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बांझ होने के कगार पर सोना उगलने वाली हरितक्रांति की धरती, पराली जलाकर नष्ट किए जा रहे जीवाश्म, सूक्ष्म तत्वों की भारी कमी

खाद्य सुरक्षा को महफूज करने वाले पंजाब हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में न तो परंपरागत खेती के तौर तरीके अपनाए जा रहे हैं और न ही आधुनिक टेक्नोलॉजी का उपयोग हो रहा है। सारा जोर उत्पादकता बढ़ाने पर है।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Updated: Mon, 21 Mar 2022 06:27 PM (IST)
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देश का पेट भरने वाली धरती का कोई पुरसाहाल नहीं (फाइल फोटो)
सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। हरितक्रांति से पूरे देश का पेट भरने वाली पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की धरती का कोई पुरसाहाल नहीं है। जिन खेतों में सोना उगलने की क्षमता थी, वही बांझ होने के कगार पर है। यहां की मिट्टी में पाए जाने वाले प्रमुख और सूक्ष्म तत्वों वाले जीवाश्म की भारी कमी झेल रहे इन खेतों की माटी के रेत में तब्दील होने का खतरा पैदा हो गया है। इस गंभीर संकट से निपटने की जगह प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन की आदतें पूर्ववत जारी हैं। इस पूरे क्षेत्र की मिट्टी की बिगड़ती सेहत पर बातें तो खूब होती हैं, लेकिन इसे लेकर कभी गंभीरता नहीं बरती गई। लिहाजा पंजाब, हरियाणा व यूपी की मिट्टी से जीवाश्म न्यूनतम से खिसक कर खतरनाक स्तर पर आ गया है। इसके बावजूद यहां के खेतों में खरीफ सीजन में धान और रबी सीजन में गेहूं की पराली धड़ल्ले से जलाई जा रही है, जिससे यहां की मिट्टी की उर्वरता स्वाहा हो रही है।

खाद्य सुरक्षा को महफूज करने वाले पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में न तो परंपरागत खेती के तौर तरीके अपनाए जा रहे हैं और न ही आधुनिक टेक्नोलॉजी का उपयोग हो रहा है। सारा जोर उत्पादकता बढ़ाने पर है। उसके लिए शार्टकट रास्ता अपनाया जा रहा है। भले उससे यहां के प्राकृतिक संसाधनों का बंटाधार हो जाए। यही वजह है कि खेती के लिए जिन तीन प्रमुख तत्वों का जरूरत होती है, उनमें भूमि, जल और हवा अत्यंत आवश्यक है। लेकिन केमिकल फर्टिलाइजर और पेस्टीसाइड के अवैज्ञानिक अंधाधुंध उपयोग से यह एग्री जोन अति प्रदूषित श्रेणी में पहुंच चुका है।

समय रहते नहीं किए गए बदलाव तो हालात होंगे और चिंताजनक

स्वायल साइंस के वैज्ञानिक डाक्टर सूरजभान का कहना है 'इस जोन की मिट्टी रेत में तब्दील हो रही है। कमोबेश यही हाल देशभर में खेती के तौर तरीके में समय रहते बदलाव नहीं किया गया हालात चिंताजनक हो सकते हैं। कृषि उत्पादकता बुरी तरह प्रभावित होगी। उन्होंने कहा खाद्यान्न उत्पादन की विकास दर में लगातार कोशिशों के बावजूद संतोषजनक गति नहीं मिल पा रही है।'

मिट्टी की बिगड़ती दशा में नहीं हो पा रहा सुधार

इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्स इंस्टीट्यूट के निदेशक डाक्टर अशोक कुमार सिंह ने कहा 'मिट्टी की खराब सेहत की चिंता वाजिब है। नाइट्रोन, फास्फोरस और पोटाश जैसे प्रमुख तत्वों की जरूरतें रासायनिक फर्टिलाइजर से पूरा कर लिया जाता है। उससे अपेक्षित पैदावार तो हो जाती है, पर मिट्टी की बिगड़ती दशा में सुधार नहीं हो पा रहा है। मिट्टी में कुल 14 तरह के सूक्ष्म तत्व होते हैं, जिनके संतुलन से ही मिट्टी को स्वस्थ बनाया जाता है।'

लोगों के स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है इसका असर

उत्तरी राज्यों में सालभर में कई फसलों की खेती होने लगी है। प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से भी दबाव बढ़ा है। परंपरागत फसल चक्र की जगह चावल व गेहूं की खेती पिछले कई दशक से लगातार जारी है। यहां की मिट्टी से सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी का खामियाजा यहां से पैदा अनाज में भी दिखने लगा है, जिसका असर लोगों के स्वास्थ्य पर भी दिखने लगा है। लिहाजा हरितक्रांति के पुरोधा राज्यों को इसका गंभीर खामियाजा भुगतान पड़ रहा है। जरूरत है यहां के आम लोगों के जागरुक होने की, किसानों को अपनी खेती के पैटर्न को बदलने की और शासन-प्रशासन को इस दिशा में वैकल्पिक व्यवस्था देने की, ताकि मिट्टी की बिगड़ती दशा में सुधार हो सके।

पंजाब: वर्ष 1990 के दशक में पंजाब प्रति व्यक्ति आमदनी के मामले में महाराष्ट्र, हरियाणा के बाद तीसरे स्थान पर था। लेकिन कृषि में गिरावट के साथ यह दसवें स्थान पर आ गया है। कृषि गिरावट की बड़ी वजह वहां की मिट्टी की बिगड़ती सेहत है। जीवाश्म से लेकर प्रमुख तत्व एनपीके और सूक्ष्म तत्व तेजी से घटा है। यहां की 85.3 फीसद भूमि में आर्गेनिक कार्बन की मात्रा न्यूनतम स्तर से नीचे है। फास्फोरम 70 फीसद जमीन में कम है। गेहूं व धान के अलावा तीसरी फसल की सघन खेती से मिट्टी की क्षमता घट रही है।

हरियाणा: हरियाणा की माटी में नाइट्रोजन भारी कमी कमी है जबकि फासफोरस 30 फीसद और पोटाश मीडियम स्तर पर है। इसके मुकाबले सूक्ष्म पोषक तत्वों में आयरन 21 फीसद और जिंक 15 फीसद कम है। जीवाश्म की भारी अभाव है। स्वायल साइंस के वैज्ञानिकों के मुताबिक यहां की मिट्टी बीमार है, जिसे कई तरह के पोषक तत्वों की तत्काल जरूरत है। पराली जलाने से जीवाश्म व किसान मित्र कहे जाने वाले माइक्रोव्स नष्ट हो रहे हैं। धान गेहूं के पैटर्न से मिट्टी की उर्वरा क्षमता लगातार गिर रही है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश: यहां की बंजर होती मिट्टी में तत्वों की बात करें तो फासफोरस की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है। फासफोरस अपने न्यूनतम स्तर 11.25 फीसद से भी घटकर शून्य के स्तर पर आ गया है। इसके अलावा अन्य जीवाश्म और कार्बन न्यूनतम 0.5-0.2 फीसद फीसद रह गया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्राकृतिक संसाधनों का सर्वाधिक दोहन करने वाली फसलें आलू और गन्ने की खेती की जाती है। फसल चक्र को यहां के किसान भूल चुके हैं।