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Corona: खत्म होने के कगार पर कोरोना, फिर भी केन्द्र सरकार अलर्ट; हम हर नए वैरिएंट पर रख रहे नजर- मंडाविया

कोरोना वायरस अब स्थानिक हो चुका है। विशेषज्ञों के अनुसार किसी बीमारी को स्थानिक तब कहा जाता है जब इसकी उपस्थिति एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र के भीतर आबादी में स्थापित पैटर्न के आधार पर स्थिर हो जाती है।

By AgencyEdited By: Shashank MishraUpdated: Wed, 21 Jun 2023 12:51 AM (IST)
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भारत में कोविड रोधी टीकों की 220 करोड़ से अधिक खुराक दी जा चुकी हैं।
नई दिल्ली, पीटीआई। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा है कि कोविड-19 स्थानिक बीमारी बनने के कगार पर है, लेकिन भारतीय वैज्ञानिक प्रत्येक नए स्वरूप को लेकर कड़ी नजर रख रहे हैं तथा सरकार हाई अलर्ट जारी रखेगी। उन्होंने रेखांकित किया कि कोरोना वायरस जीवित रहने में कामयाब रहा है और यह बरकरार रहने जा रहा है। मंत्री ने कहा कि दुनिया में महामारी के तीन साल से अधिक समय के बाद अब स्थिति स्थिर है, लेकिन घातक साबित हो सकने वाले किसी भी स्वरूप से बचाव के लिए सभी आवश्यक उपाय बरकरार रखे जाएंगे।

कोविड से ठीक होने की दर लगभग 99 प्रतिशत

घातक कोरोना वायरस का पहली बार चीन में 2019 के अंत में पता चला था, जबकि भारत में पहला मामला जनवरी 2020 के अंत में दर्ज किया गया था। तब से, भारत में कोविड-19 के लगभग 4.5 करोड़ मामले सामने आए हैं और कई लहरों के दौरान पांच लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।

हालांकि, हाल के महीनों में मामलों की संख्या में काफी कमी आई है और उपचाराधीन मामलों की संख्या अब लगभग 1,800 रह गई है, जिसमें ठीक होने की कुल दर लगभग 99 प्रतिशत और मृत्यु दर लगभग एक प्रतिशत है। इसके साथ ही, भारत में कोविड रोधी टीकों की 220 करोड़ से अधिक खुराक दी जा चुकी हैं और भारत की लगभग 90 प्रतिशत पात्र आबादी का पूरी तरह से टीकाकरण हो चुका है।

मंत्री ने कहा, कोविड स्थानिक चरण में प्रवेश करने के कगार पर है, लेकिन आईसीएमआर (भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद) में वैज्ञानिकों की हमारी टीम कोविड के प्रत्येक स्वरूप पर कड़ी नजर रख रही है। अब तक, कोविड के 224 से अधिक स्वरूप देश में देखे गए हैं, प्रत्येक स्वरूप को लेकर निरंतर जीनोम अनुक्रमण किया जा रहा है। मंत्री ने कहा कि जब भी कोई नया स्वरूप मिलता है, उसे अलग किया जाता है और फिर टीके की प्रभावशीलता देखने के लिए परीक्षण किया जाता है तथा यह भी मापा जाता है कि यह कितना घातक है।

मंत्री ने कहा, यह सब एक सतत प्रक्रिया है और हम इस पर बारीकी से नजर रखते हैं, ताकि हम भविष्य में घातक साबित हो सकने वाले किसी भी स्वरूप से निपटने के लिए तैयार रहें। दुनिया भर में स्थिति अभी स्थिर है और भविष्य को ध्यान में रखते हुए हम सतर्क हैं। लेकिन मैं कहूंगा कि यह एक वायरस है और यह वायरस कभी खत्म नहीं होने वाला, क्योंकि यह जीवित रहने में कामयाब रहा है।’’

दुनिया में कोविड से 69 लाख लोगों की मौत

मंत्री ने कहा, जैसे इन्फ्लूएंजा वायरस किसी तरह बच गया है और जब भी कोई नया स्वरूप आता है, तो लोगों को खांसी, बुखार आदि का अनुभव होता है, लेकिन इससे लोगों को ज्यादा नुकसान नहीं होता, ऐसा ही कुछ कोविड के मामले में भी होगा और काफी हद तक अब भी ऐसा ही हुआ है।

विशेषज्ञों के अनुसार, किसी बीमारी को स्थानिक तब कहा जाता है, जब इसकी उपस्थिति एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र के भीतर आबादी में स्थापित पैटर्न के आधार पर स्थिर हो जाती है, जैसा कि मौसमी इन्फ्लूएंजा के मामले में होता है। वैश्विक स्तर पर, कोविड के 76 करोड़ से अधिक मामलों की पुष्टि हुई है और इससे अब तक लगभग 69 लाख लोगों की मौत हो चुकी है। अब तक कोविड रोधी टीकों की 1,340 करोड़ खुराक दी जा चुकी हैं।

जनवरी 2022 के पहले चरम के लगभग एक साल बाद, दिसंबर 2022 में मामलों में सबसे बड़ी वृद्धि देखी गई। हालांकि, मौतों के मामले में, सबसे खराब अवधि जनवरी 2021 थी और लगभग एक साल तक स्थिति चिंताजनक रही।

कोविड प्रबंधन एक बड़ी चुनौती थी: मांडविया

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने पिछले महीने घोषणा की थी कि कोविड अब एक स्थापित और जारी रहने वाली स्वास्थ्य समस्या है, जो अब सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल जैसी अंतरराष्ट्रीय चिंता नहीं है लेकिन इसने बीमारी को स्थानिक घोषित करने से परहेज किया था।

जुलाई 2021 में कोरोना वायरस संकट के बीच स्वास्थ्य मंत्रालय का प्रभार संभालने वाले मांडविया ने महामारी के खिलाफ लड़ाई को याद करते हुए कहा कि भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश के लिए कोविड प्रबंधन एक बड़ी चुनौती था, लेकिन इसकी सफलता की कहानी अब पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल बन गई है।

केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्री के रूप में उनके पास फार्मास्युटिकल विभाग का प्रभार भी है, जिसे उन्होंने काफी लंबे समय तक संभाला है। उन्होंने इस बात को भी खारिज किया कि टीकों के लिए अनुमोदन दीर्घकालिक दुष्प्रभावों को ध्यान में रखे बिना जल्दबाजी में किया गया था और हाल ही में दिल के दौरे के मामलों में वृद्धि इससे संबंधित है।

मंत्री ने कहा कि टीका अनुसंधान से लेकर इसे लगाए जाने तक की पूरी प्रक्रिया में सभी स्थापित अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन किया गया। उन्होंने कहा कि विभिन्न भौतिक और सामान्य प्रक्रियाओं के कारण पहले टीके के विकास और अनुमोदन में अधिक समय लगता था, लेकिन अधिकारियों और वैज्ञानिकों ने इस बार कृत्रिम बुद्धिमत्ता सहित नवीनतम प्रौद्योगिकी का पूरा उपयोग किया और इसलिए पूरी प्रक्रिया को तेजी से अंजाम दिया जा सका।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विश्वासपात्र माने जाने जाने वाले और गुजरात से ताल्लुक रखने वाले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता मांडविया ने कहा, मैं आपको बता दूं कि प्रधानमंत्री मोदी ने कोविड प्रबंधन से लेकर टीका अनुसंधान और टीकाकरण अभियान के लिए अनुमोदन तक शुरू से ही सभी प्रक्रियाओं के लिए वैज्ञानिक तरीकों का पालन किया।

मंडाविया ने कहा, यह प्रधानमंत्री का निर्देश था, जिसके कारण इंसाकोग (भारतीय सार्स-कोव-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम) और कई अन्य टास्क फोर्स तथा अधिकार प्राप्त समूहों को टीका अनुमोदन तथा अन्य प्रोटोकॉल के लिए स्थापित किया गया।

संपूर्ण कोविड यात्रा में, हमने महामारी से लड़ने के लिए वैज्ञानिक तरीकों का पालन किया।’’ उन्होंने कहा, वैज्ञानिकों ने हमें बताया कि टीकों को कब मंजूरी दी जानी चाहिए, और पूरा डेटा तथा डेटा विश्लेषण अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार किया गया। भारत ने उन्हीं अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन किया, जिनका पालन वैश्विक कंपनियां करती हैं। मंत्री ने कहा कि यह सब वास्तव में भारत में बहुत तेजी से हुआ, लेकिन गति पर सवाल उठाने वालों को यह समझना चाहिए कि मंजूरी जल्दी क्यों मिली।

डिजिटल तकनीक से किया गया डेटा का विश्लेषण

मंडाविया ने कहा, समय बदल गया है। पहले, डेटा एकत्र किया जाता था, उसका भौतिक विश्लेषण होता था, और बहुत सारी प्रक्रियाएं सामान्य रूप से होती थीं, लेकिन आज हमारे पास कृत्रिम बुद्धिमत्ता, नवीनतम मॉडलिंग विधियां और डिजिटल तकनीक है, तथा हमने सोचा कि कैसे हम इन सभी का उपयोग करके चीजों को गति देते हैं। मंत्री ने कहा, टीका अनुसंधान और टीका अनुमोदन के लिए जो भी अंतरराष्ट्रीय कवायद होती है, भारत ने उसी का पालन किया।

भारत के टीकों को अब दुनिया में सर्वश्रेष्ठ के रूप में जाना जाता है, क्योंकि इन टीकों ने न केवल भारत को बचाया, बल्कि दुनिया के बाकी हिस्सों को भी बचाने में मदद की। सिर्फ एक नहीं, बल्कि भारत के अनुसंधान वाले और भारत निर्मित पांच टीके आज बाजार में हैं। हमारी टीकाकरण यात्रा सभी वैज्ञानिक प्रोटोकॉल और विधियों का पालन करते हुए वैज्ञानिक डेटा पर आधारित रही है, जिसे लेकर मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं।