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Electoral Bonds: चुनावी चंदे की पारदर्शिता सदैव रही सवालों के घेरे में, पहले भी होती रही अनदेखी

चुनावी चंदे की पुरानी व्यवस्था के तहत राजनीतिक दलों को पहले 20 हजार से ज्यादा मिलने वाले प्रत्येक चंदे का ब्यौरा चुनाव आयोग को अपने सालाना रिटर्न दाखिल करने के दौरान देना होता था। जिसे आयोग सार्वजनिक भी करता था। हालांकि इनमें राजनीतिक दल मिलने वाले चंदे का 80 फीसद से ज्यादा राशि को 20 हजार से कम का होना बताते हुए उसका ब्यौरा नहीं देते थे।

By Jagran News Edited By: Narender Sanwariya Updated: Thu, 15 Feb 2024 10:00 PM (IST)
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चुनावी चंदे की पारदर्शिता सदैव रही सवालों के घेरे में (File Photo)

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। चुनावी बॉन्ड की व्यवस्था को असंवैधानिक बताकर सुप्रीम कोर्ट ने भले ही पूरी चुनावी पारदर्शिता पर सवाल खड़े किए हैं, लेकिन चुनावी चंदे की यह व्यवस्था पहले भी कभी पारदर्शी नहीं रही थी। इसे लेकर सदैव सवाल उठते ही रहे हैं। इससे निपटने के लिए चुनाव आयोग ने चंदे से जुड़ी व्यवस्था में कई बार बड़े बदलाव भी किए लेकिन राजनीतिक दलों की स्थिति तू डाल-डाल और मैं पात-पात की तरह ही रही। हालांकि इस फैसले के बाद अब यह अनुमान लगाया जा रहा है कि चुनावी चंदे की पुरानी व्यवस्था फिर से लागू होगी।

चुनाव आयोग ने पहले यह लिमिट रखी थी 20 हजार

चुनावी चंदे की पुरानी व्यवस्था के तहत राजनीतिक दलों को पहले 20 हजार से ज्यादा मिलने वाले प्रत्येक चंदे का ब्यौरा चुनाव आयोग को अपने सालाना रिटर्न दाखिल करने के दौरान देना होता था। जिसे आयोग सार्वजनिक भी करता था। हालांकि इनमें राजनीतिक दल मिलने वाले चंदे का 80 फीसद से ज्यादा राशि को 20 हजार से कम का होना बताते हुए उसका ब्यौरा नहीं देते थे।

बाद में इसे घटाकर कर दिया था दो हजार

इसके बाद तो आयोग ने इस पूरी व्यवस्था को पारदर्शी बनाने के चलते ब्यौरा न देने वाली चंदे राशि की लिमिट को 20 हजार से घटाकर दो हजार कर दिया था। लेकिन राजनीतिक दल कहां चूकने वाले थे, उन्होंने फिर वहीं खेल किया और चुनाव आयोग को जो जानकारी दी, उनमें तहत उन्हें मिली कुल चंदे राशि का 80 फीसद से ज्यादा हिस्सा दो हजार से कम का बताया।

चुनावी ब्रांड की व्यवस्था

देश के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओ पी रावत बताते हैं कि चुनावी चंदे की पारदर्शिता को लेकर आयोग लगातार सक्रिय रहा है। इस दौरान आयोग ने कई बार राजनीतिक दलों से सवाल-जवाब भी किए है, लेकिन नियमों के चलते राजनीतिक दल इसे तय लिमिट से कम राशि का बताते हुए बच जाते थे। वहीं इससे ज्यादा राशि से जो चंदे मिलते थे, उनके नाम राजनीतिक दलों को से मिले ब्यौरे के आधार पर सार्वजनिक किया जाता था। गौरतलब है कि 2018 में चुनावी ब्रांड की व्यवस्था लागू किए जाने से पहले राजनीतिक दल सालाना रिटर्न के जरिए तय लिमिट से अधिक राशि के मिले सभी चंदे का ब्यौरा देते थे।

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