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पर्यावरण सम्मेलन में भारत और चीन को घेरने में लगे विकसित देश, नुकसान पहुंचाने वाले कृत्यों पर डाला पर्दा

मिस्त्र में हो रहे पर्यावरण सम्मेलन में वायुमंडल में हानिकारक गैसों का उत्सर्जन कम करने के तरीके को लेकर सदस्य देशों में सहमति नहीं बन सकी है।संयुक्त राष्ट्र की ओर से जो मसौदा आया था उसमें ज्यादातर वही बातें हैं जो 2021 में ग्लास्गो के सम्मेलन में कही गई थीं।

By AgencyEdited By: Sonu GuptaUpdated: Fri, 18 Nov 2022 08:29 PM (IST)
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पर्यावरण सम्मेलन में भारत और चीन को घेरने में लगे विकसित देश। फाइल फोटो।
नई दिल्ली, पीटीआइ। मिस्त्र में हो रहे पर्यावरण सम्मेलन में वायुमंडल में हानिकारक गैसों का उत्सर्जन कम करने के तरीके को लेकर सदस्य देशों में सहमति नहीं बन सकी है। शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र की ओर से जो मसौदा आया था उसमें ज्यादातर वही बातें हैं जो 2021 में ग्लास्गो के सम्मेलन में कही गई थीं। तेल, गैस और कोयले का उपयोग चरणबद्ध तरीके से बंद करने के भारत के प्रस्ताव की अनदेखी कर दी गई है। विकासशील और गरीब देशों की पर्यावरण सुधार के लिए धन और तकनीक की मांग को भी विकसित देशों ने अनसुना कर दिया है।

पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले कृत्यों पर डाला पर्दा

करीब दो हफ्ते चले सम्मेलन में विकसित देशों ने हानिकारक गैसों का सर्वाधिक उत्सर्जन करने वाले 20 देशों की सूची बनाकर उनके लिए ईंधन उपयोग के नए नियम बनाने की चाल चली। इस सूची में भारत और चीन भी शामिल हैं। ऐसा करके विकसित देशों ने बीते दशकों में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले अपने कृत्यों पर पर्दा डाल दिया और भारत व चीन को जिम्मेदार बनाने की कोशिश की। लेकिन भारत और चीन के कड़े विरोध के कारण विकसित देशों की यह कोशिश परवान नहीं चढ़ सकी।

धन की मांग पर नहीं हुई कोई चर्चा

मालूम हो कि संयुक्त राष्ट्र का मसौदा वायुमंडल का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस रखने के लिए हानिकारक गैसों के उत्सर्जन में कमी के लिए प्रभावी प्रयासों की जरूरत बताता है। गैसों का उत्सर्जन कम न होने पर दुष्परिणामों की चेतावनी देता है। विकासशील और गरीब देशों की पर्यावरण सुधार के लिए धन की मांग पर इस सम्मेलन में विकसित देशों ने कोई चर्चा भी नहीं की, जबकि यह मुद्दा सम्मेलन की कार्यसूची में शामिल था।

मसौदे को कई विकासशील देश कर रहे हैं समर्थन

विकसित देशों ने 2009 में सिद्धांत रूप में आर्थिक और तकनीक सहायता देने का प्रस्ताव स्वीकार किया था, 2020 से यह दी भी जानी थी। 2015 में हुए पेरिस समझौते में भी प्रतिवर्ष 100 अरब डालर की यह सहायता देने का उल्लेख है। लेकिन विकसित देशों ने उसे देना शुरू नहीं किया। अब वे उस सहायता पर चर्चा भी नहीं करना चाहते। तेल और गैस का उपयोग चरणबद्ध तरीके बंद करने के प्रस्ताव पर भी विकसित देश चुप हैं। विशेषज्ञ इसे हैरान करने वाला रुख बता रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के ताजा मसौदे का अमेरिका, यूरोपीय संघ और कई विकासशील देश समर्थन कर रहे हैं।

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