पांच साल में जेलों में बंद 817 कैदियों की मौत, उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा और सबसे नीचे है ये राज्य
केंद्रशासित प्रदेशों में दिल्ली में 2017-2021 के दौरान सबसे अधिक 40 आत्महत्याएं दर्ज की गईं। इन पांच वर्षों में वृद्धावस्था के कारण 462 मौतें हुईं और बीमारी के कारण 7736 कैदियों की मौत हुई। 2017-2021 के बीच भारत की जेलों में कुल 817 अप्राकृतिक मौतें हुई जिनमें 660 आत्महत्याएं और 41 हत्याएं थी। इस अवधि में 46 मौतें आकस्मिक मौतों से संबंधित थीं।
By Jagran NewsEdited By: Narender SanwariyaUpdated: Fri, 01 Sep 2023 07:18 AM (IST)
नई दिल्ली, पीटीआई। देश भर की जेलों में 2017 से 2021 के बीच हुई 817 अस्वाभाविक मौतों का एक प्रमुख कारण आत्महत्या है। हिरासत में होने वाली मौतों की संख्या में 2019 के बाद से लगातार वृद्धि देखी गई है। 2021 में अब तक सबसे अधिक मौतें आत्महत्या (80 प्रतिशत) के रूप में ही दर्ज हैं। जेल सुधारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की गठित समिति ने जेलों में अप्राकृतिक मौतों को रोकने के लिए आत्महत्या रोधी बैरक बनाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया है। शीर्ष अदालत पूरे देश की 1,382 जेलों में व्याप्त स्थितियों से संबंधित मामले पर विचार कर रही है। इस मामले की सुनवाई 26 सितंबर को होनी है।
817 अस्वाभाविक मौतों में से 660 आत्महत्याएंसुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस (सेवानिवृत्त) अमिताव राय की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा कि 817 अस्वाभाविक मौतों में से 660 आत्महत्याएं थीं और इस अवधि के दौरान उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 101 आत्महत्याएं दर्ज की गईं। पिछले पांच वर्षों यानी वर्ष 2017 से 2021 के दौरान उत्तर प्रदेश में देश में सबसे अधिक आत्महत्याओं के बाद पंजाब और बंगाल राज्य हैं जहां क्रमशः 63 और 60 कैदियों ने आत्महत्या की।
जेल कर्मियों की लापरवाही या ज्यादतीकेंद्रशासित प्रदेशों में दिल्ली में 2017-2021 के दौरान सबसे अधिक 40 आत्महत्याएं दर्ज की गईं। इन पांच वर्षों में वृद्धावस्था के कारण 462 मौतें हुईं और बीमारी के कारण 7,736 कैदियों की मौत हुई। 2017-2021 के बीच भारत की जेलों में कुल 817 अप्राकृतिक मौतें हुई, जिनमें 660 आत्महत्याएं और 41 हत्याएं थी। इस अवधि में 46 मौतें आकस्मिक मौतों से संबंधित थीं, जबकि सात कैदियों की मौत क्रमशः बाहरी तत्वों के हमले और जेल कर्मियों की लापरवाही या ज्यादती के कारण हुई।
समिति की सिफारिशेंसमिति ने शीर्ष अदालत में प्रस्तुत रिपोर्ट में भीड़-भाड़ वाली जेलों में अस्वभाविक मौतों का अंदेशा अधिक बताते हुए कहा, ‘जेल के बुनियादी ढांचे के मौजूदा डिजाइन के भीतर संभावित फांसी स्थल और संवेदनशील स्थानों की पहचान कर उन्हें बदलने के साथ आत्महत्या प्रतिरोधी कक्षों/बैरक का निर्माण करने की आवश्यकता है।’ समिति ने सिफारिश की है कि जहां तक संभव हो अदालतों में वरिष्ठ नागरिकों और बीमार कैदियों की पेशी वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से की जाए। जेल कर्मचारियों को चेतावनी के संकेतों को पहचानने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए और जेलों में जीवन सुरक्षा के लिए उचित तंत्र तैयार करना चाहिए।
प्रभावी कदम उठाने चाहिएजेल प्रशासन को कैदियों के बीच हिंसा को रोकने के लिए तत्काल और प्रभावी कदम उठाने चाहिए। जेलों में हिंसा को कम करने के लिए, यह सिफारिश की जाती है कि जेलों में पहली बार अपराध करने वालों और बार-बार अपराध करने वालों को जेलों, अस्पतालों और अदालतों तथा अन्य स्थानों पर अलग-अलग ले जाया जाना चाहिए। समिति ने सिफारिश में यह भी कहा है कि किन्नर कैदियों के साथ जेलों में अन्य कैदियों जैसा ही व्यवहार किया जाना चाहिए। उन्हें भी सभी समान अधिकार और सुविधाएं दी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2018 में जेल सुधारों से जुड़े मुद्दों पर गौर करने और जेलों में भीड़भाड़ सहित कई पहलुओं पर सिफारिशें करने के लिए जस्टिस (सेवानिवृत्त) राय की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था।