NCPCR: मदरसों में बच्चों को नहीं दी जा रही उचित शिक्षा, एनसीपीसीआर ने सुप्रीम कोर्ट में दी दलील
सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को लिखित दलीलें देते हुए एनसीपीसीआर ने कहा कि मदरसे बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल होकर बच्चों के अच्छी शिक्षा के मौलिक अधिकार का उल्लंघन कर रहे हैं। आयोग का कहना है कि मदरसों में बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा व्यापक नहीं है। इसलिए यह शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के प्रविधानों के विरुद्ध है।
एएनआइ, नई दिल्ली। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने कहा है कि मदरसों में बच्चों को उचित तरीके से शिक्षा नहीं मिल रही है। सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को लिखित दलीलें देते हुए एनसीपीसीआर ने कहा कि मदरसे बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल होकर बच्चों के अच्छी शिक्षा के मौलिक अधिकार का उल्लंघन कर रहे हैं।
आयोग का कहना है कि मदरसों में बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा व्यापक नहीं है। इसलिए यह शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के प्रविधानों के विरुद्ध है। इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा 'यूपी बोर्ड आफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004' को रद करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका के सिलसिले में एनसीपीसीआर ने अपनी लिखित दलीलें दी है।
आयोग ने कहा है कि बच्चों को न केवल उपयुक्त शिक्षा बल्कि स्वस्थ वातावरण और विकास के बेहतर अवसरों से भी वंचित किया जा रहा है। ऐसे संस्थान गैर-मुस्लिमों को भी इस्लामी शिक्षा प्रदान कर रहे हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 28 (3) का उल्लंघन है। ऐसे संस्थान में शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चे स्कूल में प्रदान किए जाने वाले स्कूली पाठ्यक्रम के बुनियादी ज्ञान से वंचित होंगे।
आयोग ने कहा कि मदरसे न केवल शिक्षा के लिए असंतोषजनक और अपर्याप्त माडल पेश करते हैं, बल्कि उनके कामकाज का तरीका भी मनमाना है। शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 की धारा 29 के तहत निर्धारित पाठ्यक्रम और मूल्यांकन प्रक्रिया का यहां पूरी तरह से अभाव है। देश में बहुत से बच्चे मदरसों में जाते हैं। हालांकि, ये मदरसे बड़े पैमाने पर धार्मिक शिक्षा प्रदान करते हैं और मुख्यधारा की शिक्षा प्रणाली में उनकी बहुत कम भागीदारी है।
दारुल उलूम देवबंद द्वारा जारी किए गए फतवों के बारे में कई शिकायतें प्राप्त हुई हैं, जो देश में बड़ी संख्या में मदरसे चलाता है। दारुल उलूम देवबंद लगातार फतवे जारी कर रहा है, जिससे बच्चों में अपने ही देश के प्रति नफरत पैदा हो रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने पांच अप्रैल को इलाहाबाद हाई कोर्ट के 22 मार्च के फैसले पर रोक लगा दी, जिसमें 'यूपी बोर्ड आफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004' को असंवैधानिक और धर्मनिरपेक्षता तथा मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला करार दिया गया था।
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पार्डीवाला तथा जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट का यह निष्कर्ष कि मदरसा बोर्ड की स्थापना धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है, सही नहीं हो सकता है।