अल नीनो से बिगड़ेंगे हालात, इस बार की सर्दी उत्तर भारतीयों की सांसों पर और पड़ेगी भारी
अल नीनो केवल मानसून को ही नहीं प्रभावित करता है यह वायु प्रदूषण भी बढ़ाता है। वैज्ञानिकों ने चेताया है कि उत्तर भारत में इस बार की सर्दियां भारी पड़ने वाली हैं।
By Krishna Bihari SinghEdited By: Updated: Sun, 28 Jul 2019 03:28 PM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। अभी तक अल नीनो को मानसून में कमी और मौसम चक्र में गड़बड़ी के लिए ही जिम्मेदार माना जाता था। लेकिन, हांग कांग की बैप्टिस्ट यूनिवर्सिटी, चीन की सबसे पुरानी नानजिंग यूनिवर्सिटी, चीन की ही फूडान यनिवर्सिटी और अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अब इसके एक और घातक प्रभाव के बारे में खुलासा किया है। वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया कि अल नीनो केवल मानसून को ही नहीं प्रभावित करता है, यह वायु प्रदूषण भी बढ़ाता है। इस बार सर्दियों में यह उत्तर भारत में वायु प्रदूषण की समस्या को और गंभीर बना सकता है।
उत्तर भारत में वायु प्रदूषण का स्तर होगा प्रभावित
रिसर्च जर्नल साइंस एडवांसेज में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, अल नीनो और प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के तापमान में भारी बदलाव उत्तर भारत में वायु प्रदूषण के स्तर को प्रभावित कर सकता है। वैज्ञानिकों की मानें तो अल नीनो की वजह से जंगलों की कार्बन डाई ऑक्साइड को सोखने की क्षमता प्रभावित हुई है। यही नहीं इससे पूरी दुनिया में आग लगने की घटनाओं में इजाफा हुआ है, जिससे कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्र बढ़ती है। बता दें कि नासा ने अपने एक अध्ययन में दावा किया था कि अल नीनो अंटार्कटिका में सालाना दस इंच बर्फ को पिघला रहा है। सर्दियों में और गहराएगी स्मॉग की समस्या
अपने अध्ययन में वैज्ञानिक मेंग गाओ और उनके साथियों ने पाया कि अल नीनो की परिस्थितियां वायु प्रदूषण के स्तर को बेहद खराब कर सकते हैं। वैज्ञानिकों की मानें तो सर्दियों के दौरान मजबूत अल नीनो उत्तर भारत में हवा की गति को कमजोर करेगा। वायुमंडल में आया यह ठहराव सर्दियों के दौरान प्रदूषण की स्थितियों को और गंभीर बना सकता है। बता दें कि सर्दियों के दौरान उत्तर भारत में धूल कणों, पराली जलाने और औद्योगिक उत्सजर्न से वातावरण में स्मॉग की परिस्थितियों का निर्माण होता है। इससे दिल्ली-एनसीआर समेत उत्तर भारत के कई हिस्सों में लोगों का जीना मुहाल हो जाता है। ऐसे में सर्दियों के दौरान अल नीनो की परिस्थितियां उत्तर भारत में स्मॉग की समस्या को और गंभीर बना सकती हैं।
रिसर्च जर्नल साइंस एडवांसेज में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, अल नीनो और प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के तापमान में भारी बदलाव उत्तर भारत में वायु प्रदूषण के स्तर को प्रभावित कर सकता है। वैज्ञानिकों की मानें तो अल नीनो की वजह से जंगलों की कार्बन डाई ऑक्साइड को सोखने की क्षमता प्रभावित हुई है। यही नहीं इससे पूरी दुनिया में आग लगने की घटनाओं में इजाफा हुआ है, जिससे कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्र बढ़ती है। बता दें कि नासा ने अपने एक अध्ययन में दावा किया था कि अल नीनो अंटार्कटिका में सालाना दस इंच बर्फ को पिघला रहा है। सर्दियों में और गहराएगी स्मॉग की समस्या
अपने अध्ययन में वैज्ञानिक मेंग गाओ और उनके साथियों ने पाया कि अल नीनो की परिस्थितियां वायु प्रदूषण के स्तर को बेहद खराब कर सकते हैं। वैज्ञानिकों की मानें तो सर्दियों के दौरान मजबूत अल नीनो उत्तर भारत में हवा की गति को कमजोर करेगा। वायुमंडल में आया यह ठहराव सर्दियों के दौरान प्रदूषण की स्थितियों को और गंभीर बना सकता है। बता दें कि सर्दियों के दौरान उत्तर भारत में धूल कणों, पराली जलाने और औद्योगिक उत्सजर्न से वातावरण में स्मॉग की परिस्थितियों का निर्माण होता है। इससे दिल्ली-एनसीआर समेत उत्तर भारत के कई हिस्सों में लोगों का जीना मुहाल हो जाता है। ऐसे में सर्दियों के दौरान अल नीनो की परिस्थितियां उत्तर भारत में स्मॉग की समस्या को और गंभीर बना सकती हैं।
क्या है अल नीनो, क्यों है खतरनाक
