Jammu Kashmir and POK : पाक का दोहरा चरित्र, भारत के सामने क्या हैं विकल्प
पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर पर उठाई गई भारत की पहल को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाने की कोशिश में जुटा हुआ है। ऐसे में भारत के पास क्या विकल्प हैं। आइये करते हैं इसकी पड़ताल...
By Krishna Bihari SinghEdited By: Updated: Mon, 19 Aug 2019 09:43 AM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। भारत की सरसों के बीज के आकार की खामियों को बढ़ा चढ़ाकर बताने और खुद की बेल जितनी बड़ी बुराई को देखते हुए भी अनदेखा करना पड़ोसी देश पाकिस्तान की फितरत रही है। तभी तो जम्मू कश्मीर को दो हिस्सों में बांटने की भारत की पहल को वह अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाने की कोशिश में जुटा हुआ है। इस क्रम में उसे यह भी याद नहीं कि पिछले सत्तर साल में गुलाम कश्मीर (जम्मू-कश्मीर के उस हिस्से जिस पर उसने अवैध कब्जा किया हुआ है) को पुनर्गठित करने के लिए वह कितनी बार कदम उठा चुका है।
खाने के दांत और, दिखाने के और
गिलगित-बाल्टिस्तान एमपॉवरमेंट एंड सेल्फ गवर्नेंस ऑर्डर के तहत पाकिस्तान ने एक विधानसभा और एक गिलगित बाल्टिस्तान काउंसिल का गठन किया। हालांकि, इस ऑर्डर में यह पेंच फंसा दिया गया कि 63 मसलों पर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री कानून बना सकता है और गिलगित बाल्टिस्तान विधानसभा द्वारा पारित किसी भी कानून को खारिज कर सकता है। 2018 के ऑर्डर में संशोधन के लिए अंतिम ताकत पाकिस्तानी राष्ट्रपति में निहित होगी। खत्म किया रियासत का प्रावधान
जम्मू कश्मीर रियासत ने द स्टेट सब्जेक्ट रूल 1927 लागू किया था, जिसके तहत कोई भी बाहरी व्यक्ति रियासत में जमीन नहीं खरीद सकता था। पाकिस्तान ने गिलगित- बाल्टिस्तान के लिए यह नियम खत्म कर दिया है। अपने तथाकथित आजाद कश्मीर में भी उसने ऐसा की प्रावधान कर रखा है। इसके अतिरिक्त गुलाम कश्मीर में उसने चीनी निवेश को भी हरी झंडी दे रखी है।
गिलगित-बाल्टिस्तान एमपॉवरमेंट एंड सेल्फ गवर्नेंस ऑर्डर के तहत पाकिस्तान ने एक विधानसभा और एक गिलगित बाल्टिस्तान काउंसिल का गठन किया। हालांकि, इस ऑर्डर में यह पेंच फंसा दिया गया कि 63 मसलों पर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री कानून बना सकता है और गिलगित बाल्टिस्तान विधानसभा द्वारा पारित किसी भी कानून को खारिज कर सकता है। 2018 के ऑर्डर में संशोधन के लिए अंतिम ताकत पाकिस्तानी राष्ट्रपति में निहित होगी। खत्म किया रियासत का प्रावधान
जम्मू कश्मीर रियासत ने द स्टेट सब्जेक्ट रूल 1927 लागू किया था, जिसके तहत कोई भी बाहरी व्यक्ति रियासत में जमीन नहीं खरीद सकता था। पाकिस्तान ने गिलगित- बाल्टिस्तान के लिए यह नियम खत्म कर दिया है। अपने तथाकथित आजाद कश्मीर में भी उसने ऐसा की प्रावधान कर रखा है। इसके अतिरिक्त गुलाम कश्मीर में उसने चीनी निवेश को भी हरी झंडी दे रखी है।
