बादल फटने का क्या होता है मतलब, पहाड़ों पर ही क्यों होते हैं ऐसे हादसे? फ्लैश फ्लड से जुड़े हर सवाल का जवाब
बादल फटना एक ऐसी आपदा है जिसमें कुछ ही मिनटों में सब कुछ तबाह हो जाता है। यह घटना तब होती है जब किसी क्षेत्र में कुछ ही समय में अत्यधिक बारिश हो जाती है आमतौर पर एक घंटे में 100 मिलीमीटर से अधिक। नमी और गर्म हवा के पहाड़ों से टकराने और ठंडी हवा से मिलने पर बादल फटते हैं।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पहाड़ों पर लगातार हो रही बारिश और भूस्खलन की चिंताओं के बीच बादल फटने की भी कई घटनाएं हो चुकी हैं। बादल फटना ऐसी आपदा है, जिसमें सब कुछ केवल सेकेंडों या मिनटों में मिट्टी में मिल जाता है। अचानक आया पानी का सैलाब अपने रास्ते में आने वाली हर एक चीज को बहा ले जाता है।
लेकिन आपके मन में भी सवाल आता होगा कि आखिर बादल फटते क्यों हैं? क्या ये घटनाएं प्राकृतिक आपदा हैं या इंसानों से इसका कोई संबंध भी है? क्या इसे रोका जा सकता है और बादल फटने की घटना आखिर कहते किसे हैं? आज आपको इनके जवाब देने की कोशिश करते हैं।
बादल फटने का क्या मतलब हुआ?
कई बार लोग बादल फटने की घटना को गलत समझ लेते हैं। लोगों को लगता है कि बादल फटना मतलब जैसे पानी से भरी प्लास्टिक की थैली का फटना। लेकिन असल में ऐसा होता नहीं है। दरअसल बादल फटने की घटना तब मानी जाती है, जब किसी इलाके में कई महीनों की बारिश सिर्फ कुछ मिनटों में हो जाती है।
इसे मापने के लिए एक पैमाना सेट किया गया है। माना जाता है कि अगर किसी इलाके में एक घंटे में 100 मिलीमीटर या उससे अधिक बारिश हो जाए, तो इसे बादल फटने कहते हैं। इससे एक छोटे से क्षेत्र में इतना अधिक पानी बरस जाता है कि स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती है।
क्यों फटते हैं बादल?
जब नमी और गर्म हवा पहाड़ से टकराकर ऊपर उठती है और ठंडी हवा से टकराती है, तो इससे बादल बनते हैं। लेकिन कई बार ये बादल अपने अंदर समाहित पानी की बूंदों को संभाल नहीं पाते हैं और अस्थिर हो जाते हैं। इसके बाद जबरदस्त बारिश होती है और इसे बादल फटना कहते हैं।
जानकार बताते हैं कि क्लाइमेट क्राइसिस इसे और बिगाड़ रहा है, क्योंकि गर्म होती हवा ज्यादा नमी पकड़ती है। बढ़ रही मानवीय गतिविधियों के कारण 10-15 साल में होने वाली घटनाएं अब हर साल सुनाई पड़ती हैं।
पहाड़ों पर ही ज्यादा घटनाएं क्यों?
आपने बादल फटने की घटनाएं पहाड़ी इलाकों में ज्यादा देखने को मिलती हैं। दरअसल मैदानी इलाकों के मुकाबले पहाड़ की जमीन ढलावदार और संकरी होती है। ऐसे में बारिश के पानी को रिसने का समय नहीं मिलता और वह तेजी से घाटियों की ओर बहता है।
पहाड़ों की ढीली मिट्टी और भूस्खलन के कारण यह फ्लैश फ्लड में तब्दील हो जाते हैं और पानी को खतरनाक बना देते हैं। भारत में फ्लैश फ्लड गाइडेंस सिस्टम 0-6 घंटे पहले तक अलर्ट दे देता है, लेकिन प्रशासन के सामने कई और चुनौतियां भी होती हैं। इस कारण इससे निपटने में अक्सर मुश्किल आती है।
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