Delhi-NCR की हवा हुई और भी जहरीली, दिन भर छाया रहा धुंध; पराली प्रबंधन के दावे रहे खोखले
केंद्र ने राज्यों के साथ मिलकर पराली प्रबंधन की बनाई थी व्यापक योजना दावा था कि पराली नहीं जलेगी और न ही Delhi-NCR की सांस फूलेगी। हर साल पराली को लेकर होती है कसरत अब तक ढाई हजार करोड़ से ज्यादा खर्च।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। केंद्र और राज्य सरकारों के पराली प्रबंधन के सारे दावे फिर खोखले रहे। पंजाब और हरियाणा में खुलेआम जल रही पराली के जहरीले धुएं की धुंध से एक बार फिर दिल्ली- एनसीआर डूब गया है। यहां की हवाओं में मंगलवार यानी दो नवंबर को पराली के धुएं की मात्रा 34 फीसद से ज्यादा रिपोर्ट की गई है, जो इस पूरे सीजन की अबतक की सबसे भयावह स्थिति है। इसके चलते आमलोग को सांस लेना मुश्किल हो रहा है। यह स्थिति तब है जब केंद्र और राज्यों की ओर से पराली प्रबंधन को लेकर दर्जनों बैठकें और पराली के एक-एक टुकड़े के प्रबंधन के दावे किए गए थे। साथ ही पिछले पांच सालों में इससे निपटने के लिए करीब ढाई हजार करोड़ रुपए खर्च भी किए जा चुके है। इसके बाद भी समस्या बनी हुई है।
दिल्ली- एनसीआर में AQI हुआ खराब
इस बीच दिल्ली- एनसीआर में हवा की गुणवत्ता बेहद खराब बनी हुई है। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से जुड़ी एजेंसी 'सफर इंडिया' ने अगले एक- दो दिनों में हवा की गुणवत्ता के और भी खराब होने का संभावना जताई है। हालांकि यह बहुत कुछ मौसम और हवाओं की रफ्तार पर निर्भर करेगा।
फिलहाल दिल्ली- एनसीआर में हवाओं की गुणवत्ता (एक्यूआई) पिछले 24 घंटों में औसतन 424 के आसपास है। खास बात यह है कि पराली से निपटने के लिए केंद्र ने यह बैठक सिर्फ अधिकारियों के स्तर पर ही नहीं रखी थी बल्कि राज्यों के पर्यावरण और कृषि मंत्रियों के साथ भी अलग-अलग बैठकें की थी।
राज्यों ने पराली न जलने देने का दिया भरोसा
राज्यों ने पराली न जलने देने का भरोसा भी दिया था। हालांकि बैठक में पंजाब और दिल्ली ने किसानों को पराली प्रबंधन के लिए प्रति एकड़ के हिसाब से वित्तीय मदद देने का प्रस्ताव भी रखा था, जिसे केंद्र ने खारिज कर दिया था। इसके वाबजूद भी पंजाब में पिछले साल के मुकाबले अब तक पराली जलने की ज्यादा घटनाएं रिपोर्ट हुई है। वहीं हरियाणा व उत्तर प्रदेश में भी जहां इसे पूरी तरह से थामने का दावा था वह भी नहीं थमा है।
गौरतलब है कि दिल्ली-एनसीआर को पराली के जहरीले धुएं से बचाने के लिए केंद्र सरकार वर्ष 2017 से ही प्रबंधन के नए-नए उपाय करने में जुटी है। इसे बीच वर्ष 2018-19 से 21-22 तक केंद्र की ओर से राज्यों को इसके प्रबंधन के करीब ढाई हजार करोड़ मुहैया भी कराए जा चुके है। इनमें अकेले पंजाब को एक हजार करोड़ से ज्यादा की राशि दी गई है। जिसमें उन्हें खेतों में ही पराली को नष्ट करने के लिए बायो-डीकंपोजर और सब्सिडी पर मशीनें भी मुहैया कराई गई है।
पराली से निपटने के लिए कुछ इस तरह बनी थी योजना
पराली की समस्या सबसे ज्यादा पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में है। यहां से हर साल करीब 27 मिलियन टन पराली निकलती है। तीनों राज्यों में इसका क्षेत्रफल करीब 47 लाख हेक्टेयर है। अभी किसानों द्वारा बुआई के लिए अपने खेतों को जल्द तैयार करने के लिए पराली खेतों में ही जलाई जाती है। फिलहाल राज्यों के साथ मिलकर जो योजना बनाई गई थी, उनमें से करीब नौ लाख हेक्टेयर क्षेत्र की पराली को बायो-डीकंपोजर की मदद से खत्म किया जाना था।
इसके अलावा दो लाख मिलियन टन से ज्यादा पराली का इस्तेमाल थर्मल पावर प्लांट के लिए बनाए जाने पैलेट या ब्रिक्स ( कृत्रिम कोयला) बनाने में इस्तेमाल होना था। इसकी पूर्ति पंजाब, हरियाणा के अतिरिक्त देश से दूसरे हिस्सों से भी किए जाने की योजना बनाई थी।
इसके साथ ही प्रत्येक थर्मल पावर प्लांट के लिए अपनी कुल ईंधन खपत में से पांच से दस फीसद पराली से बनने वाले ईंधन को इस्तेमाल जरूरी करने का भी ऐलान किया गया था। थर्मल पावर ने इसकी खरीदी के लिए टेंडर भी जारी कर दिए थे। वहीं केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ( सीपीसीबी) ने पैलेट प्लांट लगाने के लिए एक नई योजना भी लांच की थी। इसके साथ ही पराली का इस्तेमाल एथेनाल प्लांट, बायोगैस प्लांट, पशुओं के चारे और पैकेजिंग में भी इस्तेमाल की योजना थी।
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किस राज्य से निकलती है कितनी पराली
पंजाब से 19.99 मिलियन टन ( कुल रकबा 31.44 लाख हेक्टेयर) हरियाणा से 7.0 मिलियन टन ( कुल रकबा- 13.90 लाख हेक्टेयर) उत्तर प्रदेश (एनसीआर) से 0.67 मिलियन टन ( कुल रकबा- 1.90 लाख हेक्टेयर)
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