Healthy Food: मोटे अनाज से बच्चे और किशोरों का विकास 26 से 39 प्रतिशत तक होता है तेज
इस समीक्षात्मक अध्ययन में शिशुओं प्री-स्कूल और स्कूल जाने वाले बच्चों तथा किशोरों को शामिल किया गया। समीक्षा में शामिल किए गए पांच अध्ययनों में एक में रागी एक में ज्वार तथा दो में मोटे अनाज के मिश्रण का इस्तेमाल किया गया।
By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Updated: Tue, 11 Jan 2022 10:04 PM (IST)
हैदराबाद, आइएएनएस। एक अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है संतुलित भोजन में यदि चावल के बदले जौ-बाजरा जैसे मोटे अनाज का इस्तेमाल किया जाए तो उससे बच्चे और किशोरों का विकास 26-39 प्रतिशत तक तेज हो सकता है। पोषण विशेषज्ञों ने जौ-बाजरा जैसे मोटे अनाज से मिलने वाले पोषण के बारे में अपने अध्ययन में पाया कि ये 'स्मार्ट फूड' कुपोषण से लड़ने में मददगार साबित हो सकते हैं। यह अध्ययन 'नूट्रीअंट' जर्नल में प्रकाशित हुआ है। यह पूर्व में प्रकाशित आठ अध्ययनों की समीक्षा और व्यापक विश्लेषण है।
चार देशों में सात संगठनों द्वारा किए गए इस अध्ययन का नेतृत्व इंटरनेशनल क्राप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट आफ सेमी-एरिड ट्रापिक्स (आइसीआरआइएसएटी) की वरिष्ठ पोषण विज्ञानी डाक्टर एस. अनीता ने किया है।उन्होंने बताया कि यह निष्कर्ष बताता है कि जौ-बाजरा (मिलट) की उच्च पोषक तत्व विकास को बढ़ावा देने हैं, जिनमें खासकर टोटल प्रोटीन, सल्फर युक्त अमीनो एसिड तथा कैल्शियम होते हैं।
इस तरह किया गया अध्ययन
इस समीक्षात्मक अध्ययन में शिशुओं, प्री-स्कूल और स्कूल जाने वाले बच्चों तथा किशोरों को शामिल किया गया। समीक्षा में शामिल किए गए पांच अध्ययनों में एक में रागी, एक में ज्वार तथा दो में मोटे अनाज के मिश्रण का इस्तेमाल किया गया।
पाया गया कि जिन बच्चों को मोटे अनाज का वाला खाना दिया गया, उनकी लंबाई में 28.2 प्रतिशत, वजन में 26 प्रतिशत, बांह के ऊपरी हिस्से की मोटाई में 39 प्रतिशत, सीने की परिधि में 37 प्रतिशत तक की अधिक वृद्धि चावल खाने वाले बच्चों की तुलना में देखी गई। मोटा अनाज का आहार खाने वाले बच्चों की उम्र तीन महीने से 4.5 साल तक थी।
आइसीआरआइएसएटी की महानिदेशक जैकलीन ह्यूजेस ने बताया कि ये बताते हैं कि दूध पिलाने वाली माताओं और स्कूलों में पोषाहार के कार्यक्रमों को मोटे अनाजों पर आधारित बनाया जाना चाहिए।विभिन्न माध्यमों से लोगों में जागरूकता और समझ बढ़ाने की भी जरूरतअध्ययन की लेखिका भारत के नेशनल इंस्टीट्यूट आफ नूट्रिशन की निदेशक डाक्टर हेमलता स्वाद और सांस्कृतिक संवेदनशीलता के आधार पर मोटे अनाज पर आधारित पोषाहार के आइटम तय किए जा सकते हैं। इसे बढ़ावा देने के लिए विभिन्न माध्यमों से लोगों में जागरूकता और समझ बढ़ाने की भी जरूरत है।
ये अध्ययन प्रमुख रूप से चावल आधारित भोजन वाले देश भारत में किए गए। इसमें फल-सब्जी, डेयरी उत्पाद तथा अन्य चीजों को भी शामिल किया गया था।इन अध्ययनों से साफ हुआ है कि खाने में भिन्नताओं के बावजूद यदि चावल के बदले मोटे अनाज का ज्यादा इस्तेमाल किया जाए तो बच्चों के विकास में यह ज्यादा फायदेमंद होगा।मोटा अनाज न सिर्फ पोषण की जरूरतों को पूरा करता है, बल्कि टाइप 2 डायबिटीज में लाभ पहुंचाता है। इसके साथ ही एनीमिया (खून की कमी), कोलेस्ट्राल का स्तर कम करने, मोटापा और कार्डियोवस्कुलर डिजीज का जोखिम भी कम करता है।