राहुल की यात्रा से मिली जमीन पर बढ़ेगी कांग्रेस, दो राज्यों में जीत के बाद सियासी वापसी को लेकर बढ़ा भरोसा
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दूसरे चरण का विकल्प पार्टी ने खुला रखा है। एक साल पहले जब यात्रा शुरू हुई थी तब कांग्रेस की महज दो राज्यों-राजस्थान और छत्तीसगढ में अपनी सरकारें थीं मगर इसके बाद दो राज्यों-हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में मिली जीत ने इस संख्या को दोगुना कर दिया है। इन दोनों जीतों ने राज्यों में कांग्रेस की लगातार हार के सिलसिले को तोड़ा है।
By Jagran NewsEdited By: Amit SinghUpdated: Thu, 07 Sep 2023 11:45 PM (IST)
संजय मिश्र, नई दिल्ली: भारत जोड़ो यात्रा की पहली वर्षगांठ को यादगार बनाने के लिए कांग्रेस की गुरुवार को देश भर में दिखी पहल से साफ है कि पार्टी लंबे अर्से बाद पटरी पर लौटी अपनी सियासत में इस यात्रा की निर्णायक भूमिका को धूमिल नहीं पड़ने देना चाहती। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने गुरुवार को कहा भी कि भारत जोड़ो यात्रा एक राष्ट्रीय जन आंदोलन है, जो जनभागीदारी के जरिये समाज में नफरत और शत्रुता के खतरों के खिलाफ जारी है।
यात्रा जारी रहने के खरगे के आशय का संदेश स्पष्ट है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दूसरे चरण का विकल्प पार्टी ने खुला रखा है। राहुल गांधी की एक साल पहले जब यात्रा शुरू हुई थी तब कांग्रेस की महज दो राज्यों-राजस्थान और छत्तीसगढ में अपनी सरकारें थीं, मगर इसके बाद दो राज्यों-हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में मिली जीत ने इस संख्या को दोगुना कर दिया है। इन दोनों जीतों ने राज्यों में कांग्रेस की लगातार हार के सिलसिले को तोड़ा है।
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जीत में पार्टी यात्रा की अहम भूमिका
हिमाचल चुनाव बिल्कुल यात्रा के मध्य में हुए और राहुल की यहां प्रचार में भागीदारी केवल सांकेतिक ही रही। लेकिन मल्लिकार्जुन खरगे समेत पार्टी के तमाम नेता यह मानते रहे हैं कि यात्रा से पूरे देश में जनता ने एक बार फिर कांग्रेस को सकारात्मक राजनीतिक परिवर्तन के वाहक के रूप में देखना शुरू किया है। इसीलिए दोनों राज्यों की जीत में पार्टी यात्रा की अहम भूमिका मानती है।
कर्नाटक की जीत की बुनियाद रखने में राहुल गांधी की सूबे में तीन सप्ताह से अधिक चली यात्रा के पड़ावों की खास भूमिका रही। भारत जोड़ो यात्रा पिछले साल सात सितंबर को कन्याकुमारी में जब शुरू हुई तो नए अध्यक्ष की तलाश कर रही कांग्रेस नेतृत्व के गहरे संकट के दौर में थी। पार्टी की गंभीर डांवाडोल स्थिति से व्याकुल कई बड़े नेता बगावत की राह पर थे तो कई पार्टी छोड़ रहे थे। शीर्ष दिग्गजों में शामिल गुलाम नबी आजाद ने तो यात्रा से चंद दिन पहले ही पार्टी छोड़ दी।