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15 नवंबर को होगा देश के पहले प्राइवेट राकेट विक्रम का प्रक्षेपण, अंतरिक्ष क्षेत्र में नए युग की शुरुआत

देश का पहला प्राइवेट राकेट लांच के लिए तैयार है। निजी रूप से निर्मित राकेट विक्रम-एस का 15 नवंबर को प्रक्षेपण किया जाएगा। हैदराबाद स्थित अंतरिक्ष स्टार्टअप स्काईरूट एयरोस्पेस ने यह घोषणा की है। स्काईरूट एयरोस्पोस के इस पहले मिशन को प्रारंभ नाम दिया गया है।

By AgencyEdited By: Abhi MalviyaUpdated: Sat, 12 Nov 2022 10:54 PM (IST)
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15 नवंबर को लांच होगा देश का पहला निजी राकेट। फाइल फोटो।
नई दिल्ली, पीटीआइ। देश का पहला प्राइवेट राकेट लांच के लिए तैयार है। निजी रूप से निर्मित राकेट विक्रम-एस का 15 नवंबर को प्रक्षेपण किया जाएगा। हैदराबाद स्थित अंतरिक्ष स्टार्टअप स्काईरूट एयरोस्पेस ने यह घोषणा की है। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के संस्थापक एवं प्रख्यात वैज्ञानिक विक्रम साराभाई को श्रद्धांजलि देने के लिए इसे 'विक्रम' नाम दिया गया है।स्काईरूट एयरोस्पोस (Skyroot Aerospace) के इस पहले मिशन को 'प्रारंभ' (Prarambh) नाम दिया गया है।

तीन पेलोड ले जाएगा 'विक्रम' राकेट

देश का पहला निजी राकेट अपने साथ तीन पेलोड ले जाएगा। इनमें दो भारतीय और एक विदेशी ग्राहक का पेलोड होगा। इसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के श्रीहरिकोटा स्थित लांच पैड से प्रक्षेपित किया जाएगा। स्काईस्पेस एयरोस्पेस ने शुक्रवार को कहा, 'दिल की धड़कनें तेज हो गई हैं। सभी की दृष्टि आकाश में टिकी हैं। पृथ्वी सुन रही है। सभी कुछ 15 नवंबर के प्रक्षेपण के लिए है।'स्काईरूट एयरोस्पेस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) और सह-संस्थापक पवन कुमार चांदना ने कहा कि यह प्रक्षेपण सुबह करीब साढ़े 11 बजे किया जाएगा।

निजी राकेट छोड़ने वाली पहली कंपनी बनेगी स्काईरूट

चेन्नई स्थित एयरोस्पेस स्टार्टअप स्पेसकिड्ज भारत, अमेरिका, सिंगापुर और इंडोनिशिया के छात्रों द्वारा विकसित 2.5 किलोग्राम का पेलोड 'फन-सैट' को अंतरिक्ष में भेजेगा। इस अभियान के साथ ही स्काईरूट भारत में पहली निजी अंतरिक्ष कंपनी बन जाएगी। यह अंतरिक्ष क्षेत्र में नए युग की शुरुआत होगी। 2020 में निजी क्षेत्र के लिए इसे खोला गया था। जानकारों के मुताबिक इस लांच के बाद भारत में राकेट लांचिंग कुछ हद तक सस्ती हो सकती है। दरअसल, इस निजी राकेट में क्रायोजेनिक इंजन का उपयोग हो रहा है। इस क्रायोजेनिक इंजन में खास ईंधन का इस्तेमाल होता है। जानकारों के मुताबिक यह ईंधन किफायती होने के साथ-साथ पर्यावरण को न्यूनतम नुकसान पहुंचाएगा।

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