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इस साइलेंट किलर से हुई थी स्‍टीव जॉब्‍स की मौत, सोयाबीन-लहसुन से हो सकता है इलाज

यह एक तरह का कैंसर है, लेकिन इसे साइलेंट किलर कहा जाता है, क्योंकि शुरुआती स्‍टेज में इसे लक्षणों के आधार पर पहचान पाना बेहद मुश्किल है। बाद के लक्षण हर मरीज में अलग होते हैं।

By Deepak PandeyEdited By: Updated: Wed, 26 Sep 2018 04:06 PM (IST)
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इस साइलेंट किलर से हुई थी स्‍टीव जॉब्‍स की मौत, सोयाबीन-लहसुन से हो सकता है इलाज
नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। कंप्यूटर की दुनिया को नई शक्ल देने वाले स्टीव जॉब्स का निधन 56 साल की उम्र में हुआ था। जिस स्‍टीव जॉब्‍स ने आइ ऑपरेटिंग सिस्‍टम के जरिए पूरी दुनिया में क्रांति ला दी, वे कैंसर से लड़ाई हार गए थे। हलांकि यह कम ही लोग जानते होंगे कि तकनीक के बादशाह को जिस बीमारी ने हराया, वह पैंक्रिएटिक कैंसर थी।

कैंसर एक ऐसी बीमारी, जिसका नाम सुनते ही लोगों की आंखों के सामने अंधेरा छाने लगता है। इसी तरह का एक कैंसर है पैंक्रिएटिक कैंसर। यह बीमारी अग्नाश्य से जुड़ी है। इसे साइलेंट किलर भी कहा जाता है, क्योंकि शुरुआती स्‍टेज में इस कैंसर को लक्षणों के आधार पर पहचान पाना बेहद मुश्किल होता है और बाद के लक्षण प्रत्येक व्यक्‍ति में अलग-अलग होते हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, एप्पल कंपनी के सह संस्थापक स्टीव जॉब्स की असमय मृत्यु पैनक्रियाज के कैंसर के कारण ही हुई थी । सामान्यत: इस कैंसर में एबडोमेन के ऊपरी हिस्से में दर्द होता है, भूख कम लगती है, तेजी से वजन कम होने लगता है, पीलिया, नाक से खून आना, उल्टी जैसी शिकायतें होती हैं।

शरीर का बेहद महत्‍वपूर्ण अंग है अग्नाशय

अग्‍नाशय मानव शरीर का बहुत ही महत्‍वपूर्ण अंग होता है। इसे पाचक ग्रंथि भी कहते हैं। पाचक ग्रंथि पेट के पीछे 6 इंच की लंबाई वाला अवयव होता है। मछली के आकार वाला अग्नाशय नर्म होता है। यह पेट में क्षितिज की समांतर दिशा में एक सिरे से दूसरे सिरे तक फैला होता है। दायीं ओर यह छोटी आंत के पहले हिस्से से जुड़ा होता है।

बुजुर्गों को खतरा अधिक

पैंक्रिएटिक कैंसर (अग्नाशय कैंसर) बहुत ही गंभीर रोग है। अग्‍नाशय में कैंसर युक्‍त कोशिकाओं के जन्‍म के कारण इस बीमारी की शुरुआत होती है। 60 वर्ष से ऊपर की उम्र वालों में इस बीमारी का खतरा अधिक होता है। उम्र बढ़ने के साथ ही हमारे डीएनए में कैंसर पैदा करने वाले बदलाव होते हैं। इस कारण 60 वर्ष या इससे ज्‍यादा उम्र के लोगों में पैंक्रिएटिक कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। इस कैंसर के होने की औसत उम्र 72 साल है।

धूम्रपान और रेड मीट बढ़ाते हैं बीमारी

महिलाओं के मुकाबले पैंक्रिएटिक कैंसर के शिकार पुरुष ज्‍यादा होते हैं। धूम्रपान करने वालों में अग्‍नाशय कैंसर का खतरा दो से तीन गुणा तक बढ़ जाता है। रेड मीट और चर्बी युक्‍त आहार का सेवन करने वालों को भी पैंक्रिएटिक कैंसर होने की आशंका बनी रहती है।

