Supreme Court: महिला को गर्भपात की इजाजत देने पर न्यायाधीशों में मतभिन्नता, अब चीफ जस्टिस के पास पहुंचा मामला
एक 27 वर्षीय विवाहिता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर 26 सप्ताह के गर्भ को नष्ट कराने की इजाजत मांगी है। महिला का कहना है कि उसके पहले से दो बच्चे हैं। कोर्ट ने महिला को बताया कि डॉक्टर की राय में बच्चा ठीक है और वह जीवित भी पैदा हो सकता है। साथ ही अभी गर्भपात कराने से बच्चे को नुकसान होने की बात भी समझाई ।
By Jagran NewsEdited By: Shashank MishraUpdated: Wed, 11 Oct 2023 10:37 PM (IST)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। विवाहित महिला को 26 सप्ताह के गर्भ को नष्ट कराने की इजाजत दिये जाने के मामले में बुधवार को दो न्यायाधीशों ने खंडित फैसला सुनाया है। न्यायाधीश हिमा कोहली ने फैसले में कहा कि वह महिला को गर्भपात की इजाजत नहीं दे सकतीं जबकि न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना ने महिला को गर्भपात की इजाजत देने के गत नौ अक्टूबर के आदेश को बरकरार रखा। दोनों न्यायाधीशों के मतभिन्नता के फैसले को देखते हुए अब यह मामला प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के समक्ष पेश किया जाएगा ताकि वह मामले पर सुनवाई के लिए नयी उचित पीठ का गठन करें।
महिला ने 26 सप्ताह के गर्भ को नष्ट कराने की मांगी इजाजत
एक 27 वर्षीय विवाहिता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर 26 सप्ताह के गर्भ को नष्ट कराने की इजाजत मांगी है। महिला का कहना है कि उसके पहले से दो बच्चे हैं और वह अवसाद से पीड़ित है इसलिए तीसरे बच्चे की परवरिश करने की स्थिति में नहीं है। कोर्ट ने महिला की मांग स्वीकार करते हुए नौ अक्टूबर सोमवार को गर्भपात कराने की इजाजत दे दी थी। लेकिन इसके बाद केंद्र सरकार ने 10 अक्टूबर को अर्जी दाखिल कर कोर्ट से नौ अक्टूबर का आदेश वापस लेने का आग्रह किया।
केंद्र ने अर्जी में महिला की जांच करने वाले मेडिकल बोर्ड के एक डॉक्टर की ओर से भेजे गए ईमेल को आधार बनाया है जिसमें कहा गया है कि गर्भ में पल रहा बच्चा ठीक है और उसके जीवित पैदा होने की उम्मीद है। अगर इस समय गर्भपात किया गया तो बच्चे को नुकसान हो सकता है। केंद्र ने मंगलवार को प्रधान न्यायाधीश की पीठ के समक्ष अर्जी का जिक्र करते हुए जल्दी सुनवाई मांगी थी। जिस पर चीफ जस्टिस की पीठ ने गर्भपात को टालने का आदेश देते हुए केंद्र की अर्जी को सुनवाई के लिए जस्टिस कोहली और जस्टिस नागरत्ना की पीठ को भेज दिया था।
कोर्ट ने महिला और उसके पति से की बात
बुधवार को केंद्र की अर्जी पर जस्टिस हिमा कोहली व जस्टिस बी. बी. नागरत्ना की पीठ ने सुनवाई की। सुनवाई के बाद दोनों न्यायाधीशों ने खंडित फैसला सुनाया और मामले को प्रधान न्यायाधीश के सामने पेश करने का आदेश दिया ताकि वे उचित सुनवाई पीठ का गठन कर सकें। इससे पहले मामले पर हुई लंबी सुनवाई में पीठ ने गर्भपात का आदेश दिये जाने के बाद डॉक्टर की गर्भ में पल रहे बच्चे के ठीक ठाक होने की रिपोर्ट दिये जाने पर नाराजगी जताई़।कोर्ट ने कहा कि उसने पहला आदेश भी डॉक्टरों की रिपोर्ट देखने के बाद दिया था। वह रिपोर्ट क्यों अस्पष्ट थी और दो ही दिन बाद दूसरी रिपोर्ट आ गई। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने वर्चुअली जुड़ी याचिकाकर्ता महिला और उसके पति से भी बात की।कोर्ट ने महिला को बताया कि डॉक्टर की राय में बच्चा ठीक है और वह जीवित भी पैदा हो सकता है। साथ ही अभी गर्भपात कराने से बच्चे को नुकसान होने की बात भी समझाई । महिला को यह भी बताया गया कि अगर वह कुछ दिन और रुक जाती है तो बच्चे को जन्म के बाद केंद्र सरकार या संस्था पालन पोषण या किसी को गोद देने आदि को देखेगी।
पीठ ने इन परिस्थितियों को देखते हुए याचिकाकर्ता महिला से उसकी राय पूछी लेकिन महिला ने कहा कि वह गर्भ नहीं रखना चाहती। उसके दो बच्चे हैं और उनकी देखभाल भी उसकी सास करती हैं क्योंकि उसकी तबीयत ठीक नहीं रहती ऐसे में वह तीसरे बच्चे की परवरिश करने में समर्थ नहीं है।महिला के मौखिक रूप से गर्भ न रखने की बात कहने पर कोर्ट ने कहा कि वह यह बात हलफनामा दाखिल कर कहे क्योंकि कोर्ट किसी तरह का भ्रम नहीं चाहता। बाद में कोई बात कोर्ट पर न आए।
ये भी पढ़ें: Electoral Bond Scheme को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर SC करेगा सुनवाई, 31 अक्टूबर की तारीख हुई तयभोजनावकाश के बाद केस जब दोबारा सुनवाई पर लगा तो महिला की ओर से हलफनामा दाखिल कर कहा गया कि वह गर्भ नहीं रखना चाहती। महिला कोर्ट में भी पेश हुई। केंद्र सरकार की ओर से पेश एएसजी ऐश्वर्या भाटी ने कोर्ट से कहा कि बच्चे की तरफ भी विचार करके फैसला दिया जाए।
जबकि याचिकाकर्ता महिला के वकील का कहना था कि महिला बच्चे की परवरिश करने की स्थिति में नहीं है इसलिए वह गर्भ नहीं रखना चाहती। लंबी सुनवाई के बाद दोनों न्यायाधीशों ने मतभिन्नता का फैसला सुनाया।ये भी पढ़ें: SC ने पूछा, कौन सी अदालत कहेगी भ्रूण की धड़कन को रोक दो?