जानें- तालिबान के किस शीर्ष नेता से हुई है दोहा में भारत की बातचीत, क्या है इसका इंडियन कनेक्शन
तालिबान की राजनीतिक शाखा का प्रमुख शेर मोहम्मद स्तानिकजई की कहानी बड़ी ही दिलचस्प है। तालिबानी नेताओं की शीर्ष पंक्ति में शामिल इस नेता का भारत से भी नाता रहा है। अब इसकी और दोहा में भारतीय राजदूत के बीच वार्ता हुई है।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Wed, 01 Sep 2021 03:07 PM (IST)
नई दिल्ली (जेएनएन)। भारत और तालिबान के बीच दोहा में पहली बार बातचीत हुई है। ये बातचीत दोहा में भारतीय राजदूत दीपक मित्तल और तालिबान की राजनीतिक शाखा के प्रमुख शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई के बीच हुई है। स्तानिकजई तालिबान का एक बड़ा नेता है और वो इसके शीर्ष नेताओं की पंक्ति में भी शामिल है। तालिबान के इस नेता से बातचीत की एक वजह ये भी है कि इसका भारत से सीधा संबंध रहा है। इसलिए भी तालिबान ने भारत से बातचीत के लिए इसको ही आगे किया है। स्तानिकजई कई भाषाओं में पारंगत है।
स्तानिकजई को शेरू के नाम से भी पहचाना जाता है। तालिबान के शीर्ष कमांडरों में शामिल इस शख्स का भारत के देहरादून से करीबी नाता रहा है। दरअसल, इस शख्स ने देहरादून स्थित इंडियन मिलिट्री अकादमी से फौजी अधिकारी बनने की ट्रेनिंग ली है। आपको बता दें कि देहरादून स्थित आईएमए में भारत अपने चुनिंदा कैडेटों के अलावा अपने पड़ोसी देशों के भी कुछ कैडेट्य को ट्रेनिंग देता है। ये लगभग हर वर्ष होता है।
तालिबान के अफगानिस्तान में पांव जमाने से पहले 80 के दशक में भी यही होता था। 1971 में बांग्लादेश को लेकर हुए भारत-पाक युद्ध के बाद अफगानिस्तान के कैडेटों को भी इसमें शामिल किया गया था। उसी दौरान स्तानिकजई को भी भारत की इस प्रतिष्ठित सैन्य अकादमी में ट्रेनिंग पाने का अवसर हासिल हुआ था। स्तानिकजई ने 1982 में इस अकादमी के अंतिम पग को पार कर अपनी ट्रेनिंग पूरी की थी।
इसके बाद वो अफगान नेशनल आर्मी में बतौर लेफ्टिनेंट शामिल हुआ था। यहीं पर उसने अंग्रेजी सीखी थी। अफगान आर्मी में उसने करीब 14 वर्षों तक सेवा दी है। आपको बता दें कि अब तक एक हजार से अधिक अफगानी सैनिक यहां से सैन्य अधिकारी बनने का प्रशिक्षण ले चुके हैं। वर्तमान में भी कई अफगानी सैनिक इस प्रतिष्ठित अकादमी का हिस्सा हैं।
गौरतलब है कि हर वर्ष इस अकादमी से भारतीय सेना के कुछ नए और युवा अधिकारी निकलकर देश सेवा के लिए भारतीय सेना में शामिल होते हैं। स्तानिकजई ने इस प्रतिष्ठित सैन्य अकादमी में शामिल होने के लिए अपने यहां की एक अहम परीक्षा भी पास की थी। उनके बैचमेट उसको शेरू बुलाते थे। उसकी बटालयिन में उस वक्त 45 कैडेट शामिल थे। उस वक्त स्तानिकजई की बड़ी-बड़ी मूंछे हुआ करती थीं। उस वक्त उसकी उम्र भी करीब 20 वर्ष की थी। लंबे कद और चौड़े शरीर का स्तानिकजई उस वक्त तक तालिबानी सोच से काफी दूर था। उस वक्त कोई नहीं जानता था कि वो एक दिन इस तरह से सामने आएगा। उसके बैचमेट उसको काफी मिलनसार बताते थे। उसको पहाड़ों और जंगल में घूमना पसंद था।
वर्षों तक सेवा देने वाले स्तानिकजई ने 1996 में अफगान सेना का साथ छोड़ दिया और तालिबान में शामिल हो गया था। ये वो दौर था जब रूस अफगानिस्तान से जा चुका था और तालिबान ने अफगानिस्तान पर अपनी हुकूमत का झंडा फहरा दिया था। 1996-2001 के बीच अफगानिस्तान में तालिबान का शासन था जो बेहद क्रूर था। 9/11 के आतंकी हमले के बाद जब अमेरिका ने अफगानिस्तान में प्रवेश किया तो उसके हमलों की बदौलत तालिबान धीरे-धीरे पीछे खिसकता चला गया। एक समय ऐसा आया जब तालिबान बेहद छोटे से इलाके तक ही सीमित रह गया था। उसकी सरकार खत्म हो गई थी और देश में लोकतंत्र की बहाली हो चुकी थी।
तालिबान के सत्ता से बाहर होने के बाद स्तानिकजई ने दोहा को अपना घर बनाया। स्तानिकजई को को कट्टर धार्मिक नेता भी माना जाता है। जब तालिबान ने अपना चेहरा बदलने की कवायद शुरू की तो इसके प्रमुख के तौर पर स्तानिकजई का ही चुनाव किया गया। वर्ष 2015 में दोहा में तालिबान ने अपनी पहली बार राजनीतिक शाखा खोली। इसी शख्स ने अमेरिका के साथ हुई वार्ता में भी अहम भूमिका निभाई थी जो बाद में एक समझौते के रूप में सामने आया। स्तानिकजई जातीय रूप से पश्तून है। आपको बता दें कि स्तानिकजई राजनीतिक विज्ञान में मास्टर डिग्री हासिल किए हुए है। इसके अलावा उसने कई दूसरे मिलिट्री कोर्स भी किए हैं।
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