समुद्र के तापमान और वायुमंडलीय परिस्थितियों में आए बदलाव के लिए उत्तरदायी समुद्री घटना को अल-नीनो कहा जाता है। मौसम विशेषज्ञों की मानें तो अल नीनो के प्रभाव से प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह गर्म हो जाती है। इससे हवाओं का रास्ते और रफ्तार में परिवर्तन आ जाता है। इसके चलते मौसम चक्र प्रभावित होता है। इसके कारण कई स्थानों पर सूखा पड़ता है। हालांकि, अमेरिकी मौसम एजेंसियों की मानें तो आने वाले एक या दो महीनों में अल नीनो खत्म हो सकता है क्योंकि यह धीरे धीरे कमजोर पड़ रहा है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग में मानसून पूर्वानुमान के प्रमुख डी. शिवानंद पई के मुताबिक, यह एक अच्छी खबर है। लेकिन वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि अल नीनो बाढ़ के लिए भी जिम्मेदार होता है। देश में बाढ़ के हालातों को देखते हुए यह बात सटीक भी बैठती है। भारतीय वैज्ञानिकों को भी मिले संकेत
अल नीनो को लेकर हुए अध्ययन से भारतीय वैज्ञानिक भी कमोबेश सहमत है। भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान, पुणो के वरिष्ठ वैज्ञानिक गुफरान बेग ने कहा कि हमें भी कुछ ऐसे संकेत मिले हैं कि अल नीनो के चलते पैदा होने वाला मानसूनी व्यवहार इस बार देश में वायु प्रदूषण के स्तर को प्रभावित कर सकता है। बता दें कि पिछले साल जहरीले स्मॉग की चादर दिल्ली-एनसीआर के शहरों गाजियाबाद, गुरु ग्राम, फरीदाबाद, नोएडा, सोनीपत पर कई दिनों तक छाई रही थी जिसने लोगों का जीना मुहाल किया था। गाजियाबाद में तो वायु गुणवत्ता सूचकांक 400 के स्तर को पार कर गया था। यही नहीं दिल्ली-एनसीआर के अस्पतालों में सांस के मरीजों की संख्या बढ़ गई थी।
समुद्र के तापमान और वायुमंडलीय परिस्थितियों में आए बदलाव के लिए उत्तरदायी समुद्री घटना को अल-नीनो कहा जाता है। मौसम विशेषज्ञों की मानें तो अल नीनो के प्रभाव से प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह गर्म हो जाती है। इससे हवाओं का रास्ते और रफ्तार में परिवर्तन आ जाता है। इसके चलते मौसम चक्र प्रभावित होता है। इसके कारण कई स्थानों पर सूखा पड़ता है। हालांकि, अमेरिकी मौसम एजेंसियों की मानें तो आने वाले एक या दो महीनों में अल नीनो खत्म हो सकता है क्योंकि यह धीरे धीरे कमजोर पड़ रहा है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग में मानसून पूर्वानुमान के प्रमुख डी. शिवानंद पई के मुताबिक, यह एक अच्छी खबर है। लेकिन वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि अल नीनो बाढ़ के लिए भी जिम्मेदार होता है। देश में बाढ़ के हालातों को देखते हुए यह बात सटीक भी बैठती है। भारतीय वैज्ञानिकों को भी मिले संकेत
अल नीनो को लेकर हुए अध्ययन से भारतीय वैज्ञानिक भी कमोबेश सहमत है। भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान, पुणो के वरिष्ठ वैज्ञानिक गुफरान बेग ने कहा कि हमें भी कुछ ऐसे संकेत मिले हैं कि अल नीनो के चलते पैदा होने वाला मानसूनी व्यवहार इस बार देश में वायु प्रदूषण के स्तर को प्रभावित कर सकता है। बता दें कि पिछले साल जहरीले स्मॉग की चादर दिल्ली-एनसीआर के शहरों गाजियाबाद, गुरु ग्राम, फरीदाबाद, नोएडा, सोनीपत पर कई दिनों तक छाई रही थी जिसने लोगों का जीना मुहाल किया था। गाजियाबाद में तो वायु गुणवत्ता सूचकांक 400 के स्तर को पार कर गया था। यही नहीं दिल्ली-एनसीआर के अस्पतालों में सांस के मरीजों की संख्या बढ़ गई थी।
दुनियाभर में 50 लाख लोगों की हो जाती है मौत
एक अन्य अध्ययन में दावा किया गया है कि बीते दो हजार वर्षो के मुकाबले 20वीं सदी में वैश्विक तापमान में सबसे ज्यादा वृद्धि दर्ज की गई है, जिसका असर दुनियाभर में देखा जा सकता है। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में वायु प्रदूषण से साल 2017 में करीब 12.40 लाख लोगों की मौत हो गई थी। यही नहीं बाहरी वायु प्रदूषण से घिरे रहने की वजह से साल 2017 में ही दुनियाभर में 50 लाख लोगों की मौत हो गई थी। कैलिफोर्निया यूनिविर्सटी के ताजा शोध में पाया गया है कि प्रदूषण से बच्चों का आईक्यू सात अंकों तक घट सकता है। यही नहीं वायु प्रदूषण से फेफड़ों की कार्यक्षमता भी घट रही है।अब खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस, डाउनलोड करें जागरण एप
एक अन्य अध्ययन में दावा किया गया है कि बीते दो हजार वर्षो के मुकाबले 20वीं सदी में वैश्विक तापमान में सबसे ज्यादा वृद्धि दर्ज की गई है, जिसका असर दुनियाभर में देखा जा सकता है। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में वायु प्रदूषण से साल 2017 में करीब 12.40 लाख लोगों की मौत हो गई थी। यही नहीं बाहरी वायु प्रदूषण से घिरे रहने की वजह से साल 2017 में ही दुनियाभर में 50 लाख लोगों की मौत हो गई थी। कैलिफोर्निया यूनिविर्सटी के ताजा शोध में पाया गया है कि प्रदूषण से बच्चों का आईक्यू सात अंकों तक घट सकता है। यही नहीं वायु प्रदूषण से फेफड़ों की कार्यक्षमता भी घट रही है।अब खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस, डाउनलोड करें जागरण एप