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CJI को किस बात की है चिंता? रिटायर होने से पहले खुद से पूछे ये चार सवाल

भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ का दो साल का कार्यकाल 10 नवंबर 2024 को समाप्त होगा। सीजेआई ने भूटान में जिग्मे सिंग्ये वांगचुक स्कूल ऑफ लॉ के तीसरे दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि मैंने देश की सेवा अत्यंत समर्पण के साथ की है। लेकिन मुझे इस बात की चिंता है कि मेरे कार्यकाल का मूल्यांकन कैसे करेगा?

By Jagran News Edited By: Narender Sanwariya Updated: Wed, 09 Oct 2024 10:12 PM (IST)
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भारत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (File Photo)

पीटीआई, नई दिल्ली। अगले महीने सेवानिवृत्त होने जा रहे प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने बुधवार को कहा कि उन्होंने इस डर और चिंता के बीच बेहद समर्पण के साथ देश की सेवा की कि इतिहास उनके कार्यकाल का कैसे मूल्यांकन करेगा। देश के 50वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में उनका कार्यकाल 10 नवंबर को समाप्त हो रहा है।

जस्टिस चंद्रचूड़ खुद करते हैं इन सवालों पर विचार

  • क्या मैंने वह सब हासिल किया जिनका मैंने लक्ष्य रखा था?
  • इतिहास मेरे कार्यकाल का मूल्यांकन कैसे करेगा?
  • क्या मैं कुछ अलग कर सकता था?
  • न्यायाधीशों और कानूनी पेशेवरों की भावी पीढ़ियों के लिए मैं क्या विरासत छोड़कर जाऊंगा?

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'इनमें से ज्यादातर प्रश्नों के उत्तर मेरे नियंत्रण के बाहर हैं और शायद इन सवालों में से कुछ के जवाब मुझे कभी नहीं मिलेंगे। लेकिन मुझे पता है कि पिछले दो वर्षों में मैं हर सुबह इस संकल्प के साथ जागा हूं कि पूरे समर्पण से अपना काम करूंगा और इस संतुष्टि के साथ सोने गया हूं कि मैंने अत्यंत समर्पण के साथ देश की सेवा की।'

भविष्य और अतीत के प्रति भय

कार्यक्रम में प्रधान न्यायाधीश ने पद छोड़ने के समय कमजोर होने के लिए क्षमा मांगी और कहा कि वह भविष्य और अतीत के प्रति भय और चिंताओं से बहुत अधिक व्याकुल थे। उन्होंने ये विचार भूटान में जिग्मे सिंग्ये वांगचुक स्कूल ऑफ लॉ के तीसरे दीक्षा समारोह में व्यक्त किए।

खुद से करें ये सवाल

उन्होंने कहा कि जब आप अपनी यात्रा की जटिलताओं को समझते हैं तो एक कदम पीछे हटने, पुनर्मूल्यांकन करने और खुद से यह पूछने से न डरें कि क्या मैं किसी मंजिल की ओर जा रहा हूं या मैं खुद की ओर जा रहा हूं? अंतर सूक्ष्म है, फिर भी गहरा है। आखिरकार, दुनिया को ऐसे नेताओं की जरूरत है जो उद्देश्य से प्रेरित हों, न कि सिर्फ महत्वाकांक्षा से।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि एक बार जब किसी को अपने इरादों और क्षमताओं पर विश्वास हो जाता है तो परिणामों के बारे में सोचना बंद करना और उन परिणामों की ओर जाने वाली प्रक्रिया व यात्रा को महत्व देना आसान हो जाता है।

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