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अगले दलाई लामा को लेकर गहरी साजिश में जुटा चीन! दबाव की कूटनीति में अमेरिका, जानिए क्या है भारत का रुख

अपने उत्तराधिकारी के पुनर्जन्म को लेकर मौजूदा दलाई लामा ने अहम बयान दिया है। हाल के वर्षों में इस विषय पर उनकी तरफ से दिया गया पहला बयान है। इस मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की शुरुआत होती दिख रही है। चीन की गहरी साजिश के खिलाफ इस पर अंतर्राष्ट्रीय लामबंदी हो सकती है। जानिए क्या है भारत का इस पर रुख।

By Jagran News Edited By: Sachin Pandey Published: Mon, 17 Jun 2024 06:18 PM (IST)Updated: Mon, 17 Jun 2024 06:18 PM (IST)
दलाई लामा ने कहा कि अपने पुनर्जन्म को लेकर अभी वह ज्यादा नहीं सोच रहे हैं। (File Photo)

जयप्रकाश रंजन, मैक्लोडगंज। अगले दलाई लामा के पुनर्जन्म को लेकर अपनी अलग साजिश करने में जुटे चीन को एक स्पष्ट संकेत देते हुए 14वें दलाई लामा ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि उन्होंने इस बारे में अभी सोचा नहीं है। दिल्ली से मैक्लोडगंज आये पत्रकारों के एक दल के साथ अपने कार्यालय में मुलाकात के दौरान तिब्बती बौद्ध धर्म गुरू ने कहा “अपने पुनर्जन्म को लेकर मैं अभी कुछ नहीं सोच रहा हूं। जब तक मैं जिंदा हूं, ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद करना चाहता हूं।''

यह हाल के वर्षों में पुनर्जन्म को लेकर दलाई लामा की तरफ से दिया गया पहला बयान है। इस मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की शुरुआत होती दिख रही है। दलाई लामा का यह बयान इसलिए महत्वपूर्ण है कि चीन सरकार की तरफ से 15वें दलाई लामा के पुनर्जन्म की प्रक्रिया को नियंत्रित करने की कोशिश की जा रही है। तिब्बत बौद्ध धर्म की मान्यता के मुताबिक दलाई लामा जब देह छोड़ते हैं तो उनका फिर पुनर्जन्म होता है।

मौजूदा दलाई लामा देते हैं संकेत

किस बच्चे को अगला दलाई लामा माना जाएगा, उसको लेकर मौजूदा दलाई लामा ही कई तरह से संकेत देते हैं। इस संकेत के आधार पर अगले धर्म गुरू की खोज की प्रक्रिया शुरू होती है, जो काफी लंबी और दुरूह होती है। चीन की कोशिश है कि उसके नियंत्रण वाले तिब्बत क्षेत्र में रहने वाले बौद्ध धर्मावलंबियों के बीच से नये दलाई लामा का चयन हो। चीन के विदेश मंत्रालय ने पूर्व में कहा है कि “नये दलाई लामा का चयन सिर्फ चीन की जमीन से ही होनी चाहिए और भारत को इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।''

चीन इस कोशिश के जरिए भारत में रहने वाले तिब्बती धर्मावलंबियों की अगुवाई में स्वायत्तता को लेकर चलाए जा रहे आंदोलन को कमजोर करना चाहता है। चीन ने वर्ष 1951 में तिब्बत पर कब्जा कर लिया था और उसके बाद वहां की संस्कृति व सभ्यता को नष्ट करने लगा था। इस वजह से 14वें दलाई लामा ने वर्ष 1957 में भारत शरणार्थी बन कर आ गये थे और यहीं से एक निर्वासित सरकार का संचालन किया जा रहा है।

अमेरिका ले रहा रुचि

दलाई लामा अगले वर्ष 90 वर्ष के हो जाएंगे। उनका स्वास्थ्य भी धीरे धीरे खराब रहा है। इस वजह से उनके पुनर्जन्म का मामला अब पूरी तरह से कूटनीतिक गतिरोध का हिस्सा भी बनने की तरफ अग्रसर है। अमेरिका भी इस प्रक्रिया में रूचि ले रहा है। वर्ष 2020 में ही अमेरिकी संसद में एक विधेयक पारित हुआ है, जिसमें यह प्रावधान है कि अगर तिब्बत की जनता के मतों के खिलाफ जा कर दलाई लामा के पुनर्जन्म के मामले पर चीन कोई फैसला करता है, तो उससे जुड़े चीनी अधिकारियों को अमेरिकी सरकार प्रतिबंधित कर सकती है।

हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव (प्रतिनिधि सभा) में विदेश मामलों की समिति के अध्यक्ष माइकल मैकॉल की अगुवाई में अमेरिकी सांसदों का एक दल 18 जून, 2024 को धर्मशाला आ रहा है। उसके ठीक एक दिन पहले 14वें दलाई लामा की तरफ से पुनर्जन्म पर बयान आया है, जिसमें वह परोक्ष तौर पर इस बारे में कहीं भी चल रहे प्रयासों को परोक्ष तौर पर खारिज कर दिया है। अमेरिकी संसद की पूर्व सभापति नैंसी पावेल व अमी बेरा जैसे बड़े सांसदों वाला अमेरिकी दल 19 जून, 2024 को दलाई लामा से मुलाकात करेगा।

अमेरिकी संसद में पास हुआ तिब्बत से जुड़ा कानून

यह भी सदन रहे कि पिछले बुधवार (12 जून) को अमेरिकी संसद में रिजॉल्व तिब्बत एक्ट (आरटीए) पारित करवाया गया है, जिसका मकसद चीन की सरकार और दलाई लामा के बीच तिब्बत की लंबित समस्या के समाधान के लिए विमर्श की शुरुआत करना है। इस पर अभी राष्ट्रपति जो बाइडन का हस्ताक्षर होना शेष है। अमेरिका की तरफ से सात वर्षों बाद संसदीय दल भेजना और तिब्बत से जुड़े एक अहम बिल को पारित करवाने से तिब्बत के बौद्ध मान्यता वाले लोगों में काफी उत्साह है।

तिब्बत की निर्वासित सरकार (केंद्रीय तिब्बती प्रशासन-सीटीए) में सूचना व अंतरराष्ट्रीय संबंधों की मंत्री नोरजिन डोल्मा का कहना है कि, “अमेरिकी संसदीय दल का यहां आना एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटना है। अमेरिका का यह बहुत ही बड़ा समर्थन है।'' उनका मानना है कि अमेरिकी संसद में भारी बहुमत से पारित विधेयक ने चीन के इस एजेंडे को खारिज कर दिया है कि तिब्बत उसका बहुत ही पुराना हिस्सा है। इसका दूरगामाी असर होगा।


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