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बड़े सुधार पर फिलहाल नहीं बढ़ेगा चुनाव आयोग, राजनीतिक दलों के साथ टकराव से बचने के लिए बनाई रणनीति

आयोग के लिए वैसे भी 2024 का आम चुनाव होने तक काम का काफी दबाव है। अभी उसके सामने कर्नाटक विधानसभा का चुनाव है। उसके तुरंत बाद नवंबर-दिसंबर में मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनाव होने है।

By Jagran NewsEdited By: Ashisha Singh RajputUpdated: Sun, 26 Mar 2023 07:49 PM (IST)
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राजनीतिक दलों के साथ टकराव ने बचने के लिए
अरविंद पांडेय, नई दिल्ली। चुनाव सुधार की जरूरत तो महसूस की जा रही है लेकिन फिलहाल चुनाव आयोग वन नेशन-वन इलेक्शन, रिमोट वोटिंग मशीन (आरवीएम), एक वोटर लिस्ट, एक सीट से ही चुनाव लड़ने की अनुमति जैसे बड़े सुधारों पर सुस्त ही रहना चाहता है। आयोग के सामने जो बड़ा लक्ष्य है वह 2024 का आम चुनाव है। जिसमें अब साल भर के कम का समय ही बचा है। ऐसे में आयोग अभी सुधारों का ऐसा कोई नया मोर्चा खोलने को तैयार नहीं है, जिससे राजनीतिक दलों के साथ उसका किसी तरह का टकराव बढ़े।

चुनाव आयोग का मानना

चुनाव आयोग ने इस बीच जो संकेत दिए है, उसके तहत प्रस्तावित इन सभी सुधारों पर 2024 के बाद ही प्रक्रिया तेज होगी। आयोग का मानना है कि किसी भी बड़े बदलाव के लिए लंबा वक्त चाहिए। बैलेट पेपर की जगह ईवीएम ( इलेक्ट्रानिक्स वोटिंग मशीन ) को पूरी तरह से लागू करने में भी 22 साल का वक्त लगा था। आयोग के मुताबिक ईवीएम को लेकर पहला ट्रायल 1982 में केरल में किया गया था। जबकि इसे वर्ष 2004 के आम चुनाव में पूरी तरह से लागू किया गया।

आयोग के लिए वैसे भी 2024 का आम चुनाव होने तक काम का काफी दबाव है। अभी उसके सामने कर्नाटक विधानसभा का चुनाव है। उसके तुरंत बाद नवंबर-दिसंबर में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनाव होने है। इससे बाद मार्च 2024 के दूसरे हफ्ते में ही उसे आम चुनावों का ऐलान कर देना है। 2019 में आम चुनावों का ऐलान 10 मार्च को हो गया था।

इन पांच प्रमुख चुनाव सुधारों पर है आगे बढ़ने की तैयारी

1-रिमोट वोटिंग मशीन

जिस प्रस्तावित चुनाव सुधार की इस समय सबसे चर्चा है, वह आरवीएम यानी रिमोट वोटिंग मशीन है। जिसके जरिए चुनाव आयोग मौजूदा समय में वोटिंग प्रक्रिया से वंचित करीब तीस करोड़ मतदाताओं (मिसिंग वोटर) को वोटिंगप्रक्रिया से जोड़ने की तैयारी में है। इसके जरिए वह अपने मूल स्थान से दूर रहते हुए भी वोट डाल सकेंगे। इनमें काम-धंधे या नौकरी के सिलसिले में गांव छोड़कर शहरों में रहने वाले लोगों के साथ दूसरे देशों में रहने वाले प्रवासी भारतीय दोनों को लाभ मिलेगा। फिलहाल राजनीतिक दलों के साथ इसे लेकर चर्चा तेजी से चल रही है। इस मशीन से 75 निर्वाचन क्षेत्रों में एक साथ सुविधा मुहैया कराई जा सकती है।

2-एक देश-एक चुनाव

अभी साल भर देश में कोई न कोई चुनाव चलते है। आयोग का प्रस्ताव है कि देश में एक साथ सभी चुनाव कराए जाए। खासकर लोकसभा, विधानसभा, नगरीय निकाय और पंचायतों आदि के चुनाव है। इससे वित्तीय बोझ भी कम होगा। साथ ही अभी चुनावों के चलते विकास कार्यों में जो अड़गा लगता है, उससे भी राहत मिलेगी। खुद प्रधानमंत्री ने भी कई मौके पर इसके पक्ष में राय बनाने की बात कहीं थी। हालांकि अभी इसे लेकर राजनीतिक दल तैयार नहीं है।

3-एक मतदाता-एक वोटर लिस्ट:

चुनाव सुधार में एक बड़ा कदम वोटर लिस्ट को एक जैसी बनाना है। अभी देश में लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए एक वोटर लिस्ट है, जबकि नगरीय निकाय और पंचायत चुनावों के लिए दूसरी वोटर लिस्ट होती है। क्योंकि लोकसभा और विधानसभा का चुनाव निर्वाचन आयोग कराता है,जबकि नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव सभी राज्यों के अपने-अपने निर्वाचन आयोग कराते है। कई राज्यों में इनमें भी काफी असमानता है।

4- वोटर लिस्ट को आधार से जोड़ना

वोटर लिस्ट में दोहराव या फर्जी नामों के शामिल होने जैसी किसी आंशका से बचने के लिए चुनाव आयोग वोटर लिस्ट को आधार नंबर से जोड़ना चाहता है। इस दिशा में कुछ पहल की भी गई है, लेकिन अभी आधार नंबर को वोटर लिस्ट जोड़ना सिर्फ स्वैच्छिक है। ऐसे में वोटर लिस्ट में अभी भी लोगों के दो -दो जगह नाम दर्ज है। माना जा रहा है कि आधार नंबर से जुड़ते ही यह पकड़ में आ जाएंगे।

5-एक व्यक्ति-एक सीट

आयोग के सामने एक और बड़ी समस्या एक व्यक्ति के कई सीटों से चुनाव लड़ने की है। जबकि वह जीतने के बाद किसी एक सीट का प्रतिनिधित्व कर सकता है। ऐसे में वह अभी जीतने के बाद वह दूसरी सीट से इस्तीफा दे देते है। जिसके बाद आयोग को छह महीनें के भीतर फिर से उस पर चुनाव कराना होता है। आयोग ने जो सुधार प्रस्तावित किया गया है, उसके तहत एक व्यक्ति एक सीट से ही चुनाव लड़े। यदि कोई दो सीट से चुनाव लड़ता है और जीतने के बाद सीट खाली करता है, तो उससे पूरा चुनाव खर्च वसूला जाना चाहिए।