कर्नाटक में डाक्टरों ने कर दिखाया चमत्कार, 23 सप्ताह में जन्मे जुड़वा बच्चों की बचाई जान
पूरी दुनिया में केवल 0.3 प्रतिशत शिशुओं का वजन जन्म के समय 600 ग्राम से कम होता है। प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल में दर्ज आंकड़ों के अनुसार 23 सप्ताह में जन्मे शिशु के जीवित रहने की दर दुनियाभर में लगभग 23.4 प्रतिशत है जबकि भारत में ऐसे बहुत कम मामले सामने आए हैं। दोनों बच्चों के माता-पिता लंबे समय से वे संतान सुख के लिए तरस रहे थे।
बेंगलुरु, एएनआइ। कर्नाटक में 23 सप्ताह के जुड़वा बच्चों का जन्म हुआ है। डाक्टरों ने चमत्कार करते हुए दोनों बच्चों को बचा लिया। देश में 23 सप्ताह की गर्भावधि उम्र में जन्मे जुड़वा बच्चों के जीवित रहने का यह पहला मामला है। दोनों बच्चों में से एक का वजन 550 ग्राम और दूसरे बच्चे का 540 ग्राम है। दोनों बच्चों को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है।
इलाज के बाद मिला संतान सुख
पूरी दुनिया में केवल 0.3 प्रतिशत शिशुओं का वजन जन्म के समय 600 ग्राम से कम होता है। प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल में दर्ज आंकड़ों के अनुसार, 23 सप्ताह में जन्मे शिशु के जीवित रहने की दर दुनियाभर में लगभग 23.4 प्रतिशत है, जबकि भारत में ऐसे बहुत कम मामले सामने आए हैं। दोनों बच्चों के माता-पिता लंबे समय से वे संतान सुख के लिए तरस रहे थे। इलाज के बाद उन्हें संतान सुख मिला है, लेकिन यह खुशी उनके लिए चमत्कार से कम नहीं है।
17 सप्ताह पहले हुआ प्रसव
बच्चों की मां का सर्विक्स छोटा था। इस कारण प्रसव 17 सप्ताह पहले करवाना पड़ा। बंगलुरु के व्हाइटफील्ड स्थित एस्टर महिला एवं बाल अस्पताल में डाक्टरों ने कमाल करते हुए बच्चों को बचा लिया। बच्चों को देखभाल के लिए लगभग तीन से चार महीने तक अस्पताल के एनआइसीयू में भर्ती कराया गया। डाक्टरों को इस दौरान कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा।शिशुओं के फेफड़े अविकसित थे, जिससे उन्हें रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (आरडीएस) का खतरा था। इससे बचाव के लिए लंबे समय तक वेंटिलेशन सहायता दी गई। संक्रमणों से बचाव के लिए भी सावधानियां बरती गईं।पहले नहीं आया ऐसा मामला
बच्चों का इलाज करने वाले डाक्टरों टीम का नेतृत्व डा. श्रीनिवास मूर्ति ने किया। उन्होंने कहा, भारत में ऐसा मामला पहले कभी नहीं देखा गया। अध्ययनों से पता चला है कि हर एक हजार प्रसवों में से 2.5 प्रसव गर्भावधि उम्र के 23वें सप्ताह के दौरान होते हैं। इनमें से 50 प्रतिशत से अधिक बच्चे जन्म के पहले 72 घंटों के भीतर मर जाते हैं, लेकिन हमने उम्मीद नहीं खोई और अत्याधुनिक वेंटिलेटर, इनक्यूबेटर और कार्डियक मानिटर के साथ शिशुओं का सफल उपचार किया।
अस्पताल ने रोटरी क्लब और क्राउडफंडिंग प्लेटफार्म के माध्यम से लगभग पांच लाख रुपए जुटाकर वित्तीय सहायता सुनिश्चित की। डाक्टरों ने भी अपनी क्षमता के अनुसार मदद की। शिशुओं के पिता ने कहा, हम अपने दोस्तों, परिवार और विशेष रूप से डाक्टरों के आभारी हैं, जिन्होंने वित्तीय मदद दी।