El Nino and La Nina: अल-नीनो के कारण इस साल पड़ेगी रिकॉर्ड गर्मी, पढ़ें ला-नीना का मौसम पर कैसे होता है असर
El Nino and La Nina दुनिया में हीट-वेब बढ़ने की संभावना के बीच विश्व मौसम विज्ञान संगठन का कहना है कि आने वाले महीनों में अल-नीनो का भी सामना करना पड़ सकता है। जानिए अल-नीनो का असर भारत के मानसून पर कैसे पड़ता है। इस लेख के माध्यम से हम आपको आज बताएंगे की आखिर ये अल-नीनो है क्या यह ला-नीनो से कैसे अलग है।
By Babli KumariEdited By: Babli KumariUpdated: Sun, 18 Jun 2023 12:48 PM (IST)
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के कारण सभी मौसमी घटनाएं अपने चरम पर बढ़ रही हैं। इसके साथ सामान्य मौसम स्वरूपों में भी बदलाव देखने को मिल रहे हैं। अल-नीनो का असर दुनिया भर में महसूस किया जा रहा है। जिसके कारण बारिश हो या ठंड सभी मौसम में अंतर दिखाई देता है।
अब मौसम के बदल जाने के कारण कई स्थानों पर सूखा पड़ता है तो कई जगहों पर बाढ़ आती है। भारत में भी इन बदलते मौसम का असर देखा जा रहा है। देश में आज से कई साल पहले जिस तरह की बारिश देखी जाती थी और जिस तरह बदलते मौसम के साथ तापमान में विविधताएं देखते थे अब वैसा नहीं है। भारत के मानूसन और मौसम से जुड़ी सभी गतिविधियों पर पिछले कुछ दशकों से 'अल-नीनो' और 'ला-नीना' (El Nino and La Nina) का असर बढ़ता दिख रहा है।
जब भी मानसून दस्तक देता है दो शब्द अक्सर चर्चा में आ जाते हैं- ला-नीनो और अल-नीनो। स्पेनिश भाषा के ये शब्द इस बार भी जोर-शोर से सुनाई दे रहे हैं। 8 जून को केरल में मानसून की पहली बारिश हुई और उसी दिन अमेरिकी एजेंसी NOAA यानी नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन ने बताया कि प्रशांत महासागर में अल-नीनो का असर दिख रहा है। भारत के मौसम में इसे बुरी खबर मानकर चर्चा शुरू हो गई है।
इस लेख के माध्यम से हम आपको आज बताएंगे की आखिर ये अल-नीनो है क्या, यह ला-नीनो से कैसे अलग है और भारत के लिए यह कितनी खतरनाक है? आइए जानते हैं इन दोनों कारकों का भारत के मानसून पर क्या होता है असर...अल-नीनो एवं ला-नीना (El Nino and La Nina) एक तरह का मौसम पैटर्न है। ये ऐसे मौसम के पैटर्न हैं जो बहुत ही जटिल माने गए हैं। ये दोनों पैटर्न तब उत्पन्न होते हैं जब प्रशांत महासागर के क्षेत्र में समुद्र के तापमान में भिन्नता आती है उन घटित vibhhintaon के कारण घटित होते हैं। ये अल नीनो-दक्षिणी दोलन (El Nino-Southern Oscillation- ENSO) चक्र की विपरीत अवस्थाएं होती हैं। ENSO चक्र पूर्व-मध्य विषुवतीय प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में महासागर एवं वायुमंडल के मध्य तापमान में उतार-चढ़ाव को दर्शाता है। अल-नीनो और ला-नीना की घटनाएं आमतौर पर 9 से 12 महीने तक चलती हैं, लेकिन कुछ लंबे समय तक चलने वाली घटनाएं वर्षों तक बनी रह सकती हैं।
क्या होता है अल-नीनो (What is El-Nino)
अल-नीनो इफेक्ट मौसम संबंधी एक विशेष घटना की एक स्थिति है, जो मध्य और पूर्वी प्रशांत सागर में समुद्र का तापमान सामान्य से अधिक होने पर बनती है। आसान भाषा में समझे तो इस इफ़ेक्ट की वजह से तापमान काफी गर्म हो जाता है। इसकी वजह से पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में रहने वाला गर्म सतह वाला पानी भूमध्य रेखा के साथ पूर्व की ओर बढ़ने लगता है, जिससे भारत के मौसम पर असर पड़ता है। ऐसी स्थिति में भयानक गर्मी का सामना करना पड़ता है और सूखे के हालात बनने लगते हैं।
- स्पेनिश में एल नीनो को 'छोटा लड़का' या 'क्राइस्ट चाइल्ड' कहा गया है।
- इस घटना का यह नाम इसलिए रखा गया क्योंकि इसे पहली बार दक्षिण अमेरिकी मछुआरों ने 17 वीं शताब्दी के शुरुआती भाग में पहचाना था।
