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राशन कार्ड की आस में भूख से सावित्री ने तोड़ा दम, 2012 में ही रद हो गया था पुराना कार्ड

पूरे देश में खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू है। इसके बावजूद सावित्री देवी को तंत्र एक अदद राशन कार्ड तक मुहैया नहीं करा सका।

By Nancy BajpaiEdited By: Updated: Mon, 04 Jun 2018 10:16 AM (IST)
राशन कार्ड की आस में भूख से सावित्री ने तोड़ा दम, 2012 में ही रद हो गया था पुराना कार्ड
गिरिडीह (दिलीप सिन्हा)। पूरे देश में खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू है। इसके तहत हर जरूरतमंद परिवार को अनाज की उपलब्धता सुनिश्चित कराना सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी है। राशन कार्ड के माध्यम से ऐसे परिवारों को जनवितरण प्रणाली की दुकानों से अनाज दिया जाता है। हर गरीब परिवार को समय पर राशन उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी सरकार ने आपूर्ति विभाग को दे रखी है। इनके बावजूद मंगरगड्डी गांव की सावित्री देवी को तंत्र एक अदद राशन कार्ड तक मुहैया नहीं करा सका। घोर गरीबी में जकड़ी सावित्री राशन कार्ड के अभाव में सरकार से मिलने वाले अनाज से भी वंचित रही। परिणामस्वरूप कई दिनों तक उसे भोजन नसीब नहीं हुआ और अंतत: तड़प-तड़प कर उसने दम तोड़ दिया।

विधवा पेंशन भी उसे नसीब नहीं हुआ। छह वर्ष पूर्व ही पेंशन की स्वीकृति हो गई थी, लेकिन अब तक भुगतान शुरू नहीं हो पाया था। बताया जाता है कि सावित्री के नाम पर पूर्व में राशन कार्ड निर्गत था। उससे वह राशन का उठाव भी करती थी। 2012 में उसके राशन कार्ड को रद कर विभाग ने नया राशन कार्ड बनवाने की बात कही थी। इसके बाद उसे नया राशन कार्ड नसीब नहीं हुआ।

चार माह पूर्व जमा किया था ऑनलाइन आवेदन :

पंचायत के मुखिया राम प्रसाद महतो ने बताया कि सावित्री का राशन कार्ड बनाने के लिए चार माह पूर्व ही ऑनलाइन आवेदन किया गया था। इसे सत्यापित कर आगे नहीं बढ़ाया गया। इस कारण उसका राशन कार्ड नहीं बन पाया। अगर उसे राशन कार्ड मिला होता तो भूख से उसकी मौत नहीं होती।

एमओ ने पंचायत सचिव के सिर फोड़ा ठीकरा

मार्केटिंग ऑफिसर (एमओ) शीतल प्रसाद काशी ने उक्त महिला को राशन कार्ड नहीं मिलने के लिए पंचायत सचिव को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि पंचायत सचिव ने आवेदन को सत्यापित कर उन्हें नहीं दिया है। पंचायत सचिव की लापरवाही के कारण ही उक्त महिला का राशन कार्ड नहीं बन पाया। हालांकि विभाग के एक उच्चाधिकारी के अनुसार राशन कार्ड के लिए जब से ऑनलाइन आवेदन होने लगा है, तब से इसमें पंचायत सेवक की भूमिका खत्म हो गई है। ऐसे में एमओ द्वारा पंचायत सचिव को जिम्मेदार ठहराना समझ से परे है।