जन लोकपाल बिल पर केंद्र से भिड़े केजरीवाल
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अब जन लोकपाल बिल को लेकर केंद्र सरकार से भिड़ गए हैं। दिल्ली सरकार के विभिन्न महकमों द्वारा दर्ज कराई गई आपत्तियों को दरकिनार करते हुए राज्य मंत्रिमंडल ने सोमवार को जन लोकपाल बिल, 2014 को अपनी मंजूरी दे दी। सरकार का कहना है कि बिल को केंद्र की मंजूरी के लिए नहीं भेजा जाएगा।
नई दिल्ली [जासं]। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अब जन लोकपाल बिल को लेकर केंद्र सरकार से भिड़ गए हैं। दिल्ली सरकार के विभिन्न महकमों द्वारा दर्ज कराई गई आपत्तियों को दरकिनार करते हुए राज्य मंत्रिमंडल ने सोमवार को जन लोकपाल बिल, 2014 को अपनी मंजूरी दे दी। सरकार का कहना है कि बिल को केंद्र की मंजूरी के लिए नहीं भेजा जाएगा। इसे सीधे विधानसभा सत्र के दौरान 16 फरवरी को इंदिरा गांधी इनडोर स्टेडियम में पारित किया जाएगा। हालांकि कानून के जानकारों का कहना है कि ऐसा करना संविधान के खिलाफ है।
दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने बताया कि मुख्यमंत्री से लेकर चपरासी तक को जन लोकपाल बिल के दायरे में लाया गया है। इसमें व्यवस्था की गई है कि गंभीर किस्म के रिश्वत के आरोप साबित होने पर संबंधित अधिकारी-कर्मचारी को उम्रकैद तक की सजा दी जा सकती है। उन्होंने बिल को विधानसभा में पारित किए जाने से पहले केंद्र की मंजूरी के लिए भेजे जाने की कानूनी अनिवार्यता को नकारते हुए कहा कि सरकार इसे अब सीधे विधानसभा में पेश करेगी। सिसोदिया ने बताया कि भ्रष्टाचार की शिकायत चाहे जहां से आए उसकी एक समान तरीके से जांच की जाएगी। ऐसा करते हुए किसी सामान्य कर्मचारी और मुख्यमंत्री में कोई अंतर नहीं किया जाएगा। लोकपाल पैनल में कुल दस सदस्य होंगे। इनका चुनाव एक सात सदस्यीय समिति करेगी। इस समिति में सत्ता पक्ष की ओर से मुख्यमंत्री होंगे जबकि विपक्ष के नेता भी इसके सदस्य होंगे। बाकी सदस्य कानून से जुड़े और अलग-अलग क्षेत्रों से होंगे।
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'संसद द्वारा लोकपाल कानून को मंजूरी दिए जाने के बाद दिल्ली सरकार इसी प्रकार का कानून नहीं ला सकती। संविधान की धारा 239एए के तहत किए गए प्रावधानों के अनुसार केजरीवाल सरकार को ऐसा कोई भी कानून बनाने से पहले केंद्र सरकार से इजाजत लेना जरूरी है।'
-सुभाष कश्यप, संविधान विशेषज्ञ
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