दीपक व्यास, नई दिल्ली। इस समय देश में दो ऐसे बयानों की चर्चा है, जिसे सुनकर राजनीतिक जगत में ही नहीं, देश की आम जनता में भी हैरानी देखी गई। दक्षिण भारत के दो राज्यों आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु के मुख्यमंत्रियों ने हाल ही में ऐसे बयान दिए हैं, जिसकी पूरे देश में चर्चा है। पहले चंद्रबाबू नायडू उसके बाद तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने जनसंख्या नीति पलटने की बात कही। उन्होंने ऐसा बयान क्यों दिया। यह जानने से पहले पढ़ें कि उन्होंने बयान क्या दिया?
रविवार 20 अक्टूबर के दिन आंध्रप्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू ने बढ़ती उम्रदराज जनसंख्या पर चिंता जाहिर कर दी। साथ ही कहा कि आंध्रप्रदेश ही नहीं, दक्षिण के राज्यों को ज्यादा बच्चों को जन्म देना चाहिए। उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने वाले लोगों को लोकल इलेक्शन में पात्र बनाने के लिए बाकायदा एक कानून लाया जाएगा।
तमिलनाडु के सीएम स्टालिन ने बयान दिया कि एक दो नहीं बल्कि 16-16 बच्चे पैदा करना चाहिए। स्टालिन ने कहा कि पहले घर के बड़े बुजुर्ग नए वेडिंग कपल्स को 16 तरह की संपत्ति प्राप्त करने का आशीर्वाद प्रदान करते थे। शायद अब समय गया है कि 16 संपत्ति की जगह 16 बच्चों को जन्म दिया जाए।
दोनों मुख्यमंत्रियों ने क्यों दिया ऐसा बयान?
चंद्रबाबू नायडू और स्टालिन के बयानों के पीछे खास मकसद है परिसीमन से जुड़े नियम। संसद में सीटों के निर्धारण के साथ ही संसाधनों के आवंटन में जनसंख्या सबसे बड़ा आधार होता है। नियम के अनुसार 10 लाख की जनसंख्या पर एक लोकसभा सीट तय मानी जाती है। किसी विधायक या सांसद के मत का मूल्य भी जनसंख्या के अनुपात में ही तय होता है। इस समय उत्तर भारत के राज्यों के अनुपात में दक्षिण भारतीय स्टेट्स में जन्मदर अपेक्षाकृत कम है। यही कारण है कि आंध्र के सीएम चंद्रबाबू नायडू और तमिलनाडु के सीएम स्टालिन ने ऐसे बयान दिए हैं।
जनसंख्या वृद्धि के पीछे क्या हैं तर्क?
दक्षिण भारतीय राज्यों के नेतृत्वकर्ताओं में अपने उत्तर भारत की बजाय दक्षिणी राज्यों में आबादी बनाने के पीछे एकराय इतनी गहरी है कि स्टालिन और चंद्रबाबू नायडू अलग अलग विचारधाराओं और राजनीतिक गुटों में रहने के बावजूद जनसंख्या बढ़ाने को लेकर एक जैसी राय व्यक्त कर रहे हैं। हालांकि नायडू ने जहां ग्रामीण इलाकों में बढती वृद्ध आबादी और युवाओं के अर्बनाइजेशन यानी शहर की ओर रूख करने की बढ़ती दर का हवाला दिया। वहीं स्टालिन ने तो सीधे सीधे संसद की सीटों की संख्या का सुर छेड़ दिया।
नायडू की घोषणा से बीजेपी पसोपेश में
चंद्रबाबू नायडू जनसंख्या बढ़ाने की जिस नई पॉलिसी की बात कर रहे हैं, उससे एनडीए में शामिल पार्टियों में ही विरोधाभास नजर आ रहा है। साल 2000 में अटलजी की सरकार ने यानी बीजेपी ने नई जनसंख्या नीति लागू की थी। लेकिन इससे उलट, एनडीए में शामिल चंद्रबाबू नायडू की पार्टी दो से अधिक बच्चे पैदा करने को लेकर नियम कायदे बनाने की बात कर रही है। इससे एनडीए घटक की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी पसोपेश में है। महाराष्ट्र में अनुकंपा नियुक्ति की सुविधा से वे लोग वंचित रह जाते हैं, जिनके दो से अधिक बच्चे हैं।
दक्षिण के राज्यों में जनसंख्या वृद्धि के ताजा ऐलान के पीछे एक ही बड़ा मकसद है संसदीय सीटों का परिसीमन। लोकसभा चुनाव में उत्तर के राज्यों को जितना फायदा होता है, उससे कम लाभ दक्षिणी राज्यों को मिल पाता है। इसका कारण जनसंख्या है। दक्षिण के राज्यों की बजाय उत्तर भारत के स्टेट्स की जनसंख्या काफी ज्यादा है।
हिंदी पट्टी में लोकसभा सीटों की संख्या
- हिंदी पट्टी में लोकसभा सीटों की संख्या 225 है।
- सबसे ज्यादा 80 सीटें अकेले उत्तर प्रदेश में हैं।
- बिहार और झारखंड में क्रमश: 40 और 14 सीटें हैं।
- एमपी और सीजी में क्रमश: 29 और 11 सीटें हैं।
- राजस्थान में 25 तो हरियाणा में 10 सीटें हैं।
दक्षिणी राज्यों में सीटों की संख्या
- दक्षिण भारत के पांच केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना हैं।
- स्टालिन के तमिलनाडु में 39 लोकसभा सीटें हैं।
- केरल में 20 तो कर्नाटक में 28 लोकसभा सीटें आती हैं।
- आंध्रप्रदेश में 25 सीटें और तेलंगाना में 17 सीटें हैं।
- केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी में एक लोकसभा सीट है।
जनसंख्या और सीटों का क्या है गणित?