जेनेटिक बीमारी

चिकित्‍सा विज्ञान अग्‍नाशय कैंसर होने का सटीक कारण अभी तक नहीं खोज पाया है। फिर भी इसके होने के कुछ प्रमुख कारण यह भी माने जाते हैं-

- पीढ़ी दर पीढ़ी अग्‍नाशय की चली आ रही समस्‍या।
- लंबे समय तक अग्‍नाशय में जलन।
- ज्‍यादा मोटापा भी पैनक्रिएटिक कैंसर का कारण हो सकता है।
- कीटनाशक दवाइयों की फैक्‍ट्री या इससे संबंधित काम करने वालों को भी अग्‍नाशन कैंसर होने की आशंका रहती है।

शोधकर्ताओं ने विकसित की नई दवा

शोधकर्ताओं को पैंक्रिएटिक कैंसर की रोकथाम में बड़ी कामयाबी मिली है। उन्होंने एक ऐसी नई दवा विकसित की है जो पैंक्रिएटिक कैंसर के सबसे सामान्य प्रकार को बढ़ने और फैलने से रोक सकती है। अमेरिका के सीडर्स-सिनाई मेडिकल सेंटर के शोधकर्ताओं ने चूहों पर किए गए परीक्षण में पाया कि मेटावर्ट नामक यह दवा रोगियों में मौजूदा पैंक्रिएटिक कैंसर कीमोथेरेपी को लेकर प्रतिरोधी क्षमता विकसित होने से बचाव कर सकती है। प्रमुख शोधकर्ता और सीडर्स-सिनाई के असिस्टेंट प्रोफेसर मौआद एडरकाउ ने कहा, ‘पैंक्रिएटिक कैंसर से पीड़ित रोगियों को बचाने की दिशा में यह उत्साहजनक कदम है। अगर यह दवा इंसानों पर खरी पाई जाती है तो हमें एक ऐसी दवा मिल सकती है, जिससे पैंक्रिएटिक डक्टल एडनोकार्सिनोमा (पीडीएसी) रोगियों की जिंदगी बेहतर की जा सकती है।’ इससे पहले सितंबर, 2006 में हुए एक अध्ययन में कहा गया था कि विटामिन डी का सेवन करने से इस कैंसर के होने की संभावना कम हो जाती है।

बीमारी दुर्लभ, लेकिन ध्‍यान न दिया तो ले लेगी जान

डाक्टरों का कहना है कि पैंक्रिएटिक कैंसर बहुत दुर्लभ है, लेकिन इसका पता काफी समय बाद चल पाता है और तब तक यह बेकाबू हो चुका होता है । यह कैंसर हो ही नहीं, इसके लिए लोगों को धूम्रपान से तौबा करने के साथ ही खूब मात्रा में फल और सब्जियों को अपने खानपान का हिस्सा बनाना चाहिए। चिकित्‍सक बताते हैं कि पैंक्रिएटिक कैंसर विभिन्न प्रकार के कैंसर में सर्वाधिक भयावह माना जाता है, क्योंकि पता चलने तक शरीर में यह अपनी पकड़ काफी मजबूत कर चुका होता है ।चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार, पैंक्रिएटिक कैंसर के मरीजों के जिंदा रहने की संभावना नहीं के बराबर होती है। बीमारी का पता लगने के बाद मरीज छह महीने से लेकर अधिकतम पांच साल तक जीवित रह पाता है। पश्चिमी देशों में पैनक्रियाज कैंसर के मामलों में वृद्धि देखी जा रही है, लेकिन भारत में भी अब यह बीमारी पैर पसारने लगी है। मिजोरम में इसके सर्वाधिक मामले सामने आ रहे हैं।

