जिसने कभी हार नहीं मानी, वह शख्सियत थे रुस्तम-ए-हिंद दारा सिंह
दारा सिंह ने अपने जीवन में कुश्ती के 500 मुकाबले लड़े और किसी एक में भी उन्हें हार का मुंह नहीं देखना पड़ा। आइए जानें दारा सिंह के बारे में ऐसे ही कुछ रोचक तथ्य...
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Mon, 19 Nov 2018 12:04 PM (IST)
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। दारा सिंह रंधावा का जन्म 19 नवंबर 1928 को पंजाब में अमृतसर के धरमूचक गांव में बलवंत कौर और सूरत सिंह रंधावा के घर हुआ था। अखाड़े से फिल्मी दुनिया तक का सफर दारा सिंह के लिए काफी चुनौती भरा रहा। बात चाहे कुश्ती की हो, फिल्मी दुनिया या रामायण की या फिर राजनीति की। जब बात दारा सिंह की होती है तो लोगों का ठहराव लाजिमी है। दारा सिंह वो शख्स थे, जिन्होंने कुश्ती के 500 मुकाबलों में अपराजित रहकर दुनिया को अपनी ताकत का लोहा मनवाया था। अपने छत्तीस साल के कुश्ती के करियर में कोई ऐसा पहलवान नहीं था, जिसे दारा सिंह ने अखाड़े में धूल न चटाई हो।
17 वर्ष की आयु में बने पिता
दारा सिंह ने अपनी जीवन के शुरुआती दौर में ही काफी मुश्किलें देखी थी। अपनी किशोर अवस्था में दारा सिंह दूध व मक्खन के साथ 100 बादाम रोज खाकर कई घंटे कसरत व व्यायाम में गुजारा करते थे। बचपन में ही उनके माता-पिता ने उनकी शादी कर दी थी, जिसके बाद 17 साल की नाबालिग उम्र में वह पिता बन गए।
दारा सिंह ने अपनी जीवन के शुरुआती दौर में ही काफी मुश्किलें देखी थी। अपनी किशोर अवस्था में दारा सिंह दूध व मक्खन के साथ 100 बादाम रोज खाकर कई घंटे कसरत व व्यायाम में गुजारा करते थे। बचपन में ही उनके माता-पिता ने उनकी शादी कर दी थी, जिसके बाद 17 साल की नाबालिग उम्र में वह पिता बन गए।
बलवान का पर्याय थे दारा सिंह
दारा सिंह का पूरा नाम था दारा सिंह रंधावा। उन्हें बचपन से ही कुश्ती का काफी शौक था। मजबूत कद काठी के दारा सिंह ने कुश्ती की दुनिया में न सिर्फ भारत का नाम ऊंचा किया, बल्कि उनके बारे में सबसे दिलचस्प बात ये है कि 50 के दशक में एक मुकाबले में दारा सिंह ने अपने से कहीं ज्यादा वजनी ऑस्ट्रेलिया के किंग कांग को पहले तो रिंग में पटखनी दी और फिर उन्हें उठाकर रिंग के बाहर ही फेंक दिया। उस वक्त दारा सिंह का वजन 130 किलो था जबकि किंग कांग 200 किलो के थे। 1983 में उन्होंने अपने जीवन का अन्तिम मुकाबला जीता और भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के हाथों अपराजेय पहलवान का खिताब अपने पास बरकरार रखते हुए कुश्ती से सम्मानपूर्वक संन्यास ले लिया। दुनियाभर के पहलवानों को कुछ यू चटाई धूल
दारा सिंह जब भी अखाड़े में होते थे, सामने वाला पहलवान चाहे कितना भी बलवान क्यों न हो, दारा से उसका कोई मुकाबला नहीं होता था। 1947 में दारा सिंह ने 'भारतीय स्टाइल' की कुश्ती में मलेशियाई चैंपियन त्रिलोक सिंह को हराकर कुआलालंपुर में मलेशियाई कुश्ती चैम्पियनशिप जीती। पांच साल तक फ्री स्टाइल रेसलिंग में दुनियाभर के पहलवानों को चित्त करने के बाद दारा सिंह भारत आकर 1954 में भारतीय कुश्ती चैंपियन बने।
