India China Face-off: तवांग को लेकर हमेशा भड़काता रहा है चीन, रणनीतिक दृष्टिकोण से भी है इसकी अहमियत
चीन की तरफ से बार-बार तवांग में घुसपैठ करने के पीछे दो वजहें बताई जाती हैं। एक तो तवांग का रणनीतिक महत्व है। इस जिले की सीमा भारत व तिब्बत (चीन) के साथ ही भूटान से जुड़ा हुआ है। यहां से वह समूचे पूर्वोत्तर भारत की निगरानी कर सकता है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। वैसे तो चीन की टेढ़ी निगाहें समूचे वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर रही हैं लेकिन अरूणाचल प्रदेश के तवांग जिले को लेकर उसका मंसूबा बार-बार सामने आता रहा है। 1962 के युद्ध के समय चीन ने भारत के पूर्वोत्तर हिस्से में अपने सैनिकों का सबसे बड़ा जत्था तवांग के रास्ते भी असम तक घुसपैठ करवाया था। कुछ समय के लिए तवांग चीन के कब्जे में रहा था। अक्टूबर, 2021 में चीन के दो सौ सैनिकों का एक दल तवांग स्थित भारत-चीन-भूटान सीमा के पास भारतीय गांव में घुस आया था, जिसे बाद में भारतीय सैनिकों ने खदेड़ा था।
भारतीय सेना ने चीनी सैनिकों का किया डट कर सामना
पूर्वी लद्दाख स्थित एलएसी में चीनी घुसपैठ के बाद दोनो देशों के बीच होने वाली सैन्य वार्ताओं में भी तवांग की स्थिति पर चर्चा हुई है। जून, 2022 में गलवन घाटी में खूनी संघर्ष के बाद अगस्त, 2020 में चीन के सौ सैनिक तवांग के एक इलाके में तकरीबन पांच किलोमीटर तक भारतीय सीमा में घुस आये थे। इसके पहले इतनी बड़ी संख्या में वर्ष 2016 में तकरीबन दो से ढ़ाई सौ चीनी सैनिकों ने तवांग स्थित एक दूसरे प्वाइंट से भारतीय सीमा में प्रवेश किया था। हर बार जब भारतीय सेना की तरफ से सामना किया गया तो उन्हें वापस किया जा सके।
तवांग का है रणनीतिक महत्व
चीन की तरफ से बार-बार तवांग में घुसपैठ करने के पीछे दो वजहें बताई जाती हैं। एक तो तवांग का रणनीतिक महत्व है। इस जिले की सीमा भारत व तिब्बत (चीन) के साथ ही भूटान से जुड़ा हुआ है। यहां से वह समूचे पूर्वोत्तर भारत की निगरानी कर सकता है। दूसरा, तवांग का तिब्बत में प्रचलित बौद्ध धर्म से काफी गहरा नाता है और चीन इस आधार पर ही इस पर अपना दावा पेश करता है। छठे दलाई लामा की जन्मस्थली होने की वजह से भी तवांग का बौद्ध धर्मावलंबियों के बीच अपना खास महत्व है। वैसे चीन अरूणाचल प्रदेश के तकरीबन अधिकांश हिस्से पर अपना दावा पेश करता रहा है।
अरूणाचल प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में भारत तेजी से बना रहा सड़क
तवांग पर चीन के नजरिए से वाकिफ होने की वजह से ही भारत ने पिछले एक दशक में समूचे अरूणाचल प्रदेश में ढांचागत विकास को काफी तेज कर दिया है। चीन के लिए यह भी एक परेशानी का सबब है। भारत की तरफ से अरूणाचल प्रदेश से लगे इलाकों में कुल 63 सड़क परियोजनाओं का निर्माण किया जा रहा है। इससे चीन की सीमा तक भारतीय सैनिकों की पहुंच हो गई है। सनद रहे कि वर्ष 1962 में सड़क मार्ग नहीं होने की वजह से भारतीय सैनिकों को काफी नुकसान उठाना पड़ा था।
अरूणाचल प्रदेश में बढ़ाए गए सैनिक
चीन की घुसपैठ को रोकने के लिए तवांग व अरूणाचल प्रदेश के दूसरे इलाकों में भारत ने अपने सैनिकों की संख्या बढ़ा दी है। लेकिन चीन की तरफ से भी अपने इलाके में इसी गति से सड़कों, पुलों व सैन्य अड्डों का निर्माण किया गया है। यही वजह है कि देश के प्रमुख रणनीतिक विश्लेषक ब्रह्मा चेलानी ने तवांग में हुई हिंसक झड़प को एक बड़े खतरे के तौर पर बताते हुए कहा है कि, अप्रैल, 2020 में लद्दाख में भारतीय जमीन को हथियाने के बाद से ही दोनो देशों के बीच तनाव का मुद्दा मीडिया में छाया रहा है। तिब्बत-अरूणाचल प्रदेश का ताजा घटनाक्रम एक बड़े खतरे को रेखांकित करता है।
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