Demonetisation: नोटबंदी पर संविधान पीठ चार जनवरी तक सुना सकती है फैसला, मामले से जुड़ी 58 याचिकाएं लंबित
नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मामले का फैसला जल्द ही आ सकता है। केंद्र सरकार ने आठ नवंबर 2016 को 500 और 1000 के नोटों की बंदी की घोषणा की थी। सुप्रीम कोर्ट में 58 याचिकाएं लंबित हैं जिनमें नोटबंदी के फैसले को चुनौती दी गई है।
By Jagran NewsEdited By: Piyush KumarUpdated: Tue, 20 Dec 2022 07:16 PM (IST)
माला दीक्षित, नई दिल्ली। छह साल पहले 2016 को हुई नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ चार जनवरी तक फैसला दे सकती है। चार जनवरी तक फैसला आने की संभावना इसलिए है क्योंकि मामले की सुनवाई करने वाली पीठ के अध्यक्ष जस्टिस एस.अब्दुल नजीर चार जनवरी को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। वैसे सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल शीतकालीन अवकाश चल रहा है। कोर्ट दो जनवरी को खुलेगा। ऐसे में दो जनवरी से चार जनवरी के बीच नोटबंदी पर फैसला आने की उम्मीद है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला आएगा वह नोटबंदी के संबंध में भविष्य की दिशा तय करने वाला हो सकता है।
पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सुरक्षित रखा अपना फैसला
केंद्र सरकार ने आठ नवंबर 2016 को 500 और 1000 के नोटों की बंदी की घोषणा की थी। सुप्रीम कोर्ट में कुल 58 याचिकाएं लंबित हैं जिनमें केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले को चुनौती दी गई है। मामले पर जस्टिस एस अब्दुल नजीर, बीआर गवई, एएस बोपन्ना, वी.रामासुब्रमण्यम और बीवी नागरत्ना की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनवाई कर सात दिसंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। फैसला सुरक्षित रखते हुए कोर्ट ने सरकार को 500 और 1000 के नोट की बंदी के फैसले से संबंधित प्रासंगिक रिकार्ड पेश करने का निर्देश दिया था। अटार्नी जनरल ने कोर्ट से कहा था कि वे सील बंद लिफाफे में प्रासंगिक रिकार्ड पेश करेंगे।
जानें याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट के सामने क्या दी थी दलील
इस मामले में याचिकाकर्ताओं ने मुख्यतय: आरबीआइ एक्ट की धारा 26 को आधार बनाया है जिसमें सेंट्रल बोर्ड की संस्तुति पर सरकार किसी भी नोट को रद कर सकती है या बंद कर सकती है। एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश पूर्व वित्तमंत्री और वरिष्ठ वकील पी.चिदंबरम ने कोर्ट से नोट बंदी के कानूनी पहलू परखने का आग्रह करते हुए दलील दी थी कि 1978 में जब नोटबंदी हुई थी तो संसद ने उस बारे में अलग से कानून पारित किया था और इस बार भी अलग से कानून पारित होना चाहिए था जबकि सरकार ने अलग से कानून न पारित करके आरबीआइ एक्ट की धारा 26 के तहत एक्जीक्यूटिव आदेश से नोटबंदी की है।
चिदंबरम ने कहा कि नोट बंदी के फैसले से 86 फीसद नोट बंद कर दिये गए क्योंकि जिन नोटों की बंदी का एलान किया गया वे 86 फीसद थे। उन्होंने कहा कि कोर्ट आनुपातिक सिद्धांत को लागू करते हुए सरकार की आर्थिक नीति को भी परख सकता है और कोर्ट को आनुपातिक सिद्दांत पर इसे परखना चाहिए। जबकि दूसरी और केंद्र सरकार ने नोटबंदी की तरफदारी करते हुए दलील दी थी कि ये सोच समझ कर लिया गया फैसला था।
नोटबंदी जाली मुद्रा, आतंकी फंडिंग, कालेधन और कर चोरी के खतरे से निपटने की व्यापक रणनीति का हिस्सा थी। यह कदम रिजर्व बैंक से व्यापक विचार-विमर्श के बाद उठाया गया था और इसके लिए पहले से तैयारियां की गई थीं। सरकार ने यह भी कहा था कि नोटबंदी आर्थिक नीति का हिस्सा थी और आर्थिक नीति से जुड़े मामलों की न्यायिक समीक्षा के सीमित दायरे होते हैं। सुनवाई कर रही पीठ ने इस दलील पर टिप्पणी की थी कि आर्थिक नीति से जुड़े मामलों में न्यायिक समीक्षा के सीमित दायरे का मतलब यह नहीं है कि अदालत हाथ पर हाथ धरकर चुप बैठ जाएगी। सरकार किस तरीके से निर्णय लेती है, इसकी हमेशा समीक्षा की जा सकती है।
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