राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने बुधवार को जनसंख्या विस्फोट की समस्या पर चिंता जताई। संघ प्रमुख ने कहा कि भारत में जनसंख्या पर एक समग्र नीति बनाई जानी चाहिए जो सब पर समान रूप से लागू हो और किसी को इससे छूट नहीं मिले।
By Krishna Bihari SinghEdited By: Updated: Wed, 05 Oct 2022 05:29 PM (IST)
नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत (RSS chief Mohan Bhagwat) ने बुधवार को जनसंख्या विस्फोट की समस्या पर चिंता जताई। संघ प्रमुख (Rashtriya Swayamsevak Sangh Chief) ने कहा कि भारत में जनसंख्या पर एक समग्र नीति बनाई जानी चाहिए जो सब पर समान रूप से लागू हो और किसी को इससे छूट नहीं मिले। भारत में तेजी से बढ़ती जनसंख्या को समस्याओं की बड़ी वजहों में से एक माना जाता रहा है। समय-समय पर संस्थाएं एवं विश्लेषक इस ओर इशारा करते रहे हैं। आइए इस रिपोर्ट में जानें भारत के लिए जनसंख्या विस्फोट क्यों बड़ी चुनौती है।
पहले भी इस ओर ध्यान आकर्षित कराते रहे हैं संघ प्रमुख
भागवत (Mohan Bhagwat) पहले भी समय समय पर जनसंख्या विस्फोट के मुद्दे पर ध्यान आकर्षित कराते रहे हैं। उन्होंने इस साल जुलाई महीने में कहा था कि केवल जीवित रहना ही जीवन का लक्ष्य नहीं है। जानवर भी खाना-पीना और आबादी बढ़ाने का काम करते हैं। भागवत के इस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि यदि भारत सरकार दो बच्चों के मानदंड का बिल लाएगी तो मैं उसका बिल्कुल समर्थन नहीं करूंगा। पिछले महीने भी भागवत ने जनसंख्या नियंत्रण पर एक नीति की जरूरत बताई थी।
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क्या रहा है सुप्रीम कोर्ट का रुख..?
सुप्रीम कोर्ट में जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून बनाए जाने और दो बच्चों की नीति लागू करने की मांग वाली याचिका दाखिल गई थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अनिच्छा जताई थी। याचिका में दलील दी गई थी कि देश में जनसंख्या विस्फोट कई समस्याओं की जड़ है, लेकिन सर्वोच्च अदालत का कहना था कि कोई भी समाज शून्य समस्या वाला नहीं हो सकता है। सरकार को इस मसले पर नीतिगत निर्णय लेना चाहिए। इसके साथ ही अदालत ने 11 अक्टूबर तक के लिए सुनवाई टाल दी थी।
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सरकार की मिलीजुली प्रतिक्रिया...
इस मसले पर केंद्र सरकार के मंत्रियों के अलग अलग स्वर सामने आते रहे हैं। पिछले महीने विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा था कि जबरन जनसंख्या नियंत्रण के बहुत खतरनाक परिणाम हो सकते हैं। इससे लैगिक असंतुलन पैदा हो सकता है। पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने इस साल जुलाई महीने में कहा था कि जनसंख्या विस्फोट मुल्क की मुसीबत है। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह भी जनसंख्या नियंत्रण कानून की जरूरत बता चुके हैं।
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संयुक्त राष्ट्र भी कर चुका है आगाह
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट सामने आई थी, जिसमें कहा गया था कि साल 2023 तक भारत जनसंख्या के मामले में चीन को पीछे छोड़ देगा। इस पर विशेषज्ञों ने कहा था कि बढ़ती आबादी का बोझ ग्राउंड वाटर कैपेसिटी पर पड़ेगा। वहीं यूनिसेफ का कहना है कि दुनिया के करीब दो अरब लोग उन मुल्कों में रह रहे हैं, जहां पर जरूरत की पूर्ति के अनुरूप पानी नहीं है। यदि जनसंख्या पर काबू नहीं पाया गया तो दो दशकों में दुनिया में चार में से एक बच्चा गंभीर जल संकट का सामना करेगा।
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क्या कहते हैं आंकड़े
भारत की जनसंख्या पर गौर करें तो सबसे प्रामाणिक आंकड़े 2011 की जनगणना के हैं। इसके आंकड़े बताते हैं कि देश में कुल विवाहित महिलाओं की संख्या 33,96,21,277 थी जनमें 18,19,74,153 महिलाओं के दो या दो से कम बच्चे थे जबकि 15,76,47,124 के तीन या उससे ज्यादा संताने थी। यूएन के आंकड़ों में भारत की जनसंख्या के 142 करोड़ होने का अनुमान है। मौजूदा वक्त में जनसंख्या के मामले में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर है।
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जायज है संघ प्रमुख की चिंता
मोहन भागवत का कहना है कि हमें विचार करना होगा कि भारत 50 वर्षों के बाद कितने लोगों को भोजन उपलब्ध करा सकता है। इसलिए जनसंख्या की एक समग्र नीति बनाई जानी चाहिए जो सब पर समान रूप से लागू हो। भागवत ने कहा कि जनसंख्या असंतुलन भौगोलिक सीमाओं में बदलाव की वजह बनती है। वहीं, विश्लेषकों का कहना है कि यदि जनसंख्या विस्फोट पर काबू नहीं पाया गया तो खाद्यान्न की कमी एक बड़ी समस्या बन सकती है। इतनी बड़ी जनसंख्या को दो वक्त का भोजन मुहैया कराना सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक होगी।
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