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Stray Dog: आवारा कुत्तों के नियंत्रण की प्रभावी प्रणाली नहीं होने से बढ़ रहा खतरा, कुछ इस तरह होती है चूक

2008 से अबतक लगभग पांच लाख कुत्तों की नसबंदी कर चुके डा. मुरलीधर का कहना है कि भारतीय पशु कल्याण बोर्ड आवारा कुत्तों की नसबंदी एवं टीकाकरण में लगी संस्थाओं की परेशानियों की जानकारी लिए बिना ही नियम बना देता है।

By Jagran NewsEdited By: Anurag GuptaUpdated: Fri, 28 Apr 2023 09:01 PM (IST)
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आवारा कुत्तों के नियंत्रण की प्रभावी प्रणाली नहीं होने से बढ़ रहा खतरा
अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। आवारा कुत्तों और इंसानों के बीच संघर्ष के खतरे को समझने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की वह रिपोर्ट पर्याप्त है, जिसमें कहा गया है कि रेबीज के चलते भारत में सबसे ज्यादा मौतें होती हैं। यह आंकड़ा दुनिया में रेबीज से होने वाली कुल मौत का एक तिहाई से भी ज्यादा है। हम छह दशकों से अधिनियम और नियमावली बनाते आ रहे हैं। समय-समय पर संशोधित भी करते आ रहे हैं, किंतु खतरा कम होन की जगह ज्यादा गंभीर होता जा रहा है।

स्पष्ट है कहीं न कहीं नियमों के अनुपालन में ही खामियां है और हमें सबसे पहले जड़ पर ही प्रहार की जरूरत है। ऐसा नहीं होता तो केरल में लोग नियमों को दरकिनार कर खतरनाक कुत्तों को मारने के लिए अपने स्तर से चौकीदार तैनात करने का जोखिम नहीं उठाते।

आवारा कुत्तों के बढ़ते कहर की चुनौतियों पर गहरी नजर रखने वाले हैदराबाद के डा. मुरलीधर पशु जन्म नियंत्रण के नियमों पर ही प्रश्न खड़े करते हैं।

फरमान जारी कर देने से कुत्तों की आवारगी नहीं होती कम

2008 से अबतक लगभग पांच लाख कुत्तों की नसबंदी कर चुके डा. मुरलीधर का कहना है कि भारतीय पशु कल्याण बोर्ड आवारा कुत्तों की नसबंदी एवं टीकाकरण में लगी संस्थाओं की परेशानियों की जानकारी लिए बिना ही नियम बना देता है। डेढ़ दशक से वह इस फील्ड में काम कर रहे हैं, किंतु अभी तक एक बार भी बोर्ड के साथ उनकी मीटिंग नहीं हुई है। सिर्फ नियम बनाकर फरमान जारी कर देने भर से कुत्तों की आवारगी कम नहीं हो जाएगी।

आवारा कुत्तों की नसबंदी में जुटे डा. मुरलीधर अकेले नहीं हैं, जो व्यवस्था पर प्रश्न खड़े कर रहे हैं। पटना में उर्वी एनीमल वेलफेयर फाउंडेशन के संस्थापक डा. प्रेम शंकर का भी यही दर्द है। उनका कहना है कि पालतू जानवरों को स्वस्थ और आवारा कुत्तों की संख्या को नियंत्रित रखने के लिए अभी जो प्रयास किए जा रहे हैं, उन्हें पर्याप्त नहीं कहा जा सकता है।

बोर्ड के पास निगरानी की कोई सीधी व्यवस्था नहीं

उन्होंने कहा कि जन्म नियंत्रण प्रणाली (कुत्ते) में खामी और व्यवस्था की लापरवाही के चलते आवारा कुत्तों की संख्या बेहिसाब बढ़ती जा रही है। बोर्ड के पास निगरानी की कोई सीधी व्यवस्था नहीं है और राज्य स्तर पर इसके लिए कोई सक्षम प्राधिकरण नहीं है। बोर्ड नियम बनाता है और स्थानीय निकायों को लागू करना होता है। यहीं पर चूक है। बिहार इसका उदाहरण है कि आवारा कुत्तों की नसबंदी का जिम्मा सिर्फ एक संस्था के पास है और उसने सिर्फ समस्तीपुर में काम शुरू किया है। बाकी सारे निकाय कुत्तों की आवारगी।