दारा सिंह का पूरा नाम था दारा सिंह रंधावा। उन्हें बचपन से ही कुश्ती का काफी शौक था। मजबूत कद काठी के दारा सिंह ने कुश्ती की दुनिया में न सिर्फ भारत का नाम ऊंचा किया, बल्कि उनके बारे में सबसे दिलचस्प बात ये है कि 50 के दशक में एक मुकाबले में दारा सिंह ने अपने से कहीं ज्यादा वजनी ऑस्ट्रेलिया के किंग कांग को पहले तो रिंग में पटखनी दी और फिर उन्हें उठाकर रिंग के बाहर ही फेंक दिया। उस वक्त दारा सिंह का वजन 130 किलो था जबकि किंग कांग 200 किलो के थे। 1983 में उन्होंने अपने जीवन का अन्तिम मुकाबला जीता और भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के हाथों अपराजेय पहलवान का खिताब अपने पास बरकरार रखते हुए कुश्ती से सम्मानपूर्वक संन्यास ले लिया। दुनियाभर के पहलवानों को कुछ यू चटाई धूल
दारा सिंह जब भी अखाड़े में होते थे, सामने वाला पहलवान चाहे कितना भी बलवान क्यों न हो, दारा से उसका कोई मुकाबला नहीं होता था। 1947 में दारा सिंह ने 'भारतीय स्टाइल' की कुश्ती में मलेशियाई चैंपियन त्रिलोक सिंह को हराकर कुआलालंपुर में मलेशियाई कुश्ती चैम्पियनशिप जीती। पांच साल तक फ्री स्टाइल रेसलिंग में दुनियाभर के पहलवानों को चित्त करने के बाद दारा सिंह भारत आकर 1954 में भारतीय कुश्ती चैंपियन बने।
भारतीय कुश्ती को दिलाई पहचान
दारा सिंह और उनके छोटे भाई सरदारा सिंह ने मिलकर पहलवानी शुरू कर दी और धीरे-धीरे गांव के दंगलों से लेकर शहरों में कुश्तियां जीतकर अपने गांव का नाम रोशन करना शुरू कर दिया और भारत में अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश में जुट गए थे।अमेरिका के विश्व चैम्पियन लाऊ थेज को हरा बने चैम्पियन
दारा ने साल 1959 में पूर्व विश्व चैम्पियन जार्ज गारडियान्का को पराजित करके कामनवेल्थ की विश्व चैम्पियनशिप जीती थी। 1968 में वे अमेरिका के विश्व चैम्पियन लाऊ थेज को पराजित कर फ्रीस्टाइल कुश्ती के विश्व चैम्पियन बन गए। उन्होंने 55 वर्ष की आयु तक पहलवानी की और पांच सौ मुकाबलों में से किसी एक में भी पराजय का मुंह नहीं देखा। अपराजेय रहे दारा
उसके बाद उन्होंने कॉमनवेल्थ देशों का दौरा किया और विश्व चैम्पियन किंगकाग को परास्त कर दिया था। दारा सिंह ने उन सभी देशों का एक-एक करके दौरा किया जहां फ्रीस्टाइल कुश्तियां लड़ी जाती थीं। आखिरकार अमेरिका के विश्व चैंपियन लाऊ थेज को 29 मई 1968 को पराजित कर फ्रीस्टाइल कुश्ती के विश्व चैम्पियन बन गए। 1983 में उन्होंने अपराजेय पहलवान के रूप में कुश्ती से संन्यास ले लिया। फिल्मी दुनिया में कुछ यूं हुई एंट्री
दारा सिंह के बारे में ऐसा कहा जाता है कि कुश्ती के दिनों से ही उन्हें फिल्मों में काम मिलना शुरू हो गया था। उनके बारे में तो ये भी कहा जाता है कि परदे पर कमीज उतारने वाले वो पहले हीरो थे। सिकंदर-ए-आजम और डाकू मंगल सिंह जैसी फिल्मों से करियर शुरू करने वाले दारा सिंह आखिरी बार इम्तियाज अली की 2007 में रिलीज फिल्म 'जब वी मेट' में करीना कपूर के दादा के रोल में नजर आए थे। गुजरे जमाने में अभिनेत्री मुमताज के साथ उनकी जोड़ी बड़ी हिट मानी जाती थी। दारा की फिल्म 'जग्गा' के लिए भारत सरकार से उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार भी दिया गया था। बाद में उन्होंने टेलीवीजन सीरियलों में भी काम किया। दारा सिंह ने हिट धारावाहिक रामायण में हनुमान का किरदार निभाया था। राज्यसभा सदस्य रहे दारा सिंह
