शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का रविवार को निधन हो गया। स्वामी स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती दो पीठों (ज्योतिर्मठ और द्वारका पीठ) के शंकराचार्य थे। वह सनातन धर्म की रक्षा के लिए आजीवन प्रयासरत रहे। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती लंबे समय से बीमार थे।
By Krishna Bihari SinghEdited By: Updated: Sun, 11 Sep 2022 11:46 PM (IST)
नरसिंहपुर, जेएनएन। द्वारका शारदा पीठ व ज्योर्तिमठ बदरीनाथ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज रविवार दोपहर 3.21 बजे मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में ब्रह्मलीन हो गए। वह लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे। बीते हरितालिका पर्व पर भक्तों ने उनका 99वां प्रकटोत्सव मनाया था। उन्हें आश्रम में ही सोमवार सायं चार बजे समाधि दी जाएगी। स्वामी स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती अपनी बेबाक बयानी के लिए भी चर्चित थे। उनके निधन से संत समाज में शोक है।
नौ साल की उम्र में छोड़ दिया था परिवार
दो सितंबर, 1924 को मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में दिघोरी गांव में जन्म लेने वाले स्वामी स्वरूपानंद के बचपन का नाम पोथीराम उपाध्याय था। उन्होंने नौ वर्ष की उम्र में ही घर-परिवार छोड़ कर धर्म यात्रा पर निकल पड़े। इस दौरान वह काशी पहुंचे, जहां स्वामी करपात्री महाराज से वेद-वेदांत व शास्त्रों की शिक्षा ली। यह वह समय था जब भारत को अंग्रेजों से मुक्त करने की लड़ाई चल रही थी।
स्वतंत्रता संग्राम में लिया हिस्सा
1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और 19 वर्ष की उम्र में वह क्रांतिकारी साधु के रूप में प्रसिद्ध हुए। इसी दौरान उन्होंने वाराणसी की जेल में नौ और मध्य प्रदेश की जेल में छह महीने की सजा भी काटी। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह समेत अनेक वरिष्ठ नेता उनके अनुयायी रहे हैं।
परमहंसी गंगा आश्रम में दी जाएगी समाधि
शंकराचार्य के शिष्य ब्रह्म विद्यानंद की ओर से साझा की गई जानकारी के मुताबिक स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Swami Swaroopanand Saraswati Demise) को सोमवार को शाम 5 बजे परमहंसी गंगा आश्रम में समाधि दी जाएगी। महज 19 साल की उम्र में स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर उनकी (Shankaracharya Swami Swaroopanand Saraswati) ख्याति देशभर में फैल चुकी थी।
दंड संन्यास की ली थी दीक्षा
वह करपात्री महाराज के राजनीतिक दल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी थे, उन्होंने वर्ष 1950 में शारदा पीठ शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती से दंड संन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के नाम से जाने जाने गए। उन्हें 1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली थी।
कई आंदोलनों में रहे शामिल
उन्होंने राम जन्मभूमि विवाद मामले में एक तल्ख बयान में भाजपा और विश्व हिंदू परिषद पर निशाना साधा था। उनका कहना था कि कुछ संगठन अयोध्या में मंदिर के नाम पर अपना कार्यालय बनाना चाहते हैं जो हमें कतई मंजूर नहीं है। उन्होंने इस मुद्दे पर हो रही राजनीति की आलोचना की थी। साल 1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली। ब्रह्मलीन शंकराचार्य ने रामसेतु की रक्षा, गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने, श्रीराम जन्मभूमि के लिए लंबा संघर्ष किया था। वह गोरक्षा आंदोलन के प्रथम सत्याग्रही, रामराज्य परिषद के प्रथम अध्यक्ष रहे।
पीएम मोदी ने जताया शोक
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट कर कहा- द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। शोक के इस समय में उनके अनुयायियों के प्रति मेरी संवेदनाएं... ओम शांति! वहीं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा- द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के निधन का दुःखद समाचार मिला। सनातन संस्कृति एवं धर्म के प्रचार-प्रसार को समर्पित उनके कार्य सदैव याद किए जाएंगे। ईश्वर दिवंगत आत्मा को सद्गति प्रदान करें। ॐ शांति...