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Electoral Bonds case: चुनावी बॉन्ड्स पर फिलहाल नियामक एजेंसियों की चुप्पी, कंपनियों की तरफ से मुनाफे व पूंजी आधार से ज्यादा चंदा देने का मामला

एसबीआई और चुनाव आयोग की तरफ से उपलब्ध कराये गये आंकड़ों से सीधे तौर पर यह बात सामने आ रही है कि कई कंपनियों ने अपनी औकात से ज्यादा की राशि के बॉन्ड्स खरीदे और उसे राजनीतिक दलों को दिया। सबसे ज्यादा बॉन्ड खरीदने वाली कंपनी फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज की तरफ से कुल 1365 करोड़ रुपये के बॉन्ड्स खरीदे गये हैं।

By Jagran News Edited By: Siddharth Chaurasiya Updated: Fri, 22 Mar 2024 08:47 PM (IST)
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दैनिक जागरण ने कंपनी कार्य मंत्रालय और दूसरी नियामक एजेंसियों से बात करने की कोशिश की है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। चुनावी बॉन्ड के सारे आंकड़े सामने आ चुके हैं। किस कंपनी ने किस राजनीतिक दल को चुनावी बॉन्ड के जरिए चंदा दिया है यह बात भी सामने आ चुकी है। चंदा देने वाली कई कंपनियों ने अपने मुनाफे व पूंजी आधार से काफी ज्यादा का चंदा दिया है। इससे इन कंपनियों के भीतर कॉर्पोरेट गवर्नेंस का मामला सामने तो आता ही हैं लेकिन साथ ही यह सवाल भी उठता है कि इस बारे में वित्तीय सेक्टर की देश की नियामक एजेंसियां क्या कर रही हैं?

क्या सेबी, गंभीर अपराध जांच कार्यालय (एसएफआईओ) या कंपनी मामलों के मंत्रालय की तरफ से स्वत: संज्ञान ले कर इन कंपनियों की तरफ से दिए गये चंदे की जांच की जा सकती है? इस बारे में दैनिक जागरण ने कंपनी कार्य मंत्रालय और दूसरी नियामक एजेंसियों से बात करने की कोशिश की है। वैसे कोई भी अधिकारी खुल कर यह तो बोलने को तैयार नहीं कि चुनावी बॉन्ड से जुड़े मुद्दों का उनकी तरफ से जांच की जाएगी या नहीं। लेकिन इनका यह भी कहना है कि चूंकि सारा मामला सुप्रीम कोर्ट में है, इसलिए अगर वहां से निर्देश मिले तो आगे की कार्रवाई हो सकती है।

एसबीआई और चुनाव आयोग की तरफ से उपलब्ध कराये गये आंकड़ों से सीधे तौर पर यह बात सामने आ रही है कि कई कंपनियों ने अपनी औकात से ज्यादा की राशि के बॉन्ड्स खरीदे और उसे राजनीतिक दलों को दिया। सबसे ज्यादा बॉन्ड खरीदने वाली कंपनी फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज की तरफ से कुल 1365 करोड़ रुपये के बॉन्ड्स खरीदे गये हैं। लेकिन इस कंपनी को वर्ष 2019-20 से वर्ष 2022-23 के दौरान सिर्फ 215 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ था।

क्विक सप्लाई चेन लिमिटेड, मदनलाल लिमिटेड जैसी दर्जनों दूसरी कंपनियां ऐसी ही हैं। इसी तरह से दो दर्जन के करीब कंपनियां ऐसी हैं जिनका पूंजी आधार सिर्फ पांच करोड़ रुपये का है लेकिन इन्होंने 250 करोड़ रुपये से ज्यादा राशि के बॉन्ड्स राजनीतिक पार्टियों को मुहैया कराया है। इसमें वासावी एवेन्यूज, अपर्णा फा‌र्म्स जैसी स्थानीय कंपनियां हैं।

वासावी एवेन्यूज का पूंजी आधार सिर्फ 10 लाख रुपये का है लेकिन इसने पांच करोड़ रुपये के बॉन्ड्स खरीदे हैं। इसने भारत राष्ट्र समिति को बॉन्ड्स दिए हैं। अपर्णा फा‌र्म्स एंड एस्टेट नाम की एक कंपनी का पूंजी आधार वर्ष 2020 में सिर्फ पांच लाख रुपये का था। लेकिन इसने 15 करोड़ रुपये के बॉन्ड्स कांग्रेस को दिए हैं।

नियामक एजेंसियों से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि चुनावी बॉन्ड को लेकर अभी तक सुप्रीम कोर्ट में जो मामला चल रहा है उसमें कंपनियों के भीतर के कारपोरेट गवर्नेंस का मामला सीधे तौर पर नहीं उठा है। वैसे घाटा उठाने वाली कंपनियों पर भी चुनावी चंदा देने को लेकर कोई रोक-टोक नहीं है।

वित्त विधेयक, 2017 में संशोधन के जरिए इस बारे में आवश्यक प्रावधान किया गया था कि हानि में चलने वाली कंपनियां भी चुनावी बॉन्ड्स खरीद सकती हैं। साथ ही यह प्रावधान भी है कि एक कंपनी कितनी राशि के बॉन्ड्स खरीद सकती हैं, इसकी भी कोई सीमा नहीं है। सनद रहे कि वित्त विधेयक, 2017 के जरिए ही चुनावी बॉन्ड्स स्कीम को लांच किया गया था। इसी विधेयक में कंपनी कानून में संशोधन के जरिए चुनावी चंदा देने वाली कंपनियों के लिए राजनीतिक दल का नाम बताने की बाध्यता खत्म कर दी गई थी