Move to Jagran APP

धुएं में उड़ रहा है इनका बचपन, खो बैठे अपनी जवानी

इनका बचपन जहरीले धुएं के बीच गुजरता है। शायद यही कारण है कि जिस उम्र में इन्हें जवान दिखना चाहिए उस उम्र में शरीर बुढ़ापे जैसा जर्जर हो जाता है। हम बात कर रहे हैं पाकुड़ जिले में बीड़ी बनाने वाले बच्चों की। किताब-कलम थामने की उम्र में जिले का बचपन बीड़ी बना रहा है। नतीजतन बचपन टीबी की गिरफ्त में है औ

By Edited By: Updated: Sat, 22 Feb 2014 12:30 PM (IST)

प्रकाश चंद्र मिश्र, पाकुड़। इनका बचपन जहरीले धुएं के बीच गुजरता है। शायद यही कारण है कि जिस उम्र में इन्हें जवान दिखना चाहिए उस उम्र में शरीर बुढ़ापे जैसा जर्जर हो जाता है। हम बात कर रहे हैं पाकुड़ जिले में बीड़ी बनाने वाले बच्चों की। किताब-कलम थामने की उम्र में जिले का बचपन बीड़ी बना रहा है। नतीजतन बचपन टीबी की गिरफ्त में है और जवानी बुढ़ापे सरीखी। कारण, गरीबी से जूझ रहे इन मासूम पर खुद व परिजन के पेट की आग बुझाने की जिम्मेदारी है।

अचरज है कि जिला प्रशासन की आंखें बाल श्रम के इस अपराध को नहीं देख पा रही हैं। बच्चों को इस कारोबार से मुक्त कराने के लिए कोई अभियान नहीं चला। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि जिले में टीबी मरीज की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। अब तक 300 से अधिक लोग टीबी से दम तोड़ चुके हैं। वर्तमान में 1200 से अधिक लोग इस रोग से जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं।

पढ़ें : पानी में रहने वाले दोनों बच्चों का इलाज संभव नहीं

जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ. वीके सिंह कहते हैं कि टीबी रोगियों के इलाज में स्वास्थ्य विभाग जुटा हुआ है। यह लाइलाज नहीं है। इसकी दवा सदर अस्पताल में मौजूद है।

पढ़ें : मुस्लिम दंपती भी गोद ले सकते हैं बच्चा

कहां-कितने बच्चे कार्यरत :

जिला मुख्यालय के कॉलेज रोड़ पर कीताझोर मुहल्ले में सड़क किनारे बीड़ी बनाते बच्चे आसानी से दिख जाते हैं। पाकुड़ सदर प्रखंड के नरोत्तमपुर, कुंवरपुर, देवतल्ला, झिकरहट्टी, मानिकापाड़ा, बेलडंगा, रामचंद्रपुर, भवानीपुर, संग्रामपुर, तिलभिट्टा, चांचकी, चांदपुर समेत करीब 40 ऐसे गांव हैं जहां बच्चे स्कूल जाने के बजाय सुबह से ही बीड़ी बनाने में जुट जाते हैं।

पढ़ें : 12 साल के बच्चे मांग रहे कंडोम, लड़कियां करा रहीं एड्स की जांच

कीताझोर निवासी गीता देवी से जब इस बारे में पूछा गया तो कहा-बेटा काम नहीं करेगा तो खाएगा क्या? इसके अलावा, आय का कोई अन्य साधन भी तो नहीं है। कुछ इसी तरह का कहना है नरोत्तमपुर की नफीसा का है। श्रम विभाग के अधिकारी की मानें तो उन्हें इस बारे में जानकारी नहीं है।

'बच्चे हो या जवान यदि वे अधिक समय तक तंबाकू के संपर्क में रहेंगे तो उन्हें सांस संबंधी बीमारी हो सकती हैं। इसके अलावा एलर्जी, कैंसर व छाती में दर्द आदि रोग के भी शिकार हो सकते हैं।'

डॉ. एसके झा, चिकित्सक, सदर अस्पताल, पाकुड़

'बीड़ी बनाने का काम कर रहे बच्चों को मुक्त कराने के लिए किसी तरह के अभियान चलाने का सरकार से निर्देश नहीं प्राप्त हुआ है। इसके चलते अभियान नहीं चलाया गया।

अर्जुन पांडेय, श्रम अधीक्षक, पाकुड़