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ट्रेड वार के खिलाफ WTO में अपील कर सकते हैं देश

विश्व व्यापार समझौतों के विपरीत यदि कोई सदस्य देश टैरिफ बढ़ाता है तो उसके कारण प्रभावित हो रहे देश WTO की विवाद निपटारण व्यवस्था का लाभ उठा सकते हैं।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Tue, 27 Mar 2018 11:04 AM (IST)
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ट्रेड वार के खिलाफ WTO में अपील कर सकते हैं देश

[डॉ. अश्विनी महाजन]। पिछले लगभग 27 वर्षो से चल रही भूमंडलीकरण की प्रक्रिया और 23 वर्षो से विश्व व्यापार संगठन के रूप में चल रही नियम आधारित वैश्विक व्यापार प्रणाली के चलते टैरिफ और गैर टैरिफ बाधाओं को समाप्त करने की प्रवृत्ति रही और मुक्त व्यापार एक परंपरा के रूप में स्थापित हुआ। विश्व व्यापार समझौतों के विपरीत यदि कोई सदस्य देश टैरिफ बढ़ाता है या गैर टैरिफ बाधाएं खड़ी करता है तो उसके कारण प्रभावित हो रहे देश विश्व व्यापार संगठन की विवाद निपटारण व्यवस्था का लाभ उठा सकते हैं और इन बाधाओं से निजात पा सकते हैं।

कुछ समय पूर्व तक कोई भी देश सामान्यत: घोषित रूप से संरक्षणवाद के पक्ष में तर्क भी नहीं देता था, बल्कि पूर्व में विभिन्न देशों द्वारा जो टैरिफ और गैर टैरिफ बाधाएं लगाई भी गई थीं, वे भी क्रमश: समाप्त कर दी गईं। भारत में आने वाले आयातों पर 400 प्रतिशत तक के आयात शुल्क और 1400 से अधिक वस्तुओं पर मात्रात्मक नियंत्रण भी पूर्व में लगे हुए थे। कुछ अपवादों को छोड़कर सामान्यत: शून्य से 10 प्रतिशत का ही आयात शुल्क अभी लागू है और किसी भी वस्तु के आयात पर आज मात्रात्मक नियंत्रण नहीं है। गौरतलब है कि पिछले लगभग 16-17 वर्षो में दुनिया भर के बाजार चीनी सामान से पट गए। लोहा, इस्पात, एल्यूमीनियम और अन्य धातुएं, इलेक्ट्रॉनिक्स और टेलीकॉम उपकरण, इंफ्रास्ट्रक्चर एवं परियोजना वस्तुएं, उर्वरक, रसायन, दवाइयां और उसके लिए कच्चा माल और दिन प्रति दिन काम आने वाले तमाम वस्तुओं का अधिकांश आयात चीन से होने लगा।

एक ओर चीन दुनिया के मैन्यूफैक्चरिंग हब (केंद्र) के रूप में परिवर्तित हो गया और दूसरी ओर अधिकांश देशों का चीन के साथ व्यापार घाटा बढ़ता गया। सभी देशों में स्वाभाविक रूप से मैन्यूफैक्चरिंग गतिविधियां बाधित होने लगीं और रोजगार के अवसर नष्ट होने लगे। चीन द्वारा भारी मात्र में डंपिंग करने के कारण हमारे स्वतंत्र (गैर सहायक) लघु उद्योग भारी मात्र में बंद हो चुके हैं। बचे हुए अधिकांश लघु उद्योग सहायक उद्योग ही हैं, जो ऑटोमोबाइल, दवाइयों, रसायन, उपभोक्ता वस्तु आदि के लिए कलपूर्जे एवं मध्यवर्ती वस्तुएं बनाते हैं। इसका असर यह हुआ कि जीडीपी में मैन्यूफैक्चरिंग का हिस्सा या तो स्थिर रहा या कई वर्षो में घट गया। यह सर्वविदित सत्य है और बार-बार स्वीकार भी किया गया कि भारत के उद्योग चीन से सस्ते सामानों के आयातों की प्रतिस्पर्धा में ठहर नहीं पाए और बाजार से बाहर हो गए, लेकिन विश्व व्यापार संगठन का समझौता इस कदर हावी रहा कि उद्योगों के संरक्षण की कोई बात ही नहीं करता था।

अंतरराष्ट्रीय व्यापार विशेषज्ञों का यह मानना था कि यदि ऐसा किया जाता है तो भारत के खिलाफ अन्य देश विवाद निपटारण प्रक्रिया अपना सकते हैं, जिससे देश को नुकसान हो सकता है, लेकिन केवल विश्व व्यापार संगठन में समझौता ही नहीं, बल्कि भारत के नीति निर्माताओं और मुख्यधारा के अर्थशास्त्रियों का मुक्त व्यापार की अवधारणा में विश्वास भी एक कारण था कि विश्व व्यापार संगठन समझौतों में कुछ लचीलापन होने पर भी कभी आयात शुल्क बढ़ाने पर विचार नहीं हो पाया, बल्कि विभिन्न वस्तुओं के आयात पर समझौते में प्रतिबद्ध दरों से कहीं कम आयात शुल्क लगाए गए। इन दरों को बढ़ाने का प्रयास भी बहुत कम हुए। अब अमेरिकी सरकार द्वारा संरक्षणवादी नीति अपनाने के बाद भारत सहित अन्य देशों को भी अपनी मुक्त व्यापार नीति पर पुनर्विचार करना होगा। वास्तव में मुक्त व्यापार एकतरफा नहीं हो सकता। हमें अपनी व्यापार नीति अन्य देशों के रुख को देखते हुए ही बनानी पड़ेगी।

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं) 

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