नियम के मुताबिक 10 लाख की जनसंख्या पर एक सांसद तय होता है। जनसंख्या के अनुपात में ही सीटें तय होती हैं। इस समय लोकसभा में 545 सदस्यों की स्ट्रेंथ है। यह 1971 की जनगणना पर आधारित है। 1971 में भारत की जनसंख्या 55 करोड़ तक पहुंच गई। इससे पहले आजादी के बाद जब पहली जनगणना हुई थी, तब भारत की आबादी 36 करोड़ थी।
देश की आबादी जब तेजी से बढ़ने लगी तो उसके मुताबिक संसाधनों की कमी महसूस होने लगी। इसे देखते हुए फैमिली प्लानिंग पर सरकार ने जोर देना शुरू कर दिया। जनसंख्या पर कंट्रोल करने के लिए कदम उठाए जाने लगे। दक्षिण भारत के राज्यों ने जागरुकता दिखाई और जनसंख्या कंट्र्रोल करने में कुछ हद तक सफलता प्राप्त कर ली, लेकिन उत्तरी राज्यों में जनसंख्या बढ़ती रही।उत्तर और दक्षिणी राज्यों में जनसंख्या वृद्धि की अनियमितता को देखते हुए सीटों में बढ़ोतरी को लेकर दक्षिणी राज्यों ने पहले 2000 और फिर 2026 तक के लिए रोक लगा दी गई।
क्या होता है परिसीमन?
भारत निर्वाचन आयोग के अनुसार परिसीमन के अंतर्गत चुनावी क्षेत्रों की सीमाएं तय होती हैं। यह कार्य परिसीमन आयोग के नेतृत्व में होता है।
परिसीमन के बाद क्या होगी उत्तर भारत में सीटों की स्थिति?
यूपी में इस समय 80 सीटें हैं। परिसीमन के बाद यह सीटें बढ़कर 128 होने का अनुमान है। वहीं बिहार में लोकसभा सीटों की संख्या में 30 का इजाफा हो सकता है। बिहार में अभी 40 सीटें हैं, जो बढ़कर 70 तक हो सकती हैं। एमपी में 29 लोकसभा सीटें हैं, 2026 में परिसीमन हुआ तो यह 47 हो सकती हैं। महाराष्ट्र में 48 लोकसभा सीटें हैं, जो बढ़कर 68 हो सकती हैं। राजस्थान में परिसीमन के बाद 25 सीटों से बढ़कर 44 होने का अनुमान है। गुजरात में अभी 26 लोकसभा सीटें हैं। यहां भी 13 सीटें परिसीमन के बाद बढ़ सकती हैं।
दक्षिणी राज्यों की स्थिति, केरल में घट जाएगी सीट?
कर्नाटक में अभी 28 सीटें हैं, जो 2026 में परिसीमन के बाद बढ़कर 36 हो सकती हैं। वहीं केरल में परिसीमन के बाद एक सीट घट सकती है। अभी 20 सीटें हैं जो एक घटकर 19 रह सकती है। आंध्र में 25 सीटें हैं, जो बढ़कर 28 होने का अनुमान है। तेलंगाना में अभी 39 लोकसभा सीटें हैं, जिनके 2026 में परिसीमन के बाद बढ़कर 41 होने का अनुमान है।
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