नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। प्रदूषण की वजह से दुनिया भर में लोगों की औसत आयु में दो साल की कमी हो रही है। भारत में पीएम 2.5 का वार्षिक औसत 1998 से 61.4 प्रतिशत बढ़ गया है, और अभी यह विश्व का दूसरा सर्वाधिक प्रदूषित देश है। शिकागो यूनिवर्सिटी के एक्यूएलआइ के नए विश्लेषण के अनुसार, विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों का पालन होने पर भारतीयों की औसत संभाव्यता जितनी होती, उसमें वायु प्रदूषण के कारण 5 वर्षों की कमी आ रही है।

दुनिया भर में संयुक्त रुप से लोगों के 17 अरब वर्ष घट रहे

पीएम 2.5 के कारण औसत वैश्विक जीवन संभाव्यता 2.2 वर्ष घट रही है। इसका अर्थ है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देश (5 µg/m3) का पालन करने पर, पूरी दुनिया के सभी लोगों की संयुक्त रूप से जितनी ज़िंदगी होती उसमें 17 अरब जीवन-वर्ष घट रहे हैं। जीवन संभाव्यता पर पड़ने वाला यह प्रभाव धूम्रपान के तुलनीय, अल्कोहल और असुरक्षित जल के उपयोग का 3 गुना से अधिक, एचआइवी/ एड्स का 6-गुना, और विवाद तथा आंतकवाद का 89 गुना है।

दक्षिण एशिया में सबसे घातक प्रदूषण

एक्यूएलआई का नया विश्लेषण दर्शाता है कि प्रदूषण का घातक प्रभाव जितना दक्षिण एशिया में दिखता है उतना दुनिया के किसी दूसरे क्षेत्र में नहीं दिखता। वर्ष 2013 से दुनिया में जितना प्रदूषण बढ़ा है उसका लगभग 44 प्रतिशत योगदान अकेले भारत से है। भारत आज विश्व का दूसरा सर्वाधिक प्रदूषित देश है।

कोविड-19 महामारी के पहले साल में दुनिया की अर्थव्यवस्था में सुस्ती आई। लेकिन इसके बावजूद, पूरी दुनिया में औसत पीएम 2.5 मोटे तौर पर 2019 के स्तर पर ही बना रहा। साथ ही, ऐसे प्रमाणों की संख्या बढ़ती गई है जो दर्शाते हैं कि बहुत निम्न स्तर का प्रदूषण भी मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है। इसके कारण हाल में विश्व स्वास्थ्य संगठन को अपने दिशानिर्देश में संशोधन करना पड़ा और पीएम 2.5 के सुरक्षित समझे जाने वाले स्तर को 10 µg/m3 से घटाकर 5 µg/m3 करना पड़ा। इस कारण दुनिया की आबादी का 97.3 प्रतिशत हिस्सा असुरक्षित क्षेत्र के तहत आ गया।

शिकागो विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के मिल्टन फ्रीडमैन प्रोफ़ेसर और विश्वविद्यालय के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट (एपिक) के माईकल ग्रीनस्टोन कहते है कि अगर मंगल ग्रह के निवासी आकर धरती पर कोई ऐसी चीज़ छिड़क दें जिससे जीवन संभाव्यता में दो वर्षों से भी अधिक की कमी आ जाए, तो यह दुनिया भर के लिए आपात स्थिति होगी। दुनिया के बहुत सारे हिस्सों में ऐसी ही स्थिति है। दुनिया के कई भागों में, जैसे कि संयुक्त राज्य अमेरिका में सशक्त नीतियों के कारण वायु प्रदूषण घटाने में सफलता मिली है।

भारतीयों की जीवनदर में प्रदूषण की वजह से पांच साल की कमी

एक्यूएलआइ के नए विश्लेषण के अनुसार, विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों का पालन होने पर भारतीयों की औसत संभाव्यता जितनी होती, उसमें वायु प्रदूषण के कारण 5 वर्षों की कमी आ रही है। प्रदूषण का वर्तमान स्तर बरक़रार रहने पर उत्तर भारत के गंगा के मैदानी भागों के 51 करोड़ निवासियों की औसत जीवन संभाव्यता 7.6 वर्ष घट रही है। यह आबादी भारत की कुल आबादी का लगभग 40 प्रतिशत है।

दक्षिण एशिया के लोगों की जीवन प्रत्याशा पर असर

प्रदूषण का घातक प्रभाव जितना दक्षिण एशिया में दिखता है उतना दुनिया के किसी दूसरे क्षेत्र में नहीं दिखता। दुनिया में प्रदूषण से जीवन पर कुल जितना बोझ पड़ता है उसमें से आधे से अधिक इसी क्षेत्र में पड़ता है। अगर प्रदूषण का वर्तमान उच्च स्तर बना रहता है, तो इस क्षेत्र के निवासियों की ज़िंदगी औसतन 5 वर्ष के आसपास, और अधिक प्रदूषित क्षेत्रों में तो उससे भी अधिक घट जाने की आशंका है। वर्ष 2013 से पूरी दुनिया में जितना प्रदूषण बढ़ा है उसका लगभग 44 प्रतिशत योगदान अकेले भारत से है।

एक्यूएलआइ की निदेशक क्रिस्टा हेसेनकॉफ कहती हैं कि हमने एक्यूएलआइ को अत्याधुनिक विज्ञान पर आधारित विश्व स्वास्थ्य संगठन के नए दिशानिर्देश के अनुसार अपडेट किया है। सरकारों को प्रदूषण को अति आवश्यक नीतिगत मुद्दे के रूप में प्राथमिकता देनी होगी।

पर्टिकुलेट मैटर

पर्टिकुलेट मैटर या कण प्रदूषण वातावरण में मौजूद ठोस कणों और तरल बूंदों का मिश्रण है। हवा में मौजूद कण इतने छोटे होते हैं कि आप नग्न आंखों से भी नहीं देख सकते हैं। कुछ कण इतने छोटे होते हैं कि इन्हें केवल इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का उपयोग करके पता लगाया जा सकता है। कण प्रदूषण में पीएम 2.5 और पीएम 10 शामिल हैं जो बहुत खतरनाक होते हैं। पर्टिकुलेट मैटर विभिन्न आकारों के होते हैं और यह मानव और प्राकृतिक दोनों स्रोतों के कारण से हो सकता है. स्रोत प्राइमरी और सेकेंडरी हो सकते हैं। प्राइमरी स्रोत में ऑटोमोबाइल उत्सर्जन, धूल और खाना पकाने का धुआं शामिल हैं। प्रदूषण का सेकेंडरी स्रोत सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे रसायनों की जटिल प्रतिक्रिया हो सकता है। ये कण हवा में मिश्रित हो जाते हैं और इसको प्रदूषित करते हैं। इनके अलावा, जंगल की आग, लकड़ी के जलने वाले स्टोव, उद्योग का धुआं, निर्माण कार्यों से उत्पन्न धूल वायु प्रदूषण आदि और स्रोत हैं। ये कण आपके फेफड़ों में चले जाते हैं जिससे खांसी और अस्थमा के दौरे पढ़ सकते हैं। उच्च रक्तचाप, दिल का दौरा, स्ट्रोक और भी कई गंभीर बीमारियों का खतरा बन जाता है।