पारथेनियम हिस्ट्रोफोरस है। इसके अलावा कई दूसरे नामों से भी जाना जाता है। इसमंे कांग्रेस घास, सफेट टोपी, चटक चांदनी आदि प्रमुख है। भारत में पहली बार इस घास को 1955 में पुणे में देखा गया था। यह अमेरिका और कनाडा से आयातित गेहूं के साथ भारत पहुंची थी। अब देश के लाखों हेक्टेयर जमीन पर गाजर घास फैल चुकी है।
क्या है गाजर घास गाजर घास एक तरह की खरपतवार है, जो बड़ी तेजी से फैलती है। इसका एक पौधा एक हजार से 50 हजार तक सूक्ष्म बीज पैदा करता है, जो हवा के माध्यम से पूरे क्षेत्र में फैल जाते हैं। इसके बाद हल्की नमी मिलने पर पौधे का रूप धारण कर लेते हैं।लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप