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Cough Syrups Controversy: भारतीय दवा उद्योग की प्रतिष्ठा पर आंच, खांसी की दवा बनी सिरदर्द; एक्सपर्ट व्यू

अगर भारत को दुनिया की फार्मेसी होने के अपने गौरव को यथावत रखना है तो इस सेक्टर में पारदर्शिता कायम करने वाले तंत्र को विकसित करना होगा और  उसे जरूरत के संसाधन मुहैया  कराने होंगे। अन्यथा मेडेन फार्मा जैसी एकाध  कंपनियों की करतूतों से वर्षों की मेहनत से बनाई छवि धूमिल हो सकती है

By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Wed, 12 Oct 2022 11:49 AM (IST)
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Cough Syrups Controversy: दूर तक फैली हैं गड़बड़ियां
अभिषेक कुमार सिंह। हम जिस दवा, वैक्सीन या इलाज पर सरकार और चिकित्सा तंत्र के दावों पर भरोसा करते है, अगर कभी वह अचानक टूट जाए तो यह एक गंभीर मामला बन जाता है। अफसोस है कि एक भारतीय दवा कंपनी-मेडेन फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड के बनाए चार कफ सिरप-  प्रोमेथाजिन ओरल साल्यूशन, कोफेक्समालिन बेबी  कफ सिरप, मकाफ बेबी कफ सिरप और मैग्रीप  एन कोल्ड सिरप की वजह  से इन दिनों भारत पर सवाल  उठ रहे हैं।

जिस भारत को दुनिया की  फार्मेसी के रूप में प्रतिष्ठा हासिल है, ऐसे  प्रसंग उसे दागदार बनाते हैं। हालांकि ऐसी घटनाएं अतीत में भी हुई हैं। उनमें से कुछ मामले दवाओं-वैक्सीनों के घरेलू निर्माण और वितरण तक ही सीमित रहे हैं, लेकिन इन घटनाओं के प्रकाश में आने से यह पूछताछ जरूरी हो जाती है कि ऐसा आखिर क्यों हुआ? इनके लिए कौन जिम्मेदार है? और इन घटनाओं की रोकथाम कैसे होगी?

खांसी की दवा बनी सिरदर्द

हाल के वर्षों में विश्व के करीब नब्बे देशों को भारत ने अपने यहां की दवा कंपनियों द्वारा बनाई कोरोना रोधी वैक्सीन दी है। सस्ती कीमतों पर और तेजी से वैक्सीन उपलब्ध कराने के मामले में हमारे देश की दवा कंपनियों ने एक कीर्तिमान बनाया है। ब्राजील जैसे देश ने इसकी भरपूर तारीफ की है कि भारत ने उसके नागरिकों को कोरोना रोधी वैक्सीन उपलब्ध कराने को प्राथमिकता में रखा। जब पूरी दुनिया में कोरोना रोधी वैक्सीन का संकट था, तब समय और उचित कीमतों पर उनकी उपलब्धता एक बड़ी चुनौती बन गई थी।

भारतीय दवा कंपनियों ने देश की राजनीतिक इच्छाओं का सम्मान करते हुए वैश्विक बिरादरी को ये वैक्सीन त्वरित ढंग से मुहैया कराई। सिर्फ कोरोना रोधी वैक्सीन ही नहीं, बल्कि पहले से भी कई दवाइयां भारत से दुनिया भर को जाती रही हैं। इसी आधार पर भारत ने दुनिया की फार्मेसी होने की प्रतिष्ठा हासिल की है। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह क्रम आगे भी जारी रहेगा, लेकिन अभी तो सोनीपत (हरियाणा) स्थित मेडेन फार्मा के कथित कारनामे से हमारी शान पर बट्टा लगते हुए प्रतीत हो रहा है। डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि उसने पश्चिमी अफ्रीकी देश गांबिया में चार दवाओं के प्रयोग के संबंध में एक मेडिकल अलर्ट जारी किया है।

यह अलर्ट एक भारतीय कंपनी के उत्पादों से जुड़ा है। इसमें खास तौर से मेडेन फार्मा के चार कफ सिरप-प्रोमेथाजिन ओरल साल्यूशन, कोफेक्समालिन बेबी कफ सिरप, मकाफ बेबी कफ सिरप और मैग्रीप एन कोल्ड सिरप का नाम लिया गया है। इन्हें सीधे तौर पर गुर्दे को गंभीर नुकसान पहुंचाने और 66 बच्चों की मौतों से संबद्ध माना जा रहा है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक प्रयोगशाला जांच में इन चार दवाओं में डायथिलीन ग्लाइकाल और एथिलीन ग्लाइकाल की स्वीकृति से ज्यादा मात्रा पाई गई है। हालांकि मेडेन फार्मा ने दावा कर रखा है कि उसके कारखाने में निर्मित दवाओं को डब्ल्यूएचओ की संस्तुति और प्रमाणपत्र हासिल है, लेकिन डब्ल्यूएचओ ने इन दावों को खारिज करते हुए उसकी चारों दवाओं को अत्यधिक निम्न गुणवत्ता का बताया है। डायथिलीन ग्लाइकाल और एथिलीन ग्लाइकोल आदि की स्वीकृति से ज्यादा मात्रा में मौजूदगी पेट में दर्द, उल्टी, डायरिया, मूत्र में रिकावट, सिरदर्द, दिमाग-किडनी पर दुष्प्रभाव डालती है।

