SC में हिजाब विवाद पर सुनवाई, सालिसिटर जनरल ने कहा- विवाद के पीछे थी गहरी साजिश
कर्नाटक सरकार की ओर से सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उस आदेश को प्रस्तुत किया जिसमें सिफारिश की गई थी कि सभी छात्र शिक्षण संस्थान द्वारा निर्धारित पोशाक पहनेंगे। सालीसीटर जनरल ने कहा कि इस्लामिक देशों में भी हिजाब को लेकर विरोध प्रदर्शन चल रहा है।
By Arun Kumar SinghEdited By: Updated: Tue, 20 Sep 2022 10:36 PM (IST)
जागरण ब्यूरो/एजेंसियां, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में मंगलवार को सालिसिटर जनरल तुषार मेहता (Solicitor General Tushar Mehta) ने कहा कि कनार्टक के स्कूलों में हिजाब पहनने का मामला (Hijab Row) अचानक नहीं उठा। इसके पीछे गहरी साजिश थी। पिछले साल तक सभी छात्राएं स्कूल यूनिफार्म का पालन कर रही थीं। 2022 में पापुलर फ्रंट आफ इंडिया (पीएफआइ) ने इंटरनेट मीडिया पर अभियान चलाकर छात्राओं को हिजाब पहनने का संदेश देना शुरू किया।
कहा- हिजाब इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं, इस्लामिक देशों में भी हो रहा इसका विरोध
मेहता ने कहा कि हिजाब इस्लाम धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है। ईरान का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि मुस्लिम देशों में भी महिलाएं इसके खिलाफ लड़ रही हैं। कर्नाटक के स्कूलों में हिजाब पहनने पर रोक के मामले में बुधवार को भी सुनवाई जारी रहेगी। न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ के समक्ष कर्नाटक सरकार (Karnataka government) की ओर से पेश सालिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि सरकारी आदेश स्कूलों में यूनिफार्म लागू करने के लिए है। यूनिफार्म का उद्देश्य होता है कि सब समान दिखें और कोई हीन न समझे। आदेश किसी धर्म के खिलाफ नहीं है, बल्कि धर्म निरपेक्ष है। न तो भगवा शाल की इजाजत है और न ही हिजाब की। स्कूलों में सुचारु शैक्षणिक माहौल के लिए आदेश जारी किया गया। ड्रेस में कुछ भी ज्यादा या कम नहीं हो सकता।
राज्य सरकार का आदेश किसी धर्म के खिलाफ नहीं है
मेहता ने कहा कि छात्रों को ड्रेस अनुशासन का पालन करना चाहिए। इससे सिर्फ तभी छूट दी जा सकती है जबकि वो धर्म का अभिन्न हिस्सा हो। याचिकाकर्ताओं ने इसे धर्म का अभिन्न हिस्सा साबित करने के पक्ष में कोई साक्ष्य पेश नहीं किए हैं। इसके लिए कुछ मानक हैं जैसे कि उस प्रथा का चलन अनादिकाल यानी धर्म की शुरुआत से ही होना चाहिए। सभी उसका पालन करते हों।मेहता ने कहा कि हिजाब धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है। मुस्लिम देशों में भी महिलाएं इसके खिलाफ लड़ रही हैं। मेहता ने कहा कि पवित्र कुरान में बहुत सी चीजें कही गईं हैं। हिजाब को आदर्श धार्मिक प्रथा तो माना जा सकता है लेकिन अनिवार्य नहीं, जैसे कि सिखों में कड़ा और पगड़ी धर्म का अभिन्न हिस्सा है। मेहता ने कहा कि यह मदरसा या वेदशाला नहीं है जहां उनके धर्म के मुताबिक ड्रेस लागू हो।
बुधवार को फिर होगी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की बेंच बुधवार को भी याचिकाओं पर सुनवाई करेगी, जिसने शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध को बरकरार रखा था। उधर, शीर्ष कोर्ट में कुछ याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे (Senior advocate Dushyant Dave) ने मंगलवार को सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि हिजाब से गरिमा बढ़ती है और जब वह इसे पहनती है तो एक महिला को बहुत सम्मानजनक बनाती है।