ढोला सदिया की बदौलत तेज गति से सीमा तक पहुंच सकेगी भारतीय सेना
आजादी के सत्तर साल बाद भी कश्मीर घाटी और पूवरेत्तर भारत के इलाकों में पर्याप्त सड़क और रेल नेटवर्क न होना राजनीति की अनदेखी की मिसाल है।
उमेश चतुर्वेदी
आजादी के सत्तर साल बाद भी कश्मीर घाटी और पूवोत्तर भारत के इलाकों में पर्याप्त सड़क और रेल नेटवर्क न होना राजनीति की अनदेखी की मिसाल है। असम और अरुणाचल प्रदेश को जोड़ने वाले ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी लोहित नदी पर बना 9.15 किलोमीटर लंबा पुल विकास की अगली कड़ी है। पूर्वोत्तर रत में आर्थिक प्रगति और सामरिक रणनीति के लिहाज से नई राह खोलने वाला यह पुल देश का सबसे लंबा सेतु बन गया है। इससे पहले पटना और हाजीपुर को जोड़ने वाले गंगा नदी पर बने 5.75 किलोमीटर लंबे पुल को ही देश का सबसे बड़ा सेतु होने का तमगा हासिल था।
सुदूर उत्तर पूर्व स्थित अरुणाचल प्रदेश के लोग तकनीकी क्रांति के दौर में भी तमाम दुश्वारियों के बाद ही देश के दूसरे हिस्सों से जुड़ पाते हैं। तकरीबन यही हाल पूरे पूर्वोत्तर का है। सड़कों और रेलवे का पर्याप्त नेटवर्क न होने की वजह से हमारी सेनाओं को भी इस इलाके की सीमाओं की रखवाली करने के लिए तमाम तरह के पापड़ बेलने पड़ते रहे हैं। लेकिन लोहित नदी पर पुल बनने के बाद अब सेनाएं चीन सीमा से लगे अरुणाचल प्रदेश के इलाकों में शीघ्रता से कार्रवाई कर सकती हैं।
इस पुल की तुलना केरल को गोवा-मंगलूर होते हुए मुंबई से जोड़ने वाले कोंकण रेल मार्ग से की जा सकती है जिसने पश्चिमी घाट की पहाड़ियों के बीच से गुजरते हुए त्रिवेंद्रम और मुंबई की दूरी को दो दिनों तक कम कर दिया है। लोहित नदी पर बने इस पुल के चलते पूर्वोत्तरवासियों और सेना को भी पेट्रोल-डीजल की काफी बचत होगी। एक अनुमान के मुताबिक इस पुल से रोजाना करीब दस लाख रुपये के डीजल और पेट्रोल की बजत होगी। जिसका सीधा असर इस इलाके में बाहर से आने वाले सामानों की कीमतों पर पड़ेगा। इससे इलाके में चीजें सस्ती होंगी।
यहां यह भी ध्यान रखने लायक है कि अरुणाचल प्रदेश में एक भी नागरिक हवाई अड्डा नहीं है। इस वजह से खूबसूरत घाटियों और हरियाली से घिरे अरुणाचल प्रदेश में सैलानियों का आवागमन कम ही रहता है। अब से पहले तक अरुणाचल आने वाले लोगों को असम के तेजपुर से ब्रह्मपुत्र नदी पर बने कलियाभोमोरा पुल से जाना पड़ता था, जिसमें दस से 24 घंटे तक ज्यादा वक्त लगता था। अब यह घट जाएगा। अब लोग रेल से तिनसुकिया या फिर डिब्रूगढ़ विमान से आकर भूपेन हजारिका सेतु से अरुणाचल पहले की तुलना में करीब चार से पांच घंटे कम वक्त में आ सकेंगे।
इस पूल के बनने के बाद अरुणाचल प्रदेश का अब पूरे साल सड़क मार्ग के जरिए संपर्क बना रहेगा। इसके पहले तक बरसात के दिनों में अरुणाचल का देश के दूसरे इलाकों से संपर्क कटा रहता था, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। साथ ही इलाके में औद्योगिक निवेश भी बढ़ेगा। अभी तक सड़क मार्ग बेहतर ना होने की वजह से इस इलाके में औद्योगिक निवेश ज्यादा नहीं हो पा रहा था। लोहित नदी पर बने इस पुल का नाम प्रधानमंत्री ने उद्घाटन करते वक्त ही असम के मशहूर गायक भूपेन हजारिका के नाम पर रख दिया।
यह संयोग ही है कि उन्होंने गंगा तुम बहती हो क्यों जैसा कालजयी गीत गाया है, और उनके नाम पर देश के सबसे लंबे पुल का नाम रख दिया गया। यहां यह बता देना भी जरूरी है कि हजारिका के इस गीत को बांग्ला, हिंदी और अंग्रेजी में दुनिया की जानी-मानी गायिका शकीरा ने भी अपना सुर दिया है। वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़े भूपेन हजारिका संस्कृतिकर्मी नहीं थे, बल्कि वे प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से असम में विधायक भी रहे। संस्कृति के इस नायाब हीरे का नाम वाला यह पुल तिनसुकिया स्थित अपने बेस से सेना महज एक घंटे में ही अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर पहुंच सकेगी।
आजादी के महज दो साल बाद साम्यवादी क्रांति के जरिए नई इबारत लिखने वाले चीन की निगाह अब तक अरुणाचल प्रदेश पर है। चीन ने रणनीति के तहत अरुणाचल सीमा तक साफ और बारहमासी सड़कें पहुंचा दी हैं। इस मोर्चे पर भारत को बराबरी करने में काफी देर लगी। अगर ऐसा नहीं होता तो अरुणाचल को जोड़ने वाले इस पुल को बनाने की शुरुआत 2011 में सड़क परिवहन मंत्रलय को पीपीपी यानी सार्वजनिक निजी भागीदारी मॉडल पर नहीं करनी पड़ती। जिस पर तब के अनुमानित 950 करोड़ की बजाय 2056 करोड़ की लागत आई है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)