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Ram Mandir: कांग्रेस ने भी मोड़ा श्री रामलला प्राण-प्रतिष्ठा समारोह से मुंह, विपक्ष ने बताया भाजपा का हिंदुत्व दांव

Ram Mandir कांग्रेस हो सपा हो राजद या वामदल इन्होंने राम मंदिर को हिंदुओं के मतों को आकर्षित करने का भाजपा का चुनावी दांव बताया है लेकिन इन विपक्षी दलों ने प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में न जाने का निर्णय कर इस आशंका को तो विमर्श में छोड़ ही दिया कि कहीं इसके पीछे मुस्लिम मतों के छिटक जाने का डर तो नहीं?

By Jagran News Edited By: Babli Kumari Updated: Wed, 10 Jan 2024 09:00 PM (IST)
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कई दिनों के असमंजस के बाद आखिरकार कांग्रेस ने भी प्राण प्रतिष्ठा समारोह से मुंह मोड़ा (फाइल फोटो)
जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली। पिछले कुछ वर्षों में चुनाव के वक्त हर दल के नेताओं की दौड़ मंदिर की ओर बढ़ने लगती है। ऐसे में यह अनुमान लगाया जा रहा था कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के साथ देश में उठते आस्था के ज्वार के बीच विपक्ष पूरा श्रेय भाजपा के खाते में जाने से रोकने की कोशिश करेगा। लेकिन कई दिनों के असमंजस के बाद आखिरकार कांग्रेस ने भी प्राण प्रतिष्ठा समारोह से मुंह मोड़ लिया।

कांग्रेस हो, सपा हो, राजद या वामदल, इन्होंने राम मंदिर को हिंदुओं के मतों को आकर्षित करने का भाजपा का चुनावी दांव बताया है, लेकिन इन विपक्षी दलों ने प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में न जाने का निर्णय कर इस आशंका को तो विमर्श में छोड़ ही दिया कि कहीं इसके पीछे मुस्लिम मतों के छिटक जाने का डर तो नहीं? अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर में श्री रामलला का प्राण-प्रतिष्ठा समारोह 22 जनवरी को होने जा रहा है।

भव्य आयोजन में PM मोदी भी हो रहे हैं शामिल 

इस भव्य आयोजन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शामिल हो रहे हैं और श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट व विश्व हिंदू परिषद की ओर से सभी मत-संप्रदायों के धर्मगुरुओं, विशिष्टजन सहित राजनीतिक दलों के प्रमुख नेताओं को निमंत्रण भेजा गया है। चूंकि, लोकसभा चुनाव अब होने ही वाले हैं, इसलिए विपक्षी दलों के नेताओं पर सभी की नजरें टिकी थीं कि वह इस धार्मिक अनुष्ठान में शामिल होंगे या वोटों की राजनीति उनके लिए अयोध्या की राह में रोड़े अटकाएगी।

विपक्षी दलों ने ''सबके हैं राम'' का दिया नारा

वर्षों तक चले राम मंदिर आंदोलन में सभी दलों की स्पष्ट रही भूमिका के बावजूद इनके नेताओं के जाने या न जाने का विमर्श इसीलिए शेष था, क्योंकि मंदिर निर्माण के साथ इस मुद्दों लेकर हमेशा संघर्ष करती रही भाजपा उत्साहित दिखी तो कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों ने ''सबके हैं राम'' का नारा अपने-अपने मंचों से बुलंद किया। मगर, भाजपा के विरुद्ध जैसे विपक्षी दलों ने आइएनडीआइए गठबंधन बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया, वैसे ही अयोध्या को लेकर उनका रुख बदलना शुरू हो गया।

रामलला के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह ये नेता नहीं होंगे शामिल

बिहार से राजद नेता व शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर, सपा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य, आइएनडीआइए के सहयोगी दल डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के बेटे व कर्नाटक सरकार के मंत्री प्रियांक खरगे आदि ने सनातन धर्म के विरुद्ध लगातार टिप्पणियां कीं। फिर राजद नेता व बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने हाल ही में प्रश्न उठाया कि मंदिर आवश्यक है या अस्पताल? इससे स्पष्ट हो गया था कि वह श्री रामलला के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में नहीं जाएंगे।

सेक्युलर छवि को लेकर चिंतित हैं विपक्ष 

समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने विहिप द्वारा दिया गया निमंत्रण ही ठुकरा दिया। वामदल के नेता सीताराम येचुरी और वृंदा करात ने पहले ही कह दिया था कि वह अयोध्या नहीं जाएंगे। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी समारोह में जाने से इन्कार कर चुकी हैं। यह सभी दल या नेता वह हैं, जो अपनी सेक्युलर छवि को लेकर चिंतित हैं या कहें कि मुस्लिम मतों का इनकी राजनीति को बड़ा सहारा है।

भाजपा मंदिर के सहारे कर रही है चुनावी राजनीति 

अंतत: सभी नजरें उस कांग्रेस की ओर थीं, जो कि अक्सर यह श्रेय लेने का प्रयास करती दिखती है कि राम मंदिर का ताला सबसे पहले बतौर प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने खुलवाया था। कांग्रेस ने भी आरोप लगाया है कि भाजपा मंदिर के सहारे चुनावी राजनीति कर रही है। इनका इशारा हिंदू मतों को एकजुट करने का है, लेकिन विपक्षी दलों ने अपने निर्णय से संकेत दे दिया है कि भाजपा धार्मिक रूप से एक पाले में जा खड़ी हुई है तो विपक्षी एकजुटता के साथ दूसरे पाले में निस्संकोच खड़े हैं।

अब मायावती, नीतीश और और उद्धव पर निगाह

बसपा प्रमुख मायावती अपने बयानों में हमेशा मंदिर-मस्जिद का संतुलन बनाने का प्रयास करती रही हैं, लेकिन अब निगाह होगी कि वह अयोध्या जाती हैं या नहीं। राजनीतिक जानकार कहते हैं कि सपा के अयोध्या जाने से इन्कार के बाद कांग्रेस की न जाने की मजबूरी भी है, क्योंकि मुस्लिम मतदाताओं ने अब उसकी ओर रुख किया है।

हाल ही में कर्नाटक और फिर तेलंगाना के चुनाव में यह दिखा। बसपा को भी इस वोटबैंक की चिंता रहती है तो उसके लिए चुनौती है। परीक्षा अब तक मौन साधे बैठे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और शिवसेना उद्धव गुट के प्रमुख उद्धव ठाकरे की भी होगी।

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