खूब खाएं फल-सब्जियां, दूर भगाएं पैंक्रिएटिक कैंसर

विशेषज्ञ बताते हैं कि इस बीमारी से बचने के लिए धूम्रपान छोड़ना और साग-सब्जियों एवं फलों का अधिक सेवन करना लाभकारी हो सकता है । हालांकि यह भी ध्‍यान रखने की जरूरत है कि अग्‍नाशय कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के लिए महज घरेलू उपचार पर ही निर्भर न रहें। घरेलू उपचार के अलावा चिकित्‍सक से परामर्श करके उचित इलाज भी करवाएं। यदि आप नियमित रूप से अपना स्‍वास्‍थ्‍य परीक्षण और स्‍क्रीनिंग कराते हैं तो इस रोग के खतरे से काफी हद तक बचा जा सकता है। आजकल कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी के द्वारा डॉक्‍टर अग्‍नाशय कैंसर का उपचार करते हैं। इससे कई रोगियों को जीवन मिला है। फिर भी इस प्रकार के कैंसर से बचाव के कुछ घरेलू उपाय निम्‍नलिखित हैं:

फलों का रस: ताजे फलों का रस और ज्‍यादा से ज्‍यादा मात्रा में सब्जियों का सेवन करने से अग्‍नाशय कैंसर में फायदा मिलता है।

ब्रोकली: पैंक्रिएटिक कैंसर के उपचार के लिए ब्रोकली को उत्तम माना जाता है। ब्रोकोली के अंकुरों में मौजूद फायटोकेमिकल, कैंसर युक्‍त कोशाणुओं से लड़ने में सहायता करते हैं। यह एंटी ऑक्सीडेंट का भी काम करते हैं और रक्‍त के शुद्धिकरण में भी मदद करते हैं।

अंगूर: पैंक्रिएटिक कैंसर के खतरे से बचाने में अंगूर भी कारगर होता हैं। अंगूर में पोरंथोसाईंनिडींस की भरपूर मात्रा होती है, जिससे एस्ट्रोजेन के निर्माण में कमी होती है और फेफड़ों के कैंसर के साथ अग्‍नाशय कैंसर के उपचार में भी लाभ मिलता है।

ग्रीन टी: यदि आप प्रतिदिन एक कप ग्रीन टी का सेवन करते हैं तो अग्‍नाशय कैंसर होने का खतरा कम होता है। साथ ही यह इसके उपचार में भी मददगार है।

एलोवेरा: एलोवेरा यूं तो बहुत से रोगों में फायदा पहुंचाता है, लेकिन पैनक्रीएटिक कैंसर में भी यह फायदेमंद है। नियमित रूप से इसका सेवन करने से लाभ मिलता है।

सोयाबीन: सोयाबीन के सेवन से अग्‍नाशय कैंसर में फायदा मिलता है। इसके साथ ही सोयाबीन के सेवन से स्‍तन कैंसर में भी फायदा मिलता है।

लहसुन: लहुसन कई रोगों में फायदा पहुंचाता है। इसमें औषधीय गुण होते हैं। इसमें एंटी ऑक्सीडेंट के साथ ही एलीसिन, सेलेनियम, विटामिन सी, विटामिन बी आदि होते हैं। जिसकी वजह से यह कैंसर से बचाव करता है और कैंसर हो जाने पर उसे बढ़ने से रोकता है।

व्हीटग्रास: व्हीटग्रास कैंसर युक्‍त कोशाणुओं को कम करने में भी सहायक होती है। इसके साथ ही यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाती है।

आठ सबसे खतरनाक कैंसर

फेफड़ों का कैंसर: ज्यादातर मरीजों को इसका पता बहुत देर से लगता है। कैंसर फेफड़ों से शरीर के दूसरे हिस्सों तक फैल जाता है। फेफड़ों के कैंसर का मुख्य कारण लंबे समय तक धूम्रपान है, लेकिन जो धूम्रपान नहीं करते, उन्हें भी इसका 10 से 15 फीसदी खतरा रहता है।