उन्होंने कहा कि बेगूसराय में दिसंबर से जनवरी के बीच कुत्तों के काटने से हुई 10 लोगों की मौत के बाद विधानसभा में प्रश्न भी उठे, लेकिन समाधान के नाम पर वन विभाग की आखेटक टीम को बुलाकर हमलावर कुत्तों को शूटआउट कर मामले को तात्कालिक रूप से शांत कर दिया गया।

''आवारा कुत्तों की नसबंदी में पारदर्शिता नहीं''

अहमदाबाद में गोल फाउंडेशन के भाविक शाह भी व्यवस्था में ही खोट मानते हैं। उनका कहना है कि आवारा कुत्तों की नसबंदी में पारदर्शिता नहीं है। स्थानीय निकायों के नियंत्रण में काम करने वाली संस्थाएं कितनी ईमानदारी से काम करती हैं, इसकी निगरानी का कोई सिस्टम नहीं है। वह उदाहरण देकर समझाते हैं कि यदि किसी संस्था ने एक दिन में मात्र चार कुत्तों की नसबंदी की, लेकिन निकायों के अधिकारियों से मिलकर उसे 40 बता दिया और भुगतान ले लिया तो इसे कौन देख रहा है?

उन्होंने कहा कि अधिकतर मामलों में ऐसा ही होता है। इसलिए नियम बनना चाहिए कि नसबंदी सीसीटीवी कैमरे के दायरे में होना चाहिए। आवारा कुत्तों से जुड़ी इन चुनौतियों और खामियों के बारे में पशु कल्याण बोर्ड के शीर्ष अधिकारियों से संपर्क के तमाम प्रयास किए गए मगर उनकी ओर से इस बारे में किसी तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की गई।

कौन बनाता है नियम

आवारा कुत्तों पर नियंत्रण राज्य का नहीं, केंद्र का विषय है। पहली बार 1960 में संसद ने पशु क्रूरता निरोधक अधिनियम बनाया था। प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए भारतीय पशु कल्याण बोर्ड की स्थापना की गई। नियमों में समय-समय पर संशोधन होते रहे। अधिनियम की धारा 428 और 429 किसी जानवर के साथ क्रूरता से रोकती है। उन्हें मारने या पिटाई से अपंग होने के दोषी पाए जाने पर पांच वर्ष की जेल तक की सजा हो सकती है।

2001 में हुए संशोधन पशु जन्म नियंत्रण (कुत्ते) नियम के तहत आवारा कुत्तों को कई अधिकार दिए गए। वह जहां चाहें, रह सकते हैं। उन्हें भगाया-हटाया नहीं जा सकता है। केंद्र सरकार ने 2006 में सरकारी कर्मचारियों को आवारा कुत्तों के प्रति क्रूरता से परहेज करने के लिए एक कार्यालय सर्कुलर भी जारी किया।

नए नियम की सफलता पर भी शक

पशु कल्याण बोर्ड ने इसी महीने एक और नियम बनाया। पशु जन्म नियंत्रण नियम-2023 की अधिसूचना इसी 18 अप्रैल को जारी कर दी गई। पूर्व के नियमों की तरह नई नियमावली की सफलता पर भी शक होना स्वाभाविक है, क्योंकि यह भी उदासीनता की भेंट चढ़ सकती है।

मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी राज्यमंत्री संजीव बालियान भी मानते हैं कि नियम बना देने से ही संकट का समाधान नहीं हो जाता। इसे तत्परता से लागू भी करना होता है। नई नियमावली में आवारा पशुओं को पकड़ कर टीका लगाने या नसबंदी के बाद वापस छोड़ने का प्राविधान किया गया है।

बोर्ड का मानना है कि इससे उनकी आक्रामकता में कमी आएगी। किंतु पुराने प्रयासों के परिणाम बताते हैं कि खतरे कम नहीं हुए। हाल की लगातार घटनाएं इसकी गवाह हैं।