कब कब क्या हुआ
सन 949 में नधिकृत रूप से जम्मू कश्मीर के हिस्से पर कब्जा करने के दो साल बाद ही पाकिस्तान ने उसे दो हिस्सों में बांट दिया। एक को तथाकथित आजाद कश्मीर कहा गया तो दूसरे को फेडरली एडमिनिस्टर्ड नार्दर्न एरियाज नाम दिया गया। 1969 में फेडरली एडमिनिस्टर्ड नार्दर्न एरियाज के लिए पाकिस्तान ने एक सलाहकार परिषद का गठन किया। 1994 में इस सलाहकार परिषद को नार्दर्न एरियाज काउंसिल में तब्दील कर दिया गया। यही नहीं, पांच साल बाद नार्दर्न एरियाज काउंसिल का नाम लीगल फ्रेमवर्क (संशोधन) आदेश के तहत बदलकर नार्दर्न एरियाज लेजिस्लेटिव काउंसिल कर दिया। 2009 में गिलगित-बाल्टिस्तान एमपॉवरमेंट एंड सेल्फ गवर्नेंस ऑर्डर द्वारा इसे प्रतिस्थापित किया गया। भारत के सामने विकल्प
सन 949 में नधिकृत रूप से जम्मू कश्मीर के हिस्से पर कब्जा करने के दो साल बाद ही पाकिस्तान ने उसे दो हिस्सों में बांट दिया। एक को तथाकथित आजाद कश्मीर कहा गया तो दूसरे को फेडरली एडमिनिस्टर्ड नार्दर्न एरियाज नाम दिया गया। 1969 में फेडरली एडमिनिस्टर्ड नार्दर्न एरियाज के लिए पाकिस्तान ने एक सलाहकार परिषद का गठन किया। 1994 में इस सलाहकार परिषद को नार्दर्न एरियाज काउंसिल में तब्दील कर दिया गया। यही नहीं, पांच साल बाद नार्दर्न एरियाज काउंसिल का नाम लीगल फ्रेमवर्क (संशोधन) आदेश के तहत बदलकर नार्दर्न एरियाज लेजिस्लेटिव काउंसिल कर दिया। 2009 में गिलगित-बाल्टिस्तान एमपॉवरमेंट एंड सेल्फ गवर्नेंस ऑर्डर द्वारा इसे प्रतिस्थापित किया गया। भारत के सामने विकल्प
1. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्थिति खुलकर रखे। 1947 के बाद पाकिस्तान द्वारा कब्जाए गए भू-भाग के लिए पाकिस्तान की निंदा करे।
2. विश्व का ध्यान पीओके में बढ़ते मानवाधिकार उल्लंघन की ओर ले जाए। गुलाम कश्मीर व गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में पाकिस्तान की नीतियों का खुलासा करे। पीओके में जरूरी लोकतंत्र की वकालत करे।
3. पाकिस्तान को साफतौर पर कड़ा संदेश दिया जाए कि वह गैरकानूनी ढंग से क्षेत्र पर कब्जा किए हुए है। यह भी ध्यान दे कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोगों का ध्यान भी भारत के कदम पर ही है।
4. भारत के खिलाफ अपनी कूटनीतिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए पीओके में अपनी कई परियोजनाओं पर काम कर रहे चीन को भी कड़ा संदेश जाना चाहिए। किसी विवादित भूभाग पर बिना भारत की मंजूरी से वह कैसे वहां अपनी परियोजनाएं शुरू कर सकता है।
5. पीओके भारत के लिए सामरिक मायने भी रखता है। यह मध्य एशिया का प्रवेश द्वार है और जल संसाधनों से परिपूर्ण है। लिहाजा मजबूत पक्ष रखना जरूरी है।6. पीओके के विद्यार्थियों को स्कॉलरशिप प्रदान करे। साथ ही वहां के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करे। जम्मू-कश्मीर विधानसभा की उन सीटों को भी प्रवासी प्रतिनिधियों से भरने की व्यवस्था सुनिश्चित करे जो पीओके के लोगों के लिए आरक्षित हैं।