स्तन कैंसर: महिलाओं को स्तन कैंसर का ज्यादा खतरा रहता है। खासकर वे, जिनका मासिकधर्म कम उम्र में शुरू हुआ होता है, या फिर वे, जिन्होंने कभी बच्चे को जन्म ना दिया हो या फिर ज्यादा उम्र में मां बनी हों। रजोनिवृत्ति के दौरान हार्मोन का इलाज करवाने से भी इसका खतरा पैदा होता है। कसरत की कमी, मोटापा और शराब का अत्यधिक सेवन भी इसके कारण हो सकते हैं।

बड़ी आंत का कैंसर: इसके चार मुख्य कारण हो सकते हैं- खानपान, मोटापा, शारीरिक श्रम की कमी और धूम्रपान। बड़ी आंत (लार्ज इंटेस्‍टाइन) के कैंसर से बचने के लिए रेड मीट के बहुत अधिक सेवन से बचना चाहिए। शराब कम पीनी चाहिए।

प्रोस्टेट कैंसर: जैसे महिलाओं को स्तन कैंसर से सावधान रहना चाहिए, उसी तरह पुरुषों के प्रोस्टेट कैंसर को लेकर सतर्क रहना चाहिए। प्रोस्टेट कैंसर के बढ़ने पर मरीज को पेशाब करने में तकलीफ होती है। कूल्हों और पीठ में दर्द रहता है।

ब्‍लड कैंसर या ल्यूकीमिया: ल्यूकीमिया यानी रक्‍त कैंसर। इस बीमारी में अस्थिमज्जा प्रभावित होती है। ल्यूकीमिया में मरीज आसानी से संक्रमित हो सकता है। शरीर को बहुत थकान होती है। घाव जल्दी नहीं भरते।

एनएचएल: कुछ तरह के एनएचएल विकसित होने में समय लेते हैं, जबकि कुछ फौरन फैल जाते हैं। इस तरह का ट्यूमर सफेद रक्‍त कोशिकाओं या लिम्फोसाइट्स से बनता है।

अग्नाशय का कैंसर (पैंक्रिएटिक कैंसर): अग्नाशय पेट के पीछे स्थित होता है। कभी कभी अग्नाशय में असामान्य कोशिकीय विकास होने के कारण अग्नाशय का कैंसर हो जाता है। इस तरह का कैंसर खतरनाक है, क्योंकि इसके लक्षण जल्दी सामने नहीं आते। जब तक पता चलता है, कैंसर शरीर के दूसरे हिस्सों में फैल चुका होता है।

मीसोथेलिओमा: यह एक असामान्य टाइप का कैंसर है। मीसोथीलियम कोशिकाओं से बनी परत शरीर के अंदरूनी अंगों की रक्षा करती है। इस तरह के कैंसर में यह परत प्रभावित होती है और शरीर के कई अंगों में कैंसर फैल सकता है। इसका प्रमुख कारण एसबेस्टस है।

पैंक्रिएटिक कैंसर के चिकित्‍सकीय उपचार

विशेषज्ञ बताते हैं कि पैंक्रिएटिक कैंसर के उपचार की कोई एक सीधी विधि नहीं है। कई मामलों में पहले ट्यूमर को ऑपरेशन के जरिए निकाला जाता है और उसके बाद कीमोथरेपी या रेडियोथरेपी दी जाती है, वहीं कई मामलों में पहले कीमोथरेपी और फिर रेडियोथरेपी के जरिए ट्यूमर को छोटा कर उसे सर्जरी से निकाला जाता है । इसीलिए यह मरीज दर मरीज निर्भर करता है कि उसकी स्थिति के अनुसार किस प्रकार का इलाज प्रभावी होगा। बताया जाता है कि पैनक्रियाज रीढ़ के हड्डी के सामने और पेट में काफी गहराई में होता है, यही वजह है कि पैनक्रियाज का कैंसर आमतौर पर चुपचाप बढ़ता रहता है और काफी बाद में जाकर इसका पता चलता है । इस बीमारी में शुरूआती लक्षण नदारद रहते हैं या उभरते भी हैं तो अन्य बीमारियों से मिलते जुलते होते हैं।