मेडेन फार्मा को पहले भी कई मामलों में दोषी पाया जा चुका है। एक बार केरल में इसके द्वारा बनाई गई टाइप-2 मधुमेह की दवा मेटफोर्मिन डिसाल्यूशन टेस्ट को पास करने में विफल रही थी। वहां इसकी एक अन्य दवा में एस्पिरिन की मात्रा तय मानकों से ज्यादा पाई गई थी। केरल के अलावा बिहार और गुजरात में भी इसकी दवाओं में गड़बड़ी पकड़ी जा चुकी है। इसके बाद बिहार ने मेडेन फार्मा को पांच वर्षों के लिए प्रतिबंधित कंपनियों की सूची में डाल दिया था। वर्ष 2014 में वियतनाम सरकार ने भी नियमों का उल्लंघन करने के लिए इसको ब्लैकलिस्ट कर दिया था। भारत सरकार के ड्रग इंस्पेक्टर ने तो 2018 में मेडेन फार्मा पर ड्रग्स एंड कास्मेटिक्स एक्ट के तहत गुणवत्ता उल्लंघन का मुकदमा भी चलाया था।

दूर तक फैली हैं गड़बड़ियां

सच्चाई यह है कि देश में दवा बनाने वालीं बहुत-सी कंपनियां हेरफेर करती रही हैं। खास तौर से दवाओं में डाले जाने वाले तत्वों की मात्रा या अनुपात के मामले में उनके द्वारा काफी परदेदारी बरती जाती है। दरअसल अपना मुनाफा बढ़ाने और उत्पादन लागत कम करने के लिए कुछ दवा कंपनियां इस किस्म के गड़बड़झाले करती हैं। हाल में पैरासिटामोल की टैबलेट में ऐसी ही गड़बड़ी की शिकायत चर्चा में थी। इस घटना के आगे-पीछे भी कई अन्य कंपनियों के कारनामे प्रकाश में आते रहे हैं। जैसे दो साल पहले हिमाचल प्रदेश की एक कंपनी में बने कफ सिरप पीने से जम्मू-कश्मीर में 11 बच्चों की मौत हो गई थी। इसी तरह हाल में चंडीगढ़ स्थित पोस्ट ग्रेजुएशन इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च में एनेस्थेटिक इंजेक्शन से पांच मरीजों की मौत हो गई थी। यहां प्रश्न यह है कि क्या देश के अंदर और विदेश में निर्यात की जाने वाली दवाओं की गुणवत्ता की नियमित तौर पर जांच-निगरानी नहीं हो सकती है।

अगर विवादों में आई हरियाणा की मेडेन फार्मा की बात की जाए तो तर्क दिया जा रहा है कि इस कंपनी को केवल विदेश में कफ सिरप निर्यात करने का लाइसेंस मिला हुआ था, इसलिए हमारे देश के अंदर कोई मामला सामने नहीं आया, लेकिन कुछ अन्य दवाओं और फार्मा कंपनियों के आचरण को लेकर संदेह तो कायम ही रहे हैं। यह सबकुछ तब हो रहा है, जब देश के अंदर दवाओं के निर्माण, वितरण और गड़बड़ियों पर लगाम लगाने के लिए नियम-कायदे मौजूद हैं और सरकार के स्तर पर नियामक तंत्र भी बने हुए हैं। तब सवाल है कि आखिर समस्या कहां है? असल समस्या देश के विशाल दवा उद्योग की निगरानी के लिए बने तंत्र में ही नजर आती है।

देश में करीब तीन हजार कंपनियां दवाएं बनाती हैं, जिनकी मैन्यूफैक्चरिंग यूनिटें देश के कोने-कोने में फैली हुई हैं। ये कंपनियां सिर्फ देश के अंदर ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी टीकों और दवाओं की जरूरतों को पूरा करती हैं। मात्रा के हिसाब से दवाओं के वैश्विक कारोबार में एक तिहाई हिस्सेदारी भारत की दवा कंपनियों की है। इसके साथ ही भारत में फार्मा उद्योग काफी तेजी से बढ़ रहा है। इन तथ्यों को ध्यान में रखने पर अहसास होता है कि इस उद्योग की नियमित जांच और निगरानी के लिए कितने विशाल नेटवर्क और फंड की जरूरत होगी, पर इस मोर्चे पर हमारे देश में कोई खास गंभीरता नहीं दिखाई देती है। ऐसे में कुछ समय के लिए निगरानी और जांच का कोई काम तभी पूरी ताकत से होता है, जब मेडेन फार्मा जैसा कोई मामला प्रकाश में आता है। अगर भारत को दुनिया की फार्मेसी होने के अपने गौरव को यथावत रखना है तो इस सेक्टर में पारदर्शिता कायम करने वाले तंत्र को विकसित करना होगा और  उसे जरूरत के संसाधन मुहैया  कराने होंगे। अन्यथा मेडेन फार्मा जैसी एकाध  कंपनियों की करतूतों से इस क्षेत्र  में वर्षों की मेहनत से बनाई गई छवि  एक झटके में धूमिल हो सकती है और तब कोई अन्य देश दुनिया की फार्मेसी होने के मौके को भुना सकता है।

[संस्था एफआइएस ग्लोबल से संबद्ध]