- एल नीनो मध्य और पूर्व-मध्य भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में होता है।
- यह हर 2 से 5 साल में घटित होता है।
- अल-नीनो विश्व की जलवायु और भारतीय मानसून पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
- अल-नीनो की जब उत्पन्न होता है तब समुद्र की सतह के तापमान में वृद्धि होती है और इस क्षेत्र की हवाएं कमजोर होती हैं।
अल-नीनो का प्रभाव (Effect of El Nino)
- अल नीनो की अवधारणा को समझने के लिये प्रशांत महासागर में अल नीनो रहित अवस्था से परिचित होना आवश्यक है।
- महासागर पर प्रभाव: अल नीनो समुद्र के तापमान, समुद्र की धाराओं की गति एवं शक्ति को भी प्रभावित करता है।
- वर्षा में वृद्धि: गर्म जल के सतह पर बहाव के कारण वर्षा में वृद्धि होती है।
- बाढ़ एवं सूखे के कारण होने वाले रोग: बाढ़ अथवा सूखा जैसे प्राकृतिक खतरों से प्रभावित समुदायों में बीमारियां पनपती हैं। अल नीनो की वजह से बाढ़ के कारण विश्व के कुछ हिस्सों में हैजा, डेंगू एवं मलेरिया के मामलों में वृद्धि होती है, वहीं सूखे के कारण जंगलों में आग की घटनानों में वृद्धि हो सकती है जो कि श्वसन संबंधी समस्याओं से संबंधित है।
- सकारात्मक प्रभाव: कभी-कभी इसके सकारात्मक प्रभाव भी हो सकते हैं, उदाहरण के लिये अल नीनो के कारण अटलांटिक महासागर में तूफान की घटनाओं में कमी आती है।
पूर्व में हुई अल-नीनो घटनाएं:
- साल 1982 और 1983 एवं साल 1997 और 1998 की अल नीनो घटनाएं 20वीं शताब्दी की सबसे बड़ी अल नीनो घटनाएं थीं।
- साल 1982 और 1983 की अल नीनो घटना के दौरान पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत में समुद्र सतह का तापमान सामान्य से 9-18 डिग्री सेल्सियस से अधिक था।
- साल 1997और 1998 की अल नीनो घटना ने जहां इंडोनेशिया, मलेशिया एवं फिलीपींस में सूखे की स्थिति उत्पन्न कर दी तो वहीं पेरू एवं कैलिफोर्निया में भारी बारिश एवं गंभीर बाढ़ की घटनाएं देखी गईं।
क्या होता है ला-नीना (What is La Nina)
अल-नीनो से ला-नीना का प्रभाव विपरित होता है। ला- नीना को स्पेनिश भाषा में 'छोटी लड़की' कहा जाता है। इसमें अमेरिकी महाद्वीपों के पश्चिमी तटों के पास के प्रशांत महासागर का पानी असामान्य रूप से ठंडा हो जाता है जिससे व्यापारिक पवनें बहुत मजबूत हो जाती हैं। इससे प्रशांत महासागर का गर्म पानी एशिया की ओर खिसकने लगता है।- ला नीना का अर्थ स्पेनिश में लिटिल गर्ल है।
- ला नीना उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में सामान्य से अधिक ठंडे पानी के निर्माण के कारण होता है
- ला नीना का अल नीनो के विपरीत प्रभाव पड़ता है।
- ला नीना की घटनाओं के दौरान हवाएं सामान्य से भी अधिक तेज होती हैं।
- यह अधिक समुद्री जीवन का समर्थन करता है और अधिक ठंडे पानी की प्रजातियों को आकर्षित करता है, जैसे स्क्विड और सैल्मन।
- ला नीना भी अधिक गंभीर तूफान का मौसम पैदा कर सकता है।
ला-नीना की कैसी होती हैं स्थितियां
- ला नीना की विशेषता पश्चिमी प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में सामान्य से कम वायुदाब का होना है। ये निम्न दाब के क्षेत्र वर्षा वृद्धि में योगदान देते हैं।
- ला नीना की घटनाएं दक्षिण-पूर्वी अफ्रीका एवं उत्तरी ब्राज़ील में सामान्य से अधिक वर्षा की स्थितियों से भी संबंधित हैं।
- हालांकि प्रबल ला नीना की घटनाएं उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में विनाशकारी बाढ़ का कारण बनती हैं।
- मध्य एवं पूर्वी प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में सामान्य से उच्च वायुदाब भी ला नीना की विशेषता है।
- इसके कारण इस क्षेत्र में बादल कम बनते हैं एवं वर्षा कम होती है।