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के वक्त भारतीय जनता पार्टी ने साल 2003 में उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनाया था। वह पहले ऐसे खिलाड़ी थे जिसे राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया था। आज भी रामानंद सागर की रामायण में उनकी भूमिका हनुमान के किरदार की खूब चर्चा होती है। बीआर चोपड़ा के टीवी धारावाहिक महाभारत में भी उन्होंने हनुमान के किरदार को एक बार फिर जिया था।
दारा सिंह और उनके छोटे भाई सरदारा सिंह ने मिलकर पहलवानी शुरू कर दी और धीरे-धीरे गांव के दंगलों से लेकर शहरों में कुश्तियां जीतकर अपने गांव का नाम रोशन करना शुरू कर दिया और भारत में अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश में जुट गए थे।अमेरिका के विश्व चैम्पियन लाऊ थेज को हरा बने चैम्पियन
दारा ने साल 1959 में पूर्व विश्व चैम्पियन जार्ज गारडियान्का को पराजित करके कामनवेल्थ की विश्व चैम्पियनशिप जीती थी। 1968 में वे अमेरिका के विश्व चैम्पियन लाऊ थेज को पराजित कर फ्रीस्टाइल कुश्ती के विश्व चैम्पियन बन गए। उन्होंने 55 वर्ष की आयु तक पहलवानी की और पांच सौ मुकाबलों में से किसी एक में भी पराजय का मुंह नहीं देखा। अपराजेय रहे दारा
उसके बाद उन्होंने कॉमनवेल्थ देशों का दौरा किया और विश्व चैम्पियन किंगकाग को परास्त कर दिया था। दारा सिंह ने उन सभी देशों का एक-एक करके दौरा किया जहां फ्रीस्टाइल कुश्तियां लड़ी जाती थीं। आखिरकार अमेरिका के विश्व चैंपियन लाऊ थेज को 29 मई 1968 को पराजित कर फ्रीस्टाइल कुश्ती के विश्व चैम्पियन बन गए। 1983 में उन्होंने अपराजेय पहलवान के रूप में कुश्ती से संन्यास ले लिया। फिल्मी दुनिया में कुछ यूं हुई एंट्री
दारा सिंह के बारे में ऐसा कहा जाता है कि कुश्ती के दिनों से ही उन्हें फिल्मों में काम मिलना शुरू हो गया था। उनके बारे में तो ये भी कहा जाता है कि परदे पर कमीज उतारने वाले वो पहले हीरो थे। सिकंदर-ए-आजम और डाकू मंगल सिंह जैसी फिल्मों से करियर शुरू करने वाले दारा सिंह आखिरी बार इम्तियाज अली की 2007 में रिलीज फिल्म 'जब वी मेट' में करीना कपूर के दादा के रोल में नजर आए थे। गुजरे जमाने में अभिनेत्री मुमताज के साथ उनकी जोड़ी बड़ी हिट मानी जाती थी। दारा की फिल्म 'जग्गा' के लिए भारत सरकार से उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार भी दिया गया था। बाद में उन्होंने टेलीवीजन सीरियलों में भी काम किया। दारा सिंह ने हिट धारावाहिक रामायण में हनुमान का किरदार निभाया था। राज्यसभा सदस्य रहे दारा सिंह
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के वक्त भारतीय जनता पार्टी ने साल 2003 में उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनाया था। वह पहले ऐसे खिलाड़ी थे जिसे राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया था। आज भी रामानंद सागर की रामायण में उनकी भूमिका हनुमान के किरदार की खूब चर्चा होती है। बीआर चोपड़ा के टीवी धारावाहिक महाभारत में भी उन्होंने हनुमान के किरदार को एक बार